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कहीं 'घर-वापसी' तो कहीं 'प्रायश्चित', हवा देख रंग बदलते इन नेताओं के तर्क हैं निराले

भले ही एक समय 'दल बदलू' नेताओं की सामाजिक प्रतिष्ठा खत्म मान ली जाती थी, लेकिन बदलते समय में हर चुनाव से पहले सुविधानुसार दल बदलने वाले नेताओं की संख्या बढ़ती जा रही है.

Updated on: 18 Apr 2019, 01:26 PM

नई दिल्ली.:

17वीं लोकसभा के लिए गुरुवार को हो रहे दूसरे चरण (lok sabha chunav) के मतदान में उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर भी वोटिंग हो रही है. इनमें से एक सीट नगीना भी है. प्रदेश में महागठबंधन के लिहाज से महत्वपूर्ण हो चुकी यह सीट अपने 'दल-बदलू' (Party Hoppers)  प्रत्याशियों को लेकर भी हमेशा से चर्चा में रही है.

इस बार भी नगीना कुछ ऐसे ही दल-बदलुओं का साक्षी बन रहा है. यहां निवर्तमान सांसद बीजेपी के यशवंत सिंह (Yashwant Singh) हैं, जो अब सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस प्रत्याशी ओमवती देवी समय-समय पर अपनी सुविधानुसार पार्टियां बदलती रही हैं.

ओमवती देवी (Omwati Devi) का राजनीतिक कैरियर खासा रोचक रहा. उन्होंने 1985 में कांग्रेस से राजनीतिक पारी की शुरुआत की. फिर नब्बे के दशक में सपा में शामिल हो गईं. सपा से मन भरा तो 2007 में बसपा में शामिल हो गईं. 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीएसपी से किनारा कर बीजेपी के साथ मिल गईं. हालांकि बीजेपी ने 2014 में उन्हें टिकट नहीं दिया था. 2017 में वह बीजेपी के ही टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ीं औऱ हार गईं.

इस साल लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections 2019) से ठीक पहले वह बीजेपी छोड़ कर वापस कांग्रेस में आ गईं. इस मौके पर उन्होंने कांग्रेस में अपनी वापसी को 'घर वापसी' करार दिया था. पश्चिमी यूपी में सिर्फ नगीना ही नहीं बिजनौर सीट भी इस तरह के नेताओं से गुलजार है. इस बार कांग्रेस के टिकट पर सीट पर दावेदारी ठोंक रहे नसीमुद्दीन सिद्दकी एक समय बसपा (BSP) सुप्रीमो मायावती के बहुत खास माने जाते थे.

प्रदेश से इतर एक राष्ट्रीय स्तर की बात करें तो जनता दल (एस) के प्रवक्ता और प्रखर नेता रहे दानिश अली (Danish Ali) चुनाव से ऐन पहले पाला बदल कर बसपा के साथ आ खड़े हुए है. एक नजर इस बार के चर्चित नेताओं पर, जिन्होंने सालों का परंपरागत साथ छोड़कर नए साथी का दामन थामा.

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भारतीय जनता पार्टी
बैजयंत पांडा
4 मार्च को बीजू जनता दल से सांसद रहे बैजयंत 'जय' पांडा (baijayant panda) केसरिया दल बीजेपी में शामिल हो गए. उनका कहना था कि सिर्फ बीजेपी ही ओड़िशा को बचा सकती है.

टॉम वडक्कन
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केरल कांग्रेस के प्रवक्ता टॉम (tom vadakkan) ने 14 मार्च को बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली. उन्होंने पुलवामा हमले पर कांग्रेस के स्टैंड से खुद को अपसेट बताया.

अर्जुन सिंह
तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चार बार विधायक चुने गए अर्जुन सिंह (Arjun Singh) 14 मार्च को बीजेपी में शामिल हो गए. वह बैरकपुर से पार्टी टिकट नहीं मिलने पर नाराज बताए जा रहे थे.

जया प्रदा
एक समय समाजवादी पार्टी की स्टार प्रचारक रही जया प्रदा (Jaya Prada) 26 मार्च को बीजेपी में शामिल हो गईं. उनका कहना था कि उन्हें नरेंद्र मोदी जैसे निडर नेता के साथ काम करके खुशी होगी.

चंद्रप्रकाश मिश्रा
पिछले पांच सालों में बीजेपी के प्रदर्शन से प्रभावित चंद्रप्रकाश (Chandra Prakash Mishra) बहुजन समाज पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे हैं. अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके च्ंद्रप्रकाश 20 मार्च को बीजेपी में शामिल हुए.

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कांग्रेस
कीर्ति आजाद
भूतपूर्व क्रिकेटर और बीजेपी के सांसद कीर्ति आजाद (kirti azad) ने पार्टी से 26 साल पुराने संबंध खत्म कर 19 फरवरी को कांग्रेस (Congress) से नाता जोड़ लिया. उनका दावा है कि उन्होंने बीजेपी नेताओं के असली चेहरे देख लिए हैं.

सावित्री बाई फूले
बहराइच से सांसद सावित्री बाई फूले (savitri bai phule) ने 2 मार्च को कांग्रेस की सदस्यता ली. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया. उनका जाना बीजेपी के लिए झटके के समान है.

राकेश सचान
पार्टी खासकर आलाकमान से नाखुश राकेश सचान (Rakesh Sachan) समाजवादी पार्टी के के प्रमुख चेहरे रहे हैं. सपा से सांसद रहे राकेश सचान ने 2 मार्च को कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ली.

सुखराम
आयाराम-गयाराम के नाम से लोकप्रिय सुखराम (Sukhram) ने अपने पौत्र आश्रय के साथ बीजेपी छोड़कर 25 मार्च को कांग्रेस का दामन थाम लिया. उन्हें मंडी लोकसभा सीट से टिकट नहीं दिए जाने का अफसोस था.

शत्रुघ्न सिन्हा
अभिनेता से नेता बने शत्रुध्न सिन्हा (Shatrughan Sinha) 6 अप्रैल को विधिवत कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए. उन्होंने बीजेपी खासकर हालिया नेतृत्व के साथ अपने उतार-चढ़ाव भरे संबंधों को अंततः अलविदा कह दिया.