Gestational Diabetes: गर्भावस्था के दौरान मधुमेह (GDM) न केवल न्यूज़ीलैंड बल्कि दुनिया भर में एक बढ़ती हुई समस्या है. जिन महिलाओं को गर्भावधि मधुमेह होता है उन्हें मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का भी अधिक खतरा होता है. ऐसे में डॉक्टर उन्हे यही सलाह देते हैं कि उन्हे नियमित मानसिक स्वास्थ्य स्क्रीनिंग (Mental health screening) करवानी चाहिए. गर्भावास्था में होने वाली डायबिटीज का प्रभाव क्या प्रेग्नेंसी के बाद भी रहता है और ये किन अन्य बिमारियों को न्यौता देती है ये भी आपके लिए जानना बेहद जरूरी है.
एक स्टडी में ये बात सामने आयी है कि न्यूज़ीलैंड की 16 में से एक महिला गर्भावधि मधुमेह का अनुभव करती हैं और एशियाई/भारतीय और प्रशांत द्वीप की महिलाओं में यह समस्या अधिक होती है. ऑकलैंड सिटी अस्पताल के आंकड़ों के अनुसार, इन देशों में पांच में से एक महिला गर्भावधि मधुमेह (Gestational Diabetes) का शिकार हो सकती है. इसके अलावा, गंभीर बात यह है कि 2013 से 2021 के बीच गर्भावधि मधुमेह की घटनाओं में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो लगभग 9 प्रतिशत से बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई है. यह एक गंभीर समस्या है क्योंकि गर्भावधि मधुमेह की बीमारी मां और बच्चे दोनों के लिए कई स्वास्थ्य जोखिम पैदा करती है. महिलाओं को जन्म के दौरान चोटें और सीज़ेरियन द्वारा प्रसव कराने का अधिक खतरा रहता है क्योंकि उनके शिशु सामान्य से बड़े हो सकते हैं. साथ ही प्रसव के बाद शिशु को तेजी से और सांस लेने जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं.
चिंताजनक बात यह है कि गर्भावधि मधुमेह वाली 50 प्रतिशत तक महिलाएं बाद में टाइप 2 मधुमेह की शिकार हो जाती हैं, जिसके कारण किडनी और हृदय रोग और आंखों की समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा बहुत कम लोग ही ये जानते हैं कि गर्भावधि मधुमेह (Gestational Diabetes) मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है. एक रिसर्च से पता चलता है कि मधुमेह और मानसिक स्वास्थ्य के बीच जैविक संबंध भी हैं. रक्त में उच्च ग्लूकोज का स्तर मस्तिष्क के सामान्य कार्यों को बाधित कर सकता है और मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में सूजन पैदा कर सकता है. पिछले दशक में कई अध्ययनों ने मस्तिष्क में सूजन और अवसाद के बीच संबंध पाया है.
ये हार्मोनल असंतुलन नींद के पैटर्न में भी गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं जो अवसाद और चिंता के सामान्य लक्षण होते हैं. अच्छी खबर यह है कि जब ग्लूकोज (glucose) का स्तर नियंत्रित होता है तो मानसिक स्थिति में भी सुधार होता है. यही कारण है कि गर्भावधि मधुमेह से ग्रस्त महिलाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य स्क्रीनिंग (Mental health screening) आवश्यक है.
हमें उन महिलाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की भी आवश्यकता है जो सबसे अधिक जोखिम में हैं. गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य की जांच के साथ-साथ प्रसव के तीन महीने बाद भी मानसिक स्वास्थ्य की स्क्रीनिंग होनी चाहिए. मानसिक स्वास्थ्य स्क्रीनिंग टेस्ट एक सरल तरीका होगा ताकि किसी भी उभरते मानसिक विकार की पहचान समय पर की जा सके और उसका उपचार किया जा सके.