भारत में अब तक इंसेफेलाटिस के 460 मामले दर्ज, जानिए क्या हैं कारण-बचाव
मानसून के दौरान इंसेफेलाइटिस से हर साल सैंकड़ों बच्चे अपनी जान गंवा बैठते है। इस बीमारी को जपानी बुखार व दिमागी बुखार भी कहा जाता है।
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के बाबा राधव दास मेडिकल कॉलेज में 5 दिनों के भीतर 60 बच्चों की इंसेफेलाइटिस समेत कई कारणों से जान चली गई। मानसून के दौरान इंसेफेलाइटिस से हर साल सैंकड़ों बच्चे अपनी जान गंवा बैठते है। इस बीमारी को जपानी बुखार व दिमागी बुखार भी कहा जाता है। यह बीमारी चावलों के खेतों में पनपने वाले मादा मच्छर क्यूलेक्स ट्राइटिनीओरिंकस के काटने से होती है।
क्य़ा होता है इंसेफेलाइटिस
इंसेफेलाइटिस एक जानलेवा दुर्लभ बीमारी होती है जो दिमाग में 'एक्यूट इंफ्लेमेशन के कारण होती है। मेडिकल न्यूज टूडे के अनुसार, मेडिसीन क्षेत्र में 'एक्यूट' का शब्द का प्रयोग तब किया जाता है जब बीमारी अचानक दिखाई देती है और तीव्र गति से बढ़ती है। इंसेफेलाइटिस से पीड़ित मरीज को तुंरत इलाज की आवश्यकता होती है। ये मच्छर के काटने से होने वाला वायरल बुखार होता है। इसमें अगर मरीज जीवित बच भी गया तो पैरालासिस का शिकार होने की आशंका बनी रहती है।
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इंसेफेलाइटिस के कारण
इस बीमारी का खतरा सभी उम्र के लोगों में होता है। हालांकि कमजोर इम्यून सिस्टम के चलते इसका शिकार सबसे ज्यादा बच्चे होते है। न्यूयार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर इस बीमारी का कारण बैक्टिरीयल इंफेक्शन या मच्छर का काटना होता है। कुछ मामलों में यह अन्य संक्रामक बीमारियों के कारण भी फैल जाता हैं। हालांकि इंसेफेलाइटिस गैर-संक्रामक बीमारी होती है।
लक्षण
इंसेफेलाइटिस में बुखार, सिरदर्द जैसे लक्षण ही देखने को मिलते हैं। 250 में एक मामले में अचानक हाई फीवर, सिरदर्द, अकड़ना और कोमा आदि जैसे लक्षण सामने आते है। इन लक्षण को दिखाने वाले रोगियों की मृत्यु दर लगभग 30 प्रतिशत है।
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कैसे रोके
इंसेफेलाइटिस का बचाव ही इलाज माना जाता है। ऐसे में मानसून के दौरान मच्छरों से खुद को बचाने में ही भलाई समझी जाती है। इसके अलावा अस्पतालों में इंसेफेलाइटिस से बचने के लिए कुछ वैक्सीन भी उपलब्ध होती है। इसके साथ ही लोग सुअरों के संपर्क में आने से बचना चाहिए। सुअर इंसेफेलाइटिस के वायरस का वाहक होता है।
क्या कहते है भारतीय आकंडें
भारत में 1955 में तमिलनाडु में सबसे पहला मामला सामने आया था। 1972 तक पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम, बिहार, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, गोवा जैसे राज्यों में ये बीमारी फैल चुकी थी। इस बीमारी को लेकर भारत में पहली बार गंभीरता 2005 में आई, जब करीब 1400 बच्चों की मौत हो गई। जिसके बाद यह सरकार की चिंता का विषय़ बन गई। हालांकि सबसे ज्यादा प्रभावित उत्तर प्रदेश ही हुआ। इस साल इंसेफेलाइटिस के करीब 460 मरीज अब तक भर्ती हो चुके है।
कई रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले 3 दशकों में भारत में करीब 50 हजार बच्चे इस बीमारी के शिकार हो चुके है।
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