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अगर आपका लाडला बड़े सपने देखने में माहिर है तो हो जाएं सावधान, उसे दबोच रही है ये बीमारी

अगर आपका बच्‍चा अपनी उम्र से बड़ी बाते करता है और बड़े सपने देखने में माहिर है तो सावधान हो जाएं.

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Drigraj Madheshia
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अगर आपका लाडला बड़े सपने देखने में माहिर है तो हो जाएं सावधान, उसे दबोच रही है ये बीमारी
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अगर आपका बच्‍चा अपनी उम्र से बड़ी बाते करता है और बड़े सपने देखने में माहिर है तो सावधान हो जाएं. वह बीमार है. वह अटेंशन डिफेंसिट हाइपर एक्टिव डिसऑर्डर (ADHD) का शिकार है. ऐसे बच्‍चे पढ़ने-लिखने व मैथ्स के कंसेप्ट समझने में इन्हें काफी परेशानी होती है. हाइपर एक्टिविटी लेवल, सुनने की क्षमता कम रखने और एकाग्रता में कमी होने से ऐसे बच्चे पढा़ई में पिछड़ जाते है. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI)और यूनेस्को (UNESCO) की रिपोर्ट के अनुसार बायोलॉजिकल होने के कारण भारत में 3 में से 1 लड़का और 4 में से एक लड़की बचपन से हाइपर एक्टिव होते हैं. एडीएचडी अ2सर बचपन में शूरू होता है और बड़ी उम्र तक जारी रह सकता है. इससे आत्‍मविश्‍वास की कमी,  रिश्‍तों में परेशानी,  स्कू‍ल या काम करने परेशानी हो सकती है. 

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डॉ अतुल अग्रवाल बताते हैं कि इसकी जांच के लिए कोई तकनीकी टेस्ट भी नहीं है. सिर्फ लक्षणों से ही इस न्यूरो डवलपमेंट डिसऑर्डर की पहचान होती है. जिन बच्चों में 5 में से 6 लक्षण मिलते हैं, उन्हें इसका शिकार माना जाता है. पहचान के बाद बच्चों को स्टिमुलेट्स टेबलेट्स दी जाती है. हालांकि, ज्यादातर डॉक्टर इससे बचते हैं, क्योंकि इससे साइड इफेक्ट की आशंका ज्यादा रहती है.ऐसे बच्‍चों से ज्यादा अभिभावकों को काउंसलिंग की जरुरत होती है. बच्चों को दवा की जगह थैरेपी दी जानी चाहिए. स्कूल जाने वाले कई किशोर उम्र के स्टूडेंट्स में डायग्नोसिस से पता चला है कि वे मेंटल डिसऑर्डर से ग्रसित होते हैं. उनके एकेडमिक स्किल में बड़े स्तर पर परिवर्तन देखने को मिलता है.

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लक्षण पहचानने में मिली सफलता

वहीं डॉ रवि खन्‍ना के अनुसार अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिव डिसऑर्डर (ADHD) 7 वर्ष से कम उम्र में बच्चों को घेरना शुरू करता और किशोर अवस्था तक रहता है. बातों की अनदेखी करना, हाइपर एक्टिविटी और इम्पल्सिविटी इसके लक्षण हैं. इन लक्षणों से ब्रेन के सेंसेटिव सिस्टम में मुश्किलें आने लगती है. बीमारी का असर दो तरीके से होता है.

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कॉमन मेंटल डिसऑर्डर, जिसमें बच्चों का भावनात्मक विकास बाधित होने लगता है और वे असंवेदनशील हो जाते है. वहीं जटिल डिसऑर्डर की चपेट में आकर बच्चे जल्दी धैर्य खोकर गुस्सा करने लगते हैं, लापरवाही और बड़बोलेपन का शिकार हो जाते है. ज्यादा नींद लेना और बोलने में देरी करना जैसी आदतें भी दिखने लगती है. इन लक्षणों पर अभिभावकों के लिए नियंत्रण करना मुश्किल हो जाता है.

बच्चों को दूसरों के सामने न डाटें

आमतौर पर 3 से 4 साल के हाइपर एक्टिव बच्चों में आत्मसम्मान की भावना विकसित हो जाती है. ऐसे में अगर बच्चों को आप उनके दोस्तों या रिश्तेदारों के सामने डांटते हैं और मारते हैं तो उन्हें बुरा लगता है और उनके आत्मसम्मान को धक्का लगता है. अगर बच्चों को आप अक्सर सबके सामने डांटते हैं तो इससे बच्चों का आत्मविश्वास भी कमजोर होता है और वो बाद में अपनी हाइपर एक्टिविटी को खो सकते हैं. अगर बच्चे ने कोई गलती की है तो कोशिश करें कि उसे अकेले में समझाएं और शांति के साथ समझाएं न कि चिल्लाकर बताएं. बच्चों से गलतियां होना स्वाभाविक है .

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बच्चों को कभी नहीं पीटें

चाइल्‍ड साइकाेलॉजिस्‍ट हरमीत कौर बताती हैं कि बहुत से माता-पिता बच्चों को छोटी-छोटी गलतियों पर मारने लगते हैं. मार खाने पर बच्चे सहम जाते हैं और डर जाते हैं इसलिए संबंधित काम को सुधारने का प्रयास करने लगते हैं. लेकिन अगर आप बच्चों को बहुत ज्यादा मारते-पीटते हैं और अक्सर ही ऐसा करते हैं तो बच्चों का डर धीरे-धीरे जाता रहता है और इसकी जगह नफरत और गुस्से की भावना आनी शुरू हो जाती है. ऐसे में कुछ समय तक बच्चे गुस्से को कंट्रोल करते हैं और उनका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है जबकि थोड़े दिन बाद ही वो आपको गुस्से का जवाब देने लगते हैं.

बच्चों को व्यवहारिक ज्ञान देना जरूरी है

कई मां-बाप बच्चों को दिनभर सिर्फ पढ़ने के लिए ही टोकते रहते हैं. बार-बार टोकने से बच्चों में खीझ पैदा होने लगती है और वो गुस्सा करने लगते हैं. हाइपर एक्टिव बच्चों का ज्यादातर दिमाग खेलने-कूदने में ही लगा रहता है. लेकिन ऐसे बच्चे आम बच्चों से कम समय में ही अपनी पढ़ाई पूरी कर सकते हैं इसलिए बच्चों पर दिनभर पढ़ने का दबाव न बनाएं. उन्हें खुद से थोड़ा समय खेलने के लिए दें ताकि उन्हें किताबी के साथ-साथ सामाजिक और व्यवहारिक ज्ञान भी अच्छा हो.

बच्चों की गतिविधि पर रखें नजर

बच्चे अगर अचानक से बेवजह गुस्सा करने लग जाएं तो उनकी तमाम गतिविधियों पर नजर रखना शुरू कर दें. कई बार दोस्तों से लड़ाई-झगड़े के कारण, स्कूल में बार-बार डांट खाने के कारण या किसी के बार-बार परेशान करने के कारण भी बच्चों के स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है.

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ऐसी स्थिति में आप बच्चों के स्कूल टीचर या स्कूल ले जाने वाली गाड़ी के ड्राइवर से भी पूछ सकते हैं. कई परिवारों में शुरुआत से ही बच्चों और खासकर लड़कियों को तमाम तरह के बंधनों में रखा जाता है, जिसके कारण कई बार बच्चे घर के अंदर या बाहर कुछ गलत होने पर मां-बाप से कुछ नहीं बताते हैं और सबकुछ सहते जाते हैं. इन बातों का बालमन पर बुरा प्रभाव पड़ता है. इसके कारण भी बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं.

Source : News Nation Bureau

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