प्री-टर्म बर्थ चिंता का विषय, हर दस में से एक बच्चा 37 हफ्ते से पहले पैदा हो रहा : डब्ल्यूएचओ

प्री-टर्म बर्थ चिंता का विषय, हर दस में से एक बच्चा 37 हफ्ते से पहले पैदा हो रहा : डब्ल्यूएचओ

प्री-टर्म बर्थ चिंता का विषय, हर दस में से एक बच्चा 37 हफ्ते से पहले पैदा हो रहा : डब्ल्यूएचओ

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IANS
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world prematurity day

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दुनिया में हर साल लगभग 1.5 करोड़ बच्चे समय से पहले जन्म लेते हैं, और यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने प्रीमैच्योरिटी को दुनिया की सबसे बड़ी नवजात स्वास्थ्य समस्याओं में गिना है। शोध बताते हैं कि यह संख्या लगातार बढ़ रही है। बॉर्न टू सून: द ग्लोबल एक्शन रिपोर्ट के अनुसार, हर 10 में से 1 बच्चा 37 हफ्ते से पहले पैदा होता है। यही वजह है कि लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 17 नवंबर को वर्ल्ड प्रीमैच्योरिटी डे मनाया जाता है।

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2020 में भारत अकेला ऐसा देश है जहां हर साल लगभग 30 लाख प्रीमैच्योर बच्चे जन्म लेते हैं और ये संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा थी। कई अध्ययनों में पाया गया है कि गर्भावस्था के दौरान संक्रमण, उच्च रक्तचाप, गर्भकालीन मधुमेह, वायु प्रदूषण और माताओं का पोषण स्तर समय से पहले जन्म के प्रमुख कारक हैं।

2019 में ‘द लैंसेट’ में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन ने बताया कि वायु प्रदूषण दुनिया में लगभग 30 लाख प्रीमैच्योर जन्मों से जुड़ा पाया गया। वहीं, एक अन्य शोध में पता चला कि जिन महिलाओं को लगातार उच्च तनाव रहता है, उनमें प्रीमैच्योर डिलीवरी का जोखिम लगभग 40 फीसदी तक बढ़ जाता है। प्रीमैच्योर बच्चों का जन्म केवल जन्म के समय नहीं, बल्कि आगे के जीवन पर भी असर डालता है। अमेरिका की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) की एक लंबी अवधि वाली स्टडी में पाया गया कि समय से पहले जन्मे बच्चों में फेफड़ों से जुड़े रोग, सीखने में कठिनाई, दृष्टि संबंधी समस्याएं और भावनात्मक चुनौतियां होने की आशंका अधिक रहती है। हालांकि, सही देखभाल मिलने पर इन बच्चों का विकास सामान्य बच्चों जैसा हो सकता है।

एनआईसीयू में होने वाली प्रगति ने हाल के वर्षों में मृत्यु दर को काफी कम किया है। 2022 में यूरोप में किए गए एक बड़े अध्ययन में दिखाया गया कि आधुनिक एनआईसीयू तकनीक- जैसे रेस्पिरेटरी सपोर्ट सिस्टम, माइक्रोसेंसर्स और एआई-मॉनिटरिंग ने 28–32 हफ्तों में जन्मे बच्चों की जीवित रहने की दर 20–25 फीसदी तक बढ़ा दी।

इसी तरह, कंगारू मदर केयर (केएमसी) पर कोलंबिया और भारत में हुई संयुक्त रिसर्च ने साबित किया कि स्किन-टू-स्किन संपर्क देने से प्रीमैच्योर बच्चों का तापमान बेहतर रहता है, संक्रमण कम होता है और मृत्यु का खतरा लगभग 40 फीसदी तक घट सकता है। यह दुनिया में सबसे सस्ती लेकिन सबसे प्रभावी तकनीकों में से एक है।

भविष्य की तकनीकें भी शोधकर्ताओं के ध्यान का केंद्र बनी हुई हैं। अमेरिका के सीएचओपी फीटल रिसर्च सेंटर ने आर्टिफिशियल वूंब (कृत्रिम गर्भ) पर परीक्षण किए हैं, जिनमें 23–24 हफ्तों के भ्रूण को विशेष तरल वातावरण में सुरक्षित रखने में सफलता मिली। इस अध्ययन ने वैज्ञानिकों को यह विश्वास दिया है कि आने वाले वर्षों में अत्यधिक समय से पहले जन्मे बच्चों की जीवित रहने की संभावना अच्छी हो सकती है। हालांकि यह तकनीक अभी प्रयोगशाला में है, लेकिन इसे नवजात चिकित्सा में संभावित क्रांति माना जा रहा है।

वर्ल्ड प्रीमैच्योरिटी डे का उद्देश्य केवल जागरूकता बढ़ाना नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान, माता-पिता के समर्थन और बच्चों के लिए सुरक्षित चिकित्सा वातावरण को बढ़ावा देना है। अध्ययनों से यही पता चलता है कि समय पर देखभाल, मां की सेहत, आधुनिक चिकित्सा और समाज की समझ ये चार बातें मिलकर लाखों प्रीमैच्योर बच्चों की जान बचा सकती हैं और उन्हें एक स्वस्थ जीवन दे सकती हैं।

--आईएएनएस

केआर/

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