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जानिए...RLP-BJP के गठबंधन से कैसे बदलेंगे राजस्थान के सियासी समीकरण, कांग्रेस को कितना नुकसान ?

माना जा रहा है बीजेपी के साथ हनुमान बेनीवाल के गठबंधन से नागौर ही नहीं, बल्कि बाड़मेर, जैसलमेर, राजसमंद और जाट बेल्ट की सीटों पर प्रभाव पड़ेगा

Updated on: 04 Apr 2019, 01:08 PM

जयपुर:

लोकसभा चुनाव 2019 (Loksabha Election 2019) के लिहाज से राजस्थान (Rajasthan) की सियासत से एक बड़ी खबर आज उस समय सामने आई, जब एनडीए (NDA) के घटक दलों में हाल ही में बना नया दल रालोपा (RLP) भी शामिल हो गया. जयपुर स्थित बीजेपी (BJP) मुख्यालय में केंद्रीय मंत्री और राजस्थान लोकसभा चुनाव प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन लाल सैनी की मौजूदगी में रालोपा के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल (Hanuman Beniwal) ने एनडीए के साथ गठबंधन कर लिया. इसी के साथ प्रकाश जावड़ेकर ने घोषणा की कि नागौर सीट गठबंधन के लिए छोड़ी है, अब नागौर से हनुमान बेनिवान गठबंधन के प्रत्याशी होंगे. 

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एनडीए (NDA) का घटक दल बनने पर हनुमान बेनीवाल ने कहा पुलवामा हमले के बाद लगातार युवाओं का दवाब आ रहा था, जिस कारण देश हित में मैंने फैसला लिया है और हम ना केवल राजस्थान बल्कि हरियाणा दिल्ली में भी रालोपा के सभी कार्यकर्ता मोदी को एक बार फिर प्रधानमंत्री बनाने की मुहिम में जुड़ जाएंगे.

हालांकि बीजेपी के कई नेताओं से मतभेद को लेकर जब हनुमान बेनीवाल से सवाल किया तो उन्होंने कहा यह गठबंधन राष्ट्रहित में है, उन बातों के लिए समय नहीं है. प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि अब नागौर से हनुमान बेनीवाल गठबंधन के प्रत्याशी होंगे और बाकी 5 सीटों पर भी जल्द फैसला हो जाएगा.

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आरएलपी (RLP) प्रमुख हनुमान बेनीवाल राजस्थान (Rajasthan) के कद्दावर जाट नेता हैं. ऐसे में माना जा रहा है बीजेपी के साथ हनुमान बेनीवाल के गठबंधन से नागौर ही नहीं, बल्कि बाड़मेर, जैसलमेर, राजसमंद और जाट बेल्ट की सीटों पर प्रभाव पड़ेगा. जिसका पूरा फायदा अब बीजेपी को मिलेगा. वहीं यह गठबंधन कांग्रेस के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है.

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इसके पीछे वजह यह है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में भी हनुमान बेनीवाल की पार्टी ने 2.4 फीसदी के वोट शेयर के साथ 3 सीटें जीती थीं. अगर विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल की पार्टी बीजेपी के साथ होती तो मौजूदा सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस को मात दे सकती थी. क्योंकि विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 38.8 फीसदी मतदाताओं का समर्थन प्राप्त था, जबकि कांग्रेस का संयुक्त वोट शेयर 41.2 फीसदी था. बीजेपी और रालोपा का वोट प्रतिशत मिलाकर कांग्रेस के वोट शेयर के बराबर ही 41.2 फीसदी पहुंच जाता. ऐसे में कांग्रेस को सरकार बनाने में मुश्किल हो सकती थी.

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