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मध्य प्रदेश में प्रथम चरण का लोकसभा चुनाव काफी दिलचस्प, इन दिग्गजों में कांटे की टक्कर

इस चरण में जिन 6 सीटों पर चुनाव हो रहा है, वे सभी विंध्य और महाकौशल की हैं. मुख्यमंत्री कमलनाथ और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह, दोनों ही महाकौशल से आते हैं

Updated on: 29 Apr 2019, 06:50 AM

ऩई दिल्ली:

देश में चौथे और मध्यप्रदेश में पहले चरण का मतदान आज होने जा रहा है. चुनाव का यह चरण विविधता से भरा, लेकिन काफी दिलचस्प है. प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के लिए यह चरण बहुत मायने रखता है. इस चरण में जिन 6 सीटों पर चुनाव हो रहा है, वे सभी विंध्य और महाकौशल की हैं. मुख्यमंत्री कमलनाथ और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह, दोनों ही महाकौशल से आते हैं. ऐसे में उनकी पुरजोर कोशिश होगी कि प्रदर्शन बेहतर हो. सीधी, शहडोल, मंडला, बालाघाट, जबलपुर, छिंदवाड़ा में हो रहा चुनाव कहीं कांटे का तो कहीं रोचक बन गया है.

जबलपुर (सामान्य) में कांटे का मुकाबला है, जहां वर्ष 2014 में भी आपस में दो-दो हाथ कर चुके भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह और देश के जाने-माने अधिवक्ता विवेक तन्खा फिर आमने-सामने हैं. तब राकेश सिंह ने विवेक तन्खा को हराया था. भाजपा को 56.34 प्रतिशत यानी 5,64,609 मत मिले थे, जबकि कांग्रेस को 3,55970 यानी 35.52 प्रतिशत मत मिले थे. यूं तो भाजपा को 8 चुनावों में जीत मिली है, जबकि कांग्रेस 7 चुनाव जीत चुकी है. मौजूदा हालात में जबलपुर लोकसभा की 8 विधानसभा सीटों में 4 बरगी, जबलपुर पूर्व, जबलपुर उत्तर, जबलपुर पश्चिम पर कांग्रेस और 4 पाटन, जबलपुर कैंट, पनागर और सिहोरा पर भाजपा का कब्जा है. जबकि वर्ष 2013 में 6 विधानसभा सीटों पर भाजपा और 2 पर कांग्रेस काबिज थी.

जाहिरन इस बार मुकाबला सीधा है, लेकिन शहरी मतदाता खामोश है, जबकि ग्रामीण इलाकों में पाकिस्तान पर चर्चाएं होती हैं. यह नतीजों को कितना प्रभावित करेगी, नहीं मालूम. दूसरी महत्वपूर्ण है सीधी (सामान्य) सीट है, जहां पिछली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह राहुल भाग्य आजमा रहे हैं. राहुल का अच्छा खासा प्रभाव है तथा उनके पिता तथा कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे दिवंगत अर्जुन सिंह का इलाका माना जाता है. हाल के विधानसभा चुनाव में चुरहट विधानसभा से अजय सिंह की हार ने मगर सबको चौंका दिया. यहां उनका मुकाबला मौजूदा सांसद रीति पाठक से है. हालांकि बीच-बीच में मौजूदा सांसद का विरोध भी दिखा. लेकिन चुनावी बेला में बीते 26 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने सीधी में एक बड़ी जनसभा कर भाजपा की राह को आसान करने की कोशिश की है.

वर्ष 2014 में भाजपा की मौजूदा सांसद रीति पाठक ने जीत दर्ज की थी, जिन्हें 4 लाख 75 हजार 678 मिले थे. कांग्रेस के इंद्रजीत पटेल दूसरे क्रम पर रहे जिन्हें 3 लाख 67 हजार 632 वोट मिले. सीधी की खासियत है कि यहां कभी किसी दल का दबदबा नहीं रहा. हालांकि लगातार दो बार यहां से भाजपा जीत चुकी है, ऐसे में अब हैट्रिक की कोशिश होगी. अजय सिंह जैसे कद्दावर नेता के चुनाव लड़ने से बहुतों की निगाहें इस सीट पर हैं. कांग्रेस को चुनौती यह है कि हाल में हुए विधानसभा चुनावों में 8 में से 7 सीटें भाजपा ने जीती थीं और केवल एक पर कांग्रेस जीत पाई थी. इसमें सीधी, सिहावल, चितरंगी, ब्यौहारी, चुरहट, धौहानी, सिंगरौली, देवसर विधानसभा क्षेत्र हैं.

शहडोल (अनुसूचित जनजाति) संसदीय सीट से पिछली बार भाजपा की विधायक रहीं प्रमिला सिंह अब कांग्रेस उम्मीदवार हैं. वहीं कांग्रेस से 2016 के उपचुनाव में हार का सामना कर चुकीं हिमाद्री सिंह अब भाजपा उम्मीदवार हैं. यकीनन मुकाबला दिलचस्प है और मतदाता दोनों ही दलों के पैराशूट उम्मीदवारों को करीब से जानते हैं. ऐसे में ऊंट किस करवट बैठेगा, यह प्रत्याशियों और कार्यकर्ताओं की मेहनत से ज्यादा मतदाताओं के मूड पर निर्भर है, क्योंकि शहडोल का मतदाता खामोश कम ऊहोपोह में ज्यादा है.

मौजूदा भाजपा सांसद ज्ञान सिंह का टिकट कटना और हिमाद्री को कांग्रेस से भाजपा में एंट्री मिलने से पूरा लोकसभा चुनाव एक तरह से यू-टर्न जैसी स्थिति में है. भौगोलिक हिसाब से शहडोल, उमरिया, अनूपपुर, कटनी जिले की 8 सीटें जिसमें जयसिंहनगर, जैतपुर, मानपुर, बांधवगढ़ में भाजपा जबकि अनूपपुर, कोतमा, पुष्पराजगढ़, बड़वारा में कांग्रेस काबिज है. इसी 23 अप्रैल को राहुल गांधी की शहडोल के लालपुर हवाइ पट्टी पर हुई जनसभा के बाद कांग्रेस उत्साह में जरूर है. लेकिन दोनों ही दलों में जबरदस्त धड़ेबाजी भी कम नहीं है. प्रत्याशियों की अदला बदली पर मतदाता का कैसा रुख रहेगा यह देखना होगा! दलबदल की स्वीकार्यता और पार्टियों के प्रभाव की असल परीक्षा के लिहाज से शहडोल के चुनाव को दिलचस्प माना जा रहा है.

गोंडवंश की राजधानी रहा मंडला अपनी अलग पहचान के लिए जाना जाता है. मंडला (अनुसूचित जनजाति) लोकसभा डिंडोरी और मंडला सहित सिवनी और नरसिंहपुर जिले के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है. यहां से सबसे ज्यादा 9 बार कांग्रेस 5 बार भाजपा से वह भी फग्गन सिंह कुलस्ते ही जीते हैं. अभी 6 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस तो 2 पर भाजपा काबिज है. इस बार मुकाबला मुकाबला फग्गन सिंह कुलस्ते और गोंडवाना पार्टी के राष्ट्रीय संगठन पद को छोड़कर कांग्रेस में आए कमल मरावी के बीच है.

विधानसभा की 8 सीटों- शहपुरा, निवास, लखनादौन, डिंडौरी, मंडला, गोटेगांव, बिछिया, केवलारी में सिमटा मंडला सतपुड़ा की पहाड़ियों और वनों से घिरा है. जाहिर है, कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला है. लेकिन विशुद्ध आदिवासी बहुल इस सीट पर मतदाता अलग-अलग क्षेत्रों के हैं. ऐसे में खामोशी के बीच सबकी राय बंटी हुई है. नतीजे ही बताएंगे कि ऊंट किस करवट बैठता है.

मप्र की सबसे चर्चित और हाइप्रोफाइल सीट छिंदवाड़ा (सामान्य) कांग्रेस से लिए अभेद्य रही है. यहां पैंतीस सालों से पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ जीत दर्ज करवाते आए हैं. बस एक बार सुंदरलाल पटवा से हारे थे. अब मुख्यमंत्री के पुत्र नकुलनाथ लड़ रहे हैं. महाकौशल और विंध्य की यह अकेली सीट है, जहां पर मतदाता खुलकर कांग्रेस के पक्ष में बोल रहा है. यहां से भाजपा ने नत्थन शाह को प्रत्याशी बनाया है जो 2013 में जुन्नारदेव सीट से विधायक चुने गए थे.

इस लोकसभा सीट में सात विधानसभा सीटें हैं जिसमें से दो सीट सौंसर और पांढुर्णा नागपुर से लगी है, जबकि जुन्नारदेव, परासिया, जामई, अमरवाड़ा और चौरई आदिवासी बहुल हैं. वर्तमान में सभी सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है.

वैनगंगा नदी के किनारे दो छोरों में बालाघाट (सामान्य) लोकसभा क्षेत्र फैला हुआ है. खनिज उत्पादन की वजह से खास पहचान वाली बालाघाट-सिवनी लोकसभा सीट पर भाजपा के बागी उम्मीदवार की वजह से मुकाबला रोचक हो गया है. मौजूदा सांसद बोधसिंह भगत का टिकट काटकर ढालसिंह बिसेन को प्रत्याशी बनाया गया, जिनका जमकर विरोध हुआ. लेकिन बोधसिंह भगत ने निर्दलीय पर्चा भर दिया. जबकि कांग्रेस ने मधुसिंह भगत को टिकट दिया है जो हाल ही में परसवाड़ा से विधानसभा चुनाव हार चुके हैं.

इस लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की 8 सीटें आती हैं जो बैहर, बालाघाट, बरघाट, लांजी, वारसिवनी, सिवनी, पारसवाड़ा, कटंगी हैं. इनमें 4 पर कांग्रेस, 3 पर भाजपा काबिज है. वर्ष 1998 में भाजपा ने यहां पर अपना पहला चुनाव जीता और 5 बार से सिलसिला अब तक जारी है. भाजपा की नजर जहां लगातार छठी जीत पर है, वहीं कांग्रेस भी पूरे दमखम से जुटी है.

निश्चित रूप से मप्र में आम चुनाव-2019 का आगाज 6 लोकसभा सीटों से हो रहा है. ये सभी 6 सीटे किसी न किसी कारण विविधताओं से भरी हैं. अब इन पर मतदाता किस तरह से भरोसा जताता है, यह देखना दिलचस्प होगा.