भोपाल का सियासी अखाड़ा अब बन गया 'धर्मयुद्ध' की लड़ाई का मैदान
दिग्विजय सिंह के समर्थन में साधु-संतों की टोली सड़कों पर उतर आई है. वे भोपाल की सड़कों पर घूमकर सिंह के लिए वोट मांग रहे हैं.
नई दिल्ली:
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में इस समय सियासी महासंग्राम छिड़ा हुआ है. अपनी जीत पक्की करने के लिए हर दल सभी तरीकों का जमकर इस्तेमाल कर रहा है. कोई रैलियां, तो कोई मीडिया और कोई नुक्कड़ सभाओं के जरिए जनता को अपने साथ लाना चाहता है. इसके लिए जिस क्षेत्र में जैसा वजूद वैसा ही राग अलापा जाता है. जनहित के मुद्दों के हटकर लोगों के बीच कोई जुबानी जहर उगलता है तो जाति से लेकर धर्म का बीज बोता है. अगर फिर भी चुनाव में हार का डर होता है तो धर्मगुरुओं को ही जनता के बीच ला खड़ा कर दिया जाता है. ऐसा ही कुछ नजारा भोपाल के अखाड़े में दिखाई दे रहा है.
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भोपाल के चुनावी रण में भारतीय जनता पार्टी ने कट्टर हिंदुत्व की छवि वाली साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को मैदान में उतारा है. इसका सबसे बड़ा कारण कांग्रेस पर लगे हिंदू विरोधी होने के आरोप हैं. खुद कांग्रेसी नेताओं ने हिंदू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद जैसे बयान देकर देश में सियासी भूचाल ला दिया था. सबसे अहम ये बात भी है कि यहां साध्वी का मुकाबला उनके धुरविरोधी दिग्विजय सिंह से हैं. दिग्विजय सिंह भी उन कांग्रेसी नेताओं में एक हैं, जिन्होंने हिंदू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद का जिक्र छेड़ा था. इन्ही बातों को ध्यान में रख बीजेपी ने मतदाताओं को भावनात्मक तौर पर लुभाने के लिए भगवा चेहरे साध्वी प्रज्ञा पर अपना दांव लगाया. प्रज्ञा को कांग्रेस द्वारा सताई गई हिंदू महिला के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है. माना जा रहा है प्रज्ञा ठाकुर के मैदान में उतरने से बीजेपी को सिर्फ भोपाल सीट पर ही नहीं, बल्कि आस-पास की कई सीटों पर फायदा मिलने की उम्मीद है.
साध्वी प्रज्ञा की राजनीतिक एंट्री के बाद विरोधियों ने बीजेपी के साथ साथ उनके के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया था. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर साल 2008 में हुए मालेगांव ब्लास्ट में आरोपी रह चुकी हैं. इसके साथ ही प्रज्ञा को दिग्विजय सिंह का धुर विरोधी माना जाता है. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के मैदान में उतरने से भोपाल में चुनावी जंग नरम हिंदुत्व बनाम कट्टरपंथी हिंदुत्व की हो गई है. भोपाल के चुनाव में ध्रुवीकरण की संभावना को नकारा नहीं जा सकता. विपक्षी दल भी आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी प्रज्ञा ठाकुर के बहाने देशभर में ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही ताकि चुनाव में फायदा उठा सके. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने भी खुद मैदान में ताल ठोकते हुए चुनावी मुकाबले को धर्मयुद्ध की संज्ञा दे दी.
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साध्वी पर मालेगांव ब्लास्ट के आरोपों को लेकर विपक्षी दल हमलावर बने हुए हैं. विपक्षी दलों की हर संभव कोशिश है कि ध्रुवीकरण को किसी तरह रोका जाए. आखिरकार विपक्ष को वो मौका मिल गया, जिसकी उसको तलाश था. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर अपने बयानों की वजह से विवादों में घिर गई. साध्वी प्रज्ञा ने शहीद हेमंत करकरे और बाबरी मस्जिद विध्वंस पर विवादित बयान दिए. इसकी वजह से साध्वी प्रज्ञा को चुनाव आयोग का 72 घंटे का प्रतिबंध झेलना पड़ा. हालांकि साध्वी प्रज्ञा ने भी इस मौके पर भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उनके प्रचार पर भले ही बैन था, लेकिन उन्होंने बंद जवान से भी विपक्षियों को बैचेन कर दिया. चुनाव की पाबंदी के दौरान साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने अपनी हिंदुत्व छवि को और बढ़ावा दिया. उन्होंने मंदिर-मंदिर में जाकर पूजा अर्चना की.
दिग्विजय सिंह भी प्रज्ञा की उपस्थिति से सियासी माहौल में आने वाले बदलाव को पहले ही भांप गए हैं. दिग्विजय सिंह स्वयं धार्मिक स्थलों पर जाकर अपनी छवि बनाने में लगे हैं. जिसके बाद भोपाल कारण धीरे-धीरे धर्मयुद्ध की ही ओर बढ़ने लग गया. मध्य प्रदेश की सबसे हाईप्रोफाइल इस सीट पर मुकाबला चुनाव में हार-जीत का है, लेकिन इस लड़ाई में एक खुद को कट्टर हिंदुत्व के चेहरे के रूप में मजबूत करना चाहता है तो दूसरा अपने पक्ष में साधु-संतों की जमात उतारकर खुद को हिंदुवादी साबित करना चाहता है. दिग्विजय सिंह के समर्थन में साधु-संतों की टोली सड़कों पर उतर आई है. वे भोपाल की सड़कों पर घूमकर सिंह के लिए वोट मांग रहे हैं.
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शुरुआत से ही भाजपा साध्वी प्रज्ञा को हिंदुत्व की अस्मिता के चेहरे के रूप में प्रचारित कर रही है. ऐसे में दिग्विजय का साधुओं के बीच में पहुंचना पलटवार के रूप में देखा जा रहा है. जिसकी वजह से यहां मुकाबला दिलचस्प होता ही जा रहा है. इस महासंग्राम में हर रोज नए सियासी समीकरण बन रहे हैं. ऐसे में देशभर की नजरें भोपाल पर आकर टिक गई हैं.
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