Loksabha Election2019: महागठबंधन की महिमा का खुद खंडन कर रहा विपक्ष
वहीं उत्तर प्रदेश ने सपा बसपा महागठबंधन का जन्म बीजेपी को उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर खड़ा करने के लिए किया था.
नई दिल्ली:
चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव 2019 के उद्घोषणा कर दी है साथ ही सभी राजनीतिक पार्टियों ने चुनावी रण में उतरने के लिए अपनी कमर कस ली है. वहीं उत्तर प्रदेश ने सपा बसपा महागठबंधन का जन्म बीजेपी को उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर खड़ा करने के लिए किया था. हालांकि चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन की सबसे बड़ी मुसीबत अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी नहीं, ना ही योगीआदित्यनाथ की सरकार के 2 साल का काम है, बल्कि विपक्षी दल ही इस महागठबंधन की महिमा का खंडन करते हुए नजर आ रहे हैं.
प्रियंका गांधी की नाव यात्रा शुरू होने के बाद लगातार मायावती और अखिलेश यादव कांग्रेस को निशाने पर ले रहे हैं. दोनों ने ट्वीट करके चुनौती दी कि कांग्रेस अपने उम्मीदवारों को 80 लोकसभा सीटों पर उतारे, 7 सीटों की खैरात महागठबंधन को नहीं चाहिए. हालांकि राजनीतिक पंडित मान रहे हैं की असल में चुनौती प्रयागराज से काशी के बीच प्रियंका की नाव यात्रा से महागठबंधन को ही मिल रही है. जिसके बाद अपने कार्यकर्ताओं का विश्वास ऊंचा रखने के लिए सपा और बसपा सुप्रीमो हाई जोश वाले ट्वीट कर रहे हैं.
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जब 2014 में मनमोहन सरकार का एंटी इनकंबेंसी फैक्टर काम कर रहा था और नरेंद्र मोदी की लहर नहीं बल्कि सुनामी थी, तब भी सपा का वोट प्रतिशत 22 फ़ीसदी और बसपा का वोट प्रतिशत करीब 19.6 था. दोनों 78 सीटों पर चुनाव लड़े थे, जबकि उनके सामने खड़ी कांग्रेस सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद 7.5 प्रतिशत वोट शेयर के साथ सिमटी हुई नजर आई थी और इस बार तो महागठबंधन में राष्ट्रीय लोक दल भी शामिल है जिन्हें करीब 1% वोट मिला था, हालांकि अजीत सिंह की पार्टी के उम्मीदवार सिर्फ 8 की संख्या में 2014 चुनावी समर में खड़े हुए थे ,लिहाजा आंकड़ों में तो महागठबंधन अव्वल है.
इस बार मोदी और योगी सरकार के साथ मनमोहन सरकार की तर्ज की ना तो एंटी इनकंबेंसी फैक्टर है , लेकिन ना ही 2014 जैसा जनसमर्थन अभी तक नजर आ रहा है. लेकिन महागठबंधन के सामने सबसे बड़ी दीवार विपक्षी दल ही बन कर खड़े हैं. जब से ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिम और प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश के चुनाव की कमान सौंपी गई है, तब से कांग्रेस के कार्यकर्ता उत्साह में है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा फैक्टर प्रियंका खुद है. वह लगभग 2014 की तर्ज पर काम कर रही हैं. याद रहे 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी का नाम नहीं लिया इसी तर्ज पर प्रियंका ने अपने गुजरात के पहले भाषण में नरेंद्र मोदी का नाम नहीं लिया, 5 साल पहले नरेंद्र मोदी काशी से चुनाव लड़े थे और नारा था मां गंगा ने बुलाया है और इस बार प्रियंका प्रयागराज से लेकर वाराणसी यानी प्रधानमंत्री की संसदीय सीट तक नाव यात्रा पर हैं. प्रियंका को सुनने और देखने गंगा किनारे लोगों की बड़ी संख्या नजर आती है. अब यह बात और है कि मतदान के दिन यह संख्या बल, मत बल में तब्दील होता है या नहीं.
महागठबंधन के सामने कांग्रेसी एकमात्र चुनौती नहीं.. शिवपाल यादव छोटे राजनीतिक दलों के साथ प्रोग्रेसिव डेमोक्रेट अलायंस बनाकर गठबंधन के वोट काटने की शक्ति रखते हैं. इसी क्रम में शिवपाल का डॉक्टर अयूब की पार्टी पीस पार्टी के साथ गठबंधन हो चुका है. जहां सपा सबसे ज्यादा मजबूत है, उन जिलों में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी शिवपाल के चेहरे के साथ महागठबंधन के उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचा सकती है. सूत्र यहां तक बता रहे हैं कि अपने भतीजे अक्षय यादव के खिलाफ खुद शिवपाल यादव फिरोजाबाद से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं. याद रहे यूपी चुनाव से पहले जब सपा के अंदर परिवार की जंग चल रही थी, तब सबसे ज्यादा कड़वाहट शिवपाल और प्रोफेसर रामगोपाल के रिश्तो में नजर आई थी. शिवपाल भले ही अपने उम्मीदवारों को जिताने की हैसियत ना रखते हुए नजर आ रहे हो, लेकिन सपा के उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाने के उनके शक्ति पर संशय नहीं करना चाहिए.
सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन के वक्त महागठबंधन के नेताओं को लगता था कि सत्तारूढ़ भाजपा की सियासी ताकत को महागठबंधन आसानी से टक्कर दे सकता है. वहीं कांग्रेस का वोट बैंक महागठबंधन के अन्य प्रत्याशियों के पास ट्रांसफर नहीं होगा. लेकिन बीते कुछ दिनों में भारत-पाकिस्तान तनाव, एयर सर्जिकल स्ट्राइक, प्रियंका की उत्तर प्रदेश में एंट्री और शिवपाल का छोटे दलों को साथ लेना महागठबंधन के लिए चिंता का सबक बन गया है. अभी सबक से सीख लेकर नया समीकरण बनाना भी सरल नहीं ,क्योंकि प्रत्याशियों की घोषणा हो रही हैं और नामांकन की प्रक्रिया जारी है... और महागठबंधन के सामने विपक्ष ही मुसीबत का पहाड़ बनकर खड़ा है..
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