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Corona से मुक्ति की ओर बढ़ रहे महाराष्ट्र में अब 'एंग्जायटी' की समस्या, तनाव से परेशान लोग 

संक्रमण अब भले ही खत्म होता दिख रहा हो, मगर इसके इफेक्ट अब भी कायम हैं. बीते दो वर्षों से कोरोना वायरस के कारण  घरों में कैद होकर रह गए लोगों को अब ‘एंग्जायटी’ की समस्या हो रही है.

Updated on: 07 Apr 2022, 07:54 AM

highlights

  • बच्चे और बुजुर्ग वर्ग भी कोरोना के साइड इफेक्ट दिख रहे हैं
  • हेल्पलाइन पर बीते साल में 2.5  लाख से ज्यादा कॉल आए हैं
  • महिलाएं नई बीमारियों की शिकार हो रही हैं

मुंबई:

कोरोना काल में महाराष्ट्र (Corona in Maharashtra) में सबसे अधिक मामले देखने को मिले थे. अब पूरे दो साल बाद यह राज्य कोरोना से मुक्ति की ओर बढ़ रहा है. यहां पर कोविड के केस बेहद कम हो चुके हैं और अस्पतालों में बेड्स खाली हैं. संक्रमण अब भले ही खत्म होता दिख रहा हो, मगर इसके इफेक्ट अब भी कायम हैं. बीते दो वर्षों से कोरोना वायरस के कारण  घरों में कैद होकर रह गए लोगों को अब ‘एंग्जायटी’ की समस्या हो रही है. किसी तरह की कोई बीमारी न होने के बावजूद हर वक्त किसी बात की चिंता के मामले लगातार सामने आ रहे हैं.  कोरोना की पहली लहर की शुरुआत से घर में बंद होकर रहने के कारण लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका असर ज्यादा दिखाई देने लगा था. इस कारण से महाराष्ट्र सरकार और  सरकार स्टेट साइकेट्रिस्ट एसोसिएशन ने कुछ संगठनों के साथ मिलकर हेल्पलाइन शुरू किया था.  इस हेल्पलाइन में राज्य के विशेषज्ञ डॉक्टर शामिल थे. इस हेल्पलाइन पर बीते साल में 2.5  लाख से ज्यादा कॉल आए हैं.

कोई बड़ा कदम उठाने से डर रहा 

नौकरी के कारण अमूमन दिन के समय बाहर रहने वाली आबादी के मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे अधिक असर देखने को मिला है. जॉब सिक्योरिटी न होने के कारण अब यह वर्ग ‘जैसा चल रहा है’ उसे ही समाधान मान रहा है. वह कोई बड़ा कदम उठाने से डर रहा है. जैसे यदि मुझे कुछ हुआ तो मेरे परिवार क्या होने वाला है, यह डर अब उसे सबसे अधिक सता रहा है. इस वजह से उसने खुद को हालात से समझौता करना शुरू कर दिया है.

मानसिक स्वास्थ्य पर इसका असर ज्यादा पड़ा

नौकरी नहीं करने वाली महिलाएं यानी हाऊस वाइफ भी इस महामारी की मार से बच नहीं सकी है. उनके मानसिक स्वास्थ्य पर इसका असर ज्यादा पड़ा. कम पैसों में घर चलाने की जिम्मेदारी आने के कारण अब महिलाएं नयी खरीदारी करने से पहले कई बार सोचती हैं या फिर उसे टाल देती है. उन्हें पति की नौकरी और बच्चों के करियर व पढ़ाई की चिंता सता रही है. इस कारण उनकी काफी दौड़-भाग हो रही है. उनका स्वभाव काफी चिड़चिड़ा सा हो गया है. नई बीमारियां भी उन्हें अपना शिकार बना रही हैं.

करियर की चिंता परेशान कर रही

बच्चे और बुजुर्ग वर्ग भी कोरोना के साइड इफेक्ट दिख रहे हैं. खासतौर पर बड़ी कक्षाओं के बच्चों को अब करियर की चिंता परेशान कर रही है. ऑनलाइन और ऑफलाइन के बीच वह सेंडविच बन गए हैं. ऐसे में अब उन्हें ये डर है कि वह प्रतियोगी परीक्षाओं को कैसे पास करेंगे. वहीं बुजुर्गों की मानसिक स्थिति ऐसी हो चुकी है     कि उन्हें घर से बाहर निकलने में डर लगने लगता है. लॉकडाउन में सोशल मीडिया पर सक्रियता और फिर वहां आने वाली खबरों ने  उनके डर को और बढ़ा दिया.