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यूपी में महागठबंधन की पहली साझा रैली के लिए देवबंद ही क्यों, जानें धार्मिक-जातीय गणित

देवबंद से सहारनपुर समेत कैराना, मुजफ्फरनगर, बागपत और बिजनौर लोकसभा सीट को राजनीतिक संदेश दिया जा सकता है. दूसरे मुस्लिम, जाट, दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता देवबंद के जरिये साधे जा सकते हैं.

Updated on: 07 Apr 2019, 01:10 PM

देवबंद.:

शनिवार से ही महागठबंधन की पहली साझा रैली के लिए दुनिया के सबसे बड़े इस्लामिक सेंटर देवबंद का सियासी पारा चढ़ा हुआ था. कार्यकर्ता न सिर्फ अखिलेश यादव, मायावती, बल्कि अजित सिंह के विशालकाय कट्आउट्स समेत मंच के माइक का बार-बार मुआयना कर रहे थे. सभा स्थल की तैयारियों से जुड़ी छोटी-बड़ी बातों को नए सिरे से परखा जा रहा था. इसे देख कह सकते हैं कि देवबंद की रैली अपने राजनीतिक समीकरणों के चलते काफी महत्वपूर्ण हो गई है.

सूत्रों की मानें तो लोकसभा चुनाव में प्रदेश की योगी सरकार और केंद्र की मोदी सरकार को आईना दिखाने के लिए महागठबंधन ने देवबंद का चुनाव पहली साझा रैली के लिए कई कारणों से किया. सबसे पहला कारण तो यही है कि देवबंद आसपास की चारों संसदीय सीटों का केंद्र है. यानी देवबंद से सहारनपुर समेत कैराना, मुजफ्फरनगर, बागपत और बिजनौर लोकसभा सीट को खास राजनीतिक संदेश दिया जा सकता है. दूसरे देवबंद महागठबंधन के जातीय समीकरणों का शत-प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता है. मुस्लिम, जाट, दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता देवबंद के जरिये साधे जा सकते हैं. ये वे जातीय सूत्र हैं, जिनके जरिये महागठबंधन पश्चिमी यूपी में सफलता के समीकरण बुन रहा है.

चूंकि समाजवादी पार्टी की राजनीति ही मुसलमानों और यादवों के इर्द-गिर्द घूमती है, तो देश में मुसलमानों के सबसे बड़े केंद्र देवबंद से बेहतर विकल्प महागठबंधन के पास था भी नहीं. यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, अमरोहा, बुलंदशहर और मुरादाबाद ऐसे जिले हैं, जहां मुसलमान मतदाता निर्णायक हैं. कैराना सीट पर 26, मेरठ सीट पर 31, बागपत सीट पर 20, मुजफ्फरनगर सीट पर 31, सहारनपुर सीट पर 38, गाजियाबाद सीट पर 19 और बिजनौर सीट पर करीब 38 फीसदी मुसलमान हैं, जबकि गौतमबुद्धनगर सीट पर 14 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. अकेले देवबंद तहसील में ही करीब 40 फीसदी मुसलमान हैं, जबकि यहां 25 फीसदी दलित आबादी है.

इसके अलावा जाट मतदाता आरएलडी के खाते में जाता रहा है. यानि सपा मुसलमान, बसपा दलित और आरएलडी जाट वोटों पर देवबंद के जरिए ही साझा संकेत देने के लिए बेहतरीन विकल्प है. दूसरे दलित-मुसलमानों के प्रभाव वाले सहारनपुर में विगत कई सालों से धार्मिक खाई देखने में आ रही है. इसे भुनाने में बीजेपी सफल रही है. चाहे वह संसदीय चुनाव रहे हों या फिर विधानसभा चुनाव. ऐसे में कैराना उपचुनाव में साझा उम्मीदवार को उतार सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशी को मात देने के बाद अब महागठबंधन उसी सफलता को लोकसभा चुनाव में भी दोहराना चाहता है.

दलित-मुस्लिम वोट अगर एक हो जाते हैं, तो पश्चिमी यूपी से बीजेपी को बड़ी चोट दी सकती है. इन सब लिहाज से देवबंद से महागठबंधन सहारनपुर सीट पर ही दलितों व मुसलमानों को साथ लाकर पूरे राज्य में एक बड़ा संदेश देगा. खासकर पहले तीन चरणों में पश्चिम यूपी की सीटों पर जहां मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका हैं, वहां इस रैली का व्यापक असर देखने को मिल सकता है.