बहुमत नहीं मिला तो इन दलों को साध सकती है बीजेपी, यूपीए को लग सकता है झटका
शायद यही कारण है कि विपक्षी दल पहले ही राष्ट्रपति से मिलकर बहुमत न मिलने की स्थिति में सबसे बड़े दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित न करने की मांग कर सकते हैं.
highlights
- जीतनराम मांझी की पार्टी HAM को बीजेपी अपने साथ एक बार फिर लाने की कवायद कर सकती है
- बीजेपी को सरकार बनाने की जरूरत पड़ती है तो केसीआर का साथ मिल सकता है
- इस बार वाईएसआर कांग्रेस को अच्छी खासी सीटें मिलेंगी
नई दिल्ली:
पहले सुब्रमण्यम स्वामी तो फिर राम माधव और अब शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत का यह कहना कि बीजेपी को अपने दम पर बहुमत मिलना मुश्किल है. सरकार बनाने के लिए सहयोगी दलों की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में सवाल उठता है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए को जरूरत पड़ी तो आखिर कौन-कौन से दल बीजेपी के साथ आ सकते हैं? शायद यही कारण है कि विपक्षी दल पहले ही राष्ट्रपति से मिलकर बहुमत न मिलने की स्थिति में सबसे बड़े दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित न करने की मांग कर सकते हैं.
2014 में बीजेपी अकेले दम पर 282 और एनडीए 336 सीटें जीतने में रही कामयाब
फिलहाल बीजेपी ने यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब और तमिलनाडु सहित पूर्वोत्तर के राज्यों में गठबंधन किया है. बाकी राज्यों में बीजेपी अकेले दम पर सियासी संग्राम में है. जबकि 2014 में बीजेपी 27 दलों के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी थी. बीजेपी अकेले दम पर 282 और एनडीए 336 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. हालांकि बाद में टीडीपी और आरएलएसपी साथ छोड़कर एनडीए से अलग हो गईं.
कांग्रेस की सियासी जमीन 2014 से मजबूत
इस बार बीजेपी के खिलाफ अलग-अलग राज्यों में विपक्षी दलों का गठबंधन है तो दूसरी तरफ कांग्रेस की सियासी जमीन 2014 से मजबूत नजर आ रही है. ऐसे में 2019 की सियासी जंग को फतह करने के लिए बीजेपी ने यूपी में अपना दल, बिहार में जेडीयू-एलजेपी, महाराष्ट्र में शिवसेना, पंजाब में अकाली दल, तमिलनाडु में AIADMK और पूर्वात्तर के राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किया है.
वाईएसआर बीजेपी को दे सकते हैं समर्थन
अब नजर डालते हैं कि कौन-कौन सी पार्टियां जरूरत पड़ने पर बीजेपी का साथ दे सकती हैं. बीजेपी की नजर आंध्र प्रदेश की जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस पर है, जो 2014 में कांग्रेस से टूटकर पार्टी बनी थी. माना जा रहा है कि इस बार वाईएसआर कांग्रेस को अच्छी खासी सीटें मिलेंगी. कांग्रेस से जगन की अदावत किसी से छिपी नहीं है. ऐसे में संभावना है कि चुनाव के बाद वाईएसआर बीजेपी को अपना समर्थन दे सकते हैं.
केसीआर का मुकाबला बीजेपी के बजाय कांग्रेस से
तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की पार्टी टीआरएस पर भी बीजेपी की नजर है. पिछले पांच सालों में केसीआर, नरेंद्र मोदी सरकार को वक्त बे वक्त मदद करते रहे हैं. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार के पक्ष में वोट किया था. तेलांगना में केसीआर का मुकाबला बीजेपी के बजाय कांग्रेस से हैं. ऐसे में अगर
नवीन पटनायक हमेशा दोस्ती निभाया
नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी (BJD) को पिछले पांच साल में मोदी सरकार के बड़ें फैसलों का लाभ मिलता रहा है. बीजेडी पहले भी एनडीए के साथ रह चुकी है. ऐसे में संभावना है कि नरेंद्र मोदी को सरकार बनाने के लिए अगर कुछ सीटों की जरूरत पड़ी तो बीजेडी समर्थन दे सकती है. पटनायक का कांग्रेस से 36 का आंकड़ा जगजाहिर है.
एनसीपी (NCP) पर बीजेपी की नजर
यूपीए की मजबूत सहयोगी शरद पवार की पार्टी एनसीपी (NCP) पर भी बीजेपी की नजर है. हालांकि एनसीपी महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी है. इसके बावजूद जिस तरह से नरेंद्र मोदी और पवार के रिश्ते हैं, ऐसे में कुछ कहा नहीं जा सकता है.
नेशनल कांफ्रेंस दे सकती है बीजेपी का साथ
इसके अलावा जम्मू-कश्मीर की नेशनल कॉफ्रेंस भी जरूरत पड़ने पर बीजेपी के साथ खड़ी हो सकती है. नेशनल कांफ्रेंस अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में बीजेपी के साथ सरकार में शामिल रही थी. ऐसे में वो कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ खड़ी हो सकती है.
उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी में हो सकते हैं शामिल
उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी बिहार में महागठबंधन के साथ मिलकर चुनावी मैदान में है. लेकिन इससे पहले कुशवाहा मोदी सरकार में मंत्री रहे हैं. ऐसे में बीजेपी उन्हें अपने खेमे में एक बार फिर लाने की कोशिश कर सकती है. जीतनराम मांझी की पार्टी HAM को भी बीजेपी अपने साथ एक बार फिर लाने की कवायद कर सकती है, क्योंकि मांझी पहले एनडीए में रह चुके हैं. बीजेपी की नजर हरियाणा में ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलो पर भी रहेगी.
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