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वायु प्रदूषण से आपके शरीर के कई हिस्सों को पहुंच रहा है नुकसान, बीमारियों का खतरा बढ़ा

चिकित्सकों का कहना है कि वर्तमान वायु की गुणवत्ता लोगों के लिए खतरा बनती जा रही है. यह सीधे हमारी त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती है और चकत्ते और जलन की वजह हो सकती है.

Updated on: 12 Nov 2018, 02:39 PM

नई दिल्ली:

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और देश के कई शहरों में प्रदूषण का खतरा जानलेवा बना हुआ है. दिल्ली में दिवाली के बाद हवा इतनी बिगड़ गई कि लोगों को सांस लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा. अगले कुछ दिनों तक हवा में सुधार की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है. जहरीली होती हवा के कारण सेहत के साथ शरीर के कई हिस्सों को भी बेहद नुकसान पहुंच रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर के 18 साल से कम उम्र के 93 फीसदी बच्चे प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं. ऐसे में हमें अपने भविष्य को लेकर अनभिज्ञ नहीं रहना चाहिए. रिपोर्ट के मुताबिक, पांच साल से कम उम्र के 10 बच्चों की मौत में से एक बच्चे की मौत प्रदूषित हवा की वजह से हो रही है.

त्वचा को भारी नुकसान

चिकित्सकों का कहना है कि वर्तमान वायु की गुणवत्ता लोगों के लिए खतरा बनती जा रही है. यह सीधे हमारी त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती है और चकत्ते और जलन की वजह हो सकती है. इस प्रदूषण से बाल भी झड़ते हैं और त्वचा पर दाग-धब्बे होने लगते हैं. इसके अलावा दूषित वायु का असर मस्तिष्क पर भी होता है.

आंखों में जलन

इसकी वजह से आंखों और नाक में पानी आ सकता है. लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से आंखों की रोशनी भी कम हो सकती है. प्रदूषण से आंखों में जलन, रोशनी में देखने में दिक्कत आने की शिकायतें भी आती हैं.

बीएलके सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के रेस्पिरेटरी मेडिसिन, एलर्जी एंड स्लीप डिसऑर्डर के सीनियर कंसलटेंट व एचओडी डॉ संदीप नायर कहते हैं, 'वायु में मौजूद 2.5 माइक्रोन (पीएम 2.5) से छोटे कण सीधे सांस लेने के रास्ते हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं. हमें सांस लेने में दिक्कत, खांसी बुखार और यहां तक कि घुटन महसूस होने की समस्या भी हो सकती है. हमारा नर्वस सिस्टम भी प्रभावित हो जाता है और हमें सिरदर्द और चक्कर आ सकता है. अध्ययनों में बताया गया है कि हमारे दिल को भी प्रदूषण सीधे तौर पर नुकसान पहुंचाता है.'

फेफड़ों को खतरा

वायु प्रदूषण दीर्घकाल में फेफड़े को नुकसान पहुंचाता है और यह सीओपीडी के जोखिम का एक कारक है. इस स्थिति से पीड़ित पांच प्रतिशत लोगों में अल्फा-1-एंटीट्रिप्सिन नामक एक प्रोटीन की कमी होती है, जो फेफड़ों को खराब कर देता है और यकृत को भी प्रभावित कर सकता है.

जोड़ों को भी नुकसान

चिकित्सक बताते हैं कि हवा में पीएम 2.5 सांस लेने के रास्ते खून में भी मिल जाते हैं. इससे फेफड़ों में मौजूद प्रोटीन भी बदल जाती है. इसके कारण शरीर हमारे अंदर मौजूद प्रोटीन को बाहरी समझकर उनसे लड़ने लगता है. इससे जोड़ों की बीमारियां भी होती हैं.

बढ़ रही हैं बीमारियां

इसके अलावा वायु प्रदूषण से कई सारे बीमारियों ने लोगों के शरीर में घर कर लिया है. जिसमें स्ट्रोक के मामलों का बढ़ना भी शामिल है. सूक्ष्म वायु प्रदूषण कण युवाओं और स्वस्थ लोगों की नसों और नब्ज की अंदरूनी परत को नुकसान पहुंचाकर उनमें स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकते हैं.

वहीं सांस की बीमारियों, आंखों और त्वचा के संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, और अस्थमा के मरीजों की संख्या तीन गुना बढ़ गई है.

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नोएडा के जेपी अस्पताल में पल्मोनरी एण्ड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. ज्ञानेन्द्र अग्रवाल ने कहा इस मौसम में प्रदूषण के इस स्तर के कारण अस्थमा के मरीजों की संख्या तीनगुना बढ़ गई है और यह संख्या और यदि प्रदूषण में सुधार नहीं हुआ तो यह संख्या और भी बढ़ सकती है.