कहीं आपका बच्चा स्लीप एप्निया का शिकार तो नहीं! एम्स की रिपोर्ट- दिल्ली के 20% बच्चे है बीमार
एम्स के एक शोध में खुलासा हुआ है कि दिल्ली के निजी स्कूलों में पढ़ने वाले 15 से 20 फीसदी छात्र ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए या नींद में खर्राटा लेना) से पीड़ित हैं, जबकि सरकारी स्कूलों में सिर्फ दो फीसदी छात्र इससे पीड़ित हैं।
नई दिल्ली:
अगर आपका बच्चा सोते हुए खर्राटे लेता है तो कहीं वो स्लीप एप्निया का शिकार तो नहीं।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक शोध में खुलासा हुआ है कि दिल्ली के निजी स्कूलों में पढ़ने वाले 15 से 20 फीसदी छात्र ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए या नींद में खर्राटा लेना) से पीड़ित हैं, जबकि सरकारी स्कूलों में सिर्फ दो फीसदी छात्र इससे पीड़ित हैं।
इस अध्ययन के पहले चरण में 7,000 छात्रों का परीक्षण किया गया। इसे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी व भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईएमसीआर) द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा है। इस अध्ययन में 10-17 साल के आयु वर्ग वाले छात्रों को शामिल किया गया है।
एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा, 'हम एक अध्ययन कर रहे हैं, जिसके निष्कर्ष बताते हैं कि सरकारी स्कूलों में ओएसए बहुत मुश्किल से देखने को मिला। जबकि निजी स्कूलों में हमने छात्रों में ओएसए की मौजूदगी को देखा। यह एक सतत अध्ययन है, लेकिन जो आकड़ा पहले चरण में पाया गया, इतना चौंकाने वाला है कि हम जानना चाहते हैं कि अध्ययन के पूरा होने के बाद परिणाम क्या होगा।'
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स्लीप एप्निया ऊपरी वायु मार्ग में सोने के दौरान अवरोध की वजह से होता है। इसके दूसरे कारकों में मोटापा, पुरुष, आयु और आनुवांशिकता ऑब्सट्रक्टिव स्लिप एप्निया के सामान्य आबादी में बढ़ते कारणों से जुड़े हुए हैं।
इनमें से मोटापा स्लीप एप्निया का सबसे बड़ा जोखिम कारक है। यह अमूमन 12 से 15 साल के बच्चों में पाया गया। हल्के से मध्यम मोटापा स्लीप एप्निया के बढ़ते प्रसार के साथ जुड़ा हुआ है।
अब तक यह अध्ययन 13-14 स्कूलों में किया गया है, जिसमें फादर एंजल स्कूल और दिल्ली पब्लिक स्कूल आरके पुरम व दूसरे स्कूल शामिल हैं। इसमें पाया गया है कि निजी स्कूलों में ओएसए की 15-20 फीसदी दर पाई गई है।
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इस परियोजना के तहत आयोजकों के पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को शामिल करना लक्ष्य है, हालांकि अभी तक सिर्फ दक्षिण दिल्ली को कवर किया गया है।
निजी स्कूलों में ओएसए की अधिक मौजूदगी पर गुलेरिया ने कहा, 'सरकारी स्कूलों की तुलना में निजी स्कूलों के छात्रों की आहार व जीवन शैली खराब है। आंकड़े यह भी दिखाते हैं कि सरकारी स्कूलों के बच्चों ने ज्यादा शारीरिक गतिविधि की, जिसमें टहलना आदि भी है।'
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