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सियासत का एक्सप्रेस वे : जानें किसकी गाड़ी भरेगी फर्राटा इस लोकसभा चुनाव में

उत्तर प्रदेश के दो विधानसभा चुनावों में एक्सप्रेस वे के मुद्दे ने सियासी समीकरण बनाने और बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाई है

Updated on: 03 Apr 2019, 09:04 PM

लखनऊ:

देश में सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य यूपी में 2019 के आम चुनाव के दौरान सियासत के एक्सप्रेस वे अहम मुद्दा साबित हो सकते है. इससे पहले भी यूपी के दो विधानसभा चुनावों में एक्सप्रेसवे के मुद्दे ने सियासी समीकरण बनाने और बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाई है. यूपी में एक्सप्रेसवे बनाने को लेकर सत्ताधारी दलों की सोच यही रही है कि इसके बनने से न सिर्फ आम आदमी का सफर आसान होगा बल्कि विकास के सफर को गति देकर अगले चुनाव में सत्ताधारी दल का सियासी सफर भी आसान हो जाएगा, लेकिन अभी तक ठीक इसके उलट हुआ है. ग्रेटर नोएडा से आगरा तक 165 किमी. लंबे 13 हजार करोड़ से ज्यादा की लागत से बनाये गए यमुना एक्सप्रेसवे का निर्माण कराने वाली बीएसपी सरकार को भूमि अधिग्रहण के दौरान किसानों का खासा विरोध झेलना पड़ा और 2012 का चुनाव आते-आते सियासी समीकरण बीएसपी के पक्ष में नही रहे और उसे सत्ता से बेदखल होना पड़ा.

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हालात ऐसे हुए कि मायावती एक्सप्रेस वे का उद्घाटन भी नही कर पाई. सपा सरकार ने भी अपने कार्यकाल में करीब 15 हजार करोड़ की लागत से 302 किमी. लंबे आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे का निर्माण कराया था. 2017 के चुनावों को देखते हुए भले ही अखिलेश यादव ने अधूरे निर्माण कार्यों के बावजूद आनन-फानन में एक्सप्रेसवे का उद्घाटन कर दिया लेकिन इस एक्सप्रेसवे ने सपा के सियासी सफर पर ब्रेक लगा दी. पीएम मोदी ने भी पिछले साल न सिर्फ 11 हजार करोड़ की लागत से 135 किमी. लंबे ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे का उद्घाटन कर पश्चिमी यूपी को सैगात दी है बल्कि पूर्वी यूपी को सौगात देने के लिए 23 हजार करोड़ से ज्यादा की लागत के 354 किमी. की लंबाई के देश के सबसे लंबे पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का शिलान्यास भी किया है. ये दोनों ही एक्सप्रेसवे यूपी में करीब डेढ़ दर्जन लोकसभा सीटों पर सीधा असर डालते है.इसके अलावा यूपी की बीजेपी सरकार ने चित्रकूट से इटावा तक 14 हजार करोड़ से ज्यादा की लागत से बनने वाले 297 किमी. लंबे बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे के लिए जमीन अधिग्रहण का कार्य शुरू कर दिया है और मेरठ से प्रयागराज तक गंगा किनारे 36 हजार करोड़ की लागत के 600 किमी. लंबाई के गंगा एक्सप्रेसवे को भी मंजूरी दे दी है.

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इसके अलावा यूपी सरकार गोरखपुर एक्सप्रेसवे और प्रयाग लिंक एक्सप्रेसवे भी बनाने जा रही है.यही वजह है कि यूपी के जिन जिलों में इन एक्सप्रेसवे का निर्माण प्रस्तावित है वहां स्थानीय स्तर पर विकास के मापदंड के लिए इसे चुनावी मुद्दा बनाया जाएगा. एक ओर जहां बीजेपी यूपी में एक्सप्रेसवे के निर्माण कार्यो को लेकर उत्साहित नजर आ रही है वहीं विपक्षी दल सपा यूपी में बीजेपी के सफर पर ब्रेक लगने का दावा कर रही है तो वहीं कांग्रेस भी इतिहास दोहराने की बात कहते हुए सपा के दावे के समर्थन कर रही है.अब देखने वाली बात होगी कि इस लोकसभा चुनाव में सियासत के ये एक्सप्रेसवे यूपी में पीएम मोदी और बीजेपी के सफर को आसान बनाएंगे या ब्रेक लगाएंगे.