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आज अगर महात्मा गांधी होते, तो अल्लाह-ओ-अकबर और वंदे मातरम पर क्या कहते?

महात्मा गांधी की जय और मोहम्मद अली शौकत (ख़िलाफत आंदोलन के नेता) की जय के बजाय हिंदू मुस्लिम की जय बोलें. भाई शौकत अली ने इस बारे में अपनी सहमति दी.

Updated on: 20 Jun 2019, 06:59 PM

highlights

  • लोकसभा में सांसदों के शपथ ग्रहण में हुई थी धार्मिक नारेबाजी.
  • बापू ने 'यंग इंडिया' अखबार में 1920 में लिखा था रोचक लेख.
  • धार्मिक नारेबाजी से की थी हिंदू-मुस्लिम एका की वकालत.

नई दिल्ली.:

17वीं लोकसभा शुरू होने के दूसरे दिन सांसदों के शपथ ग्रहण के दौरान जब लोकसभा में धार्मिक नारे लगे, उस दौरान अगर महात्मा गांधी लोकसभा स्पीकर की कुर्सी पर बैठे होते तो क्या करते? क्या महात्मा गांधी नारे लगाने वाले सांसदों को अपने बिगड़ैल बच्चे मानकर डांटते या इस नारेबाजी में उनको कुछ भी गलत नहीं लगता? महात्मा गांधी ने आजाद भारत का जो विज़न देखा था उसमें इन नारों की जगह कहां है?

सांसदों के शपथ ग्रहण के दौरान हुई धार्मिक नारेबाजी
गौरतलब है कि 18 जून को जब नए सांसद शपथ ले रहे थे, तो नारेबाज़ी हो रही थी. बीजेपी के सांसदों की शपथ ग्रहण के दौरान बाकी बीजेपी के सांसद भारत माता की जय, वंदे मातरम और जय श्री राम जैसे नारे लगा रहे थे. असली ड्रामा तब शुरू हुआ जब हैदराबाद से सांसद और एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन औवेसी शपथ लेने गए. उन्हें देख एनडीए के सांसदों ने वंदे मातरम और जय श्री राम नारे लगाने शुरू कर दिए. उसके बाद तो यह होड़ मच गई कि कौन कितने ज़ोर से नारा लगा सकता है.

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मुस्लिम सांसदों ने भी की थी जवाबी नारेबाजी
मुस्लिम सांसदों की तरफ से वंदे मातरम के जवाब में अल्लाह-ओ-अकबर के नारे लगाए गए. इस घटना की ताकीद भी हुई कि संसद में इस तरह के धार्मिक नारे नहीं लगाने चाहिए या फिर मुस्लिम सांसदों ने वंदे मातरम क्यों नहीं बोला. अगर यहां महात्मा गांधी होते तो वह शायद कहते कि पहला नारा तो अल्लाह-ओ-अकबर ही होना चाहिए. इस घटना से लगभग 100 साल पहले जब महात्मा गांधी देश को आज़ादी दिलाने, संसद दिलाने के लिए देशभर में हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए जूझ रहे थे तो उनके सामने भी ऐसी ही परिस्थितियां आई थीं.

महात्मा गांधी ने कहा था हिंदू-मुस्लिम की जय बोलें
महात्मा गांधी ने अपने अखबार 'यंग इंडिया' के 8 सितंबर 1920 के अंक में एक दिलचस्प घटना का जिक्र किया था. गांधी ने लिखा था- मद्रास दौरे के दौरान बेजवाडा में मुझे राष्ट्रीय संकट पर बात करने का मौका मिला और मैंने सुझाव दिया कि व्यक्ति से बड़ा सिद्धांत होना चाहिए. मैंने श्रोताओं से कहा कि महात्मा गांधी की जय और मोहम्मद अली शौकत (ख़िलाफत आंदोलन के नेता) की जय के बजाय हिंदू मुस्लिम की जय बोलें. भाई शौकत अली ने इस बारे में अपनी सहमति दी.

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इससे दोनों कौमों में बढ़ती एकता की भावना
उन्होंने अपना अनुभव बताया कि हिंदू-मुस्लिम एकता के बावजूद हिंदू अगर वंदे मातरम का नारा लगाते हैं, तो उनके सामने मुस्लिम उससे भी ज्यादा ज़ोर से अल्लाह-ओ-अकबर का नारा लगाते हैं. इससे ऐसा लगता है कि अभी भी लोग एक सोच के साथ काम नहीं कर रहे हैं. इसीलिए सिर्फ तीन नारे ही होने चाहिए. पहला- हर हिंदू और हर मुस्लिम को ज़ोर से अल्लाह-ओ-अकबर का नारा लगाना चाहिए. यह जाहिर कराने के लिए कि अल्लाह सिर्फ एक है और उससे ताकतवर और कोई नहीं. दूसरा नारा वंदे मातरम या भारत माता की जय होना चाहिए. तीसरा हिंदू मुसलमान की जय का नारा होना चाहिए, क्योंकि इसके बिना भारत की जीत नहीं है.

बापू ने दिया तीन नारों पर जोर
गांधीजी ने आगे लिखा है - मैं चाहता हूं कि सारे अखबार भी इस बात को तवज्जो दें और लोगों को सिर्फ ये तीन नारे ही लगाने को कहें. पहला नारा अल्लाह-ओ-अकबर एक प्रार्थना है. श्रद्धा के भाव से हर हिंदू और मुस्लिम को ये नारा लगाना चाहिए. हिंदुओं को इस बात से गुरेज नहीं करना चाहिए कि ये अरबी में है.

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नहीं बढ़ती हिंदू-मुस्लिमों की खाई
महात्मा गांधी ने इस फॉर्मूले से हिंदुओं-मुस्लिमों के झगड़े को सुलझाकर सामंजस्य बनाने की कोशिश की थी, लेकिन आंबेडकर विचारकों ने उस वक्त इस प्रयास पर सवाल उठाकर निरर्थक बता दिया था. वक्त ने साबित कर दिया कि गांधीजी गलत थे. उनके दिए फॉर्मूले के 100 साल बाद भी आज हिंदुओं के अल्लाह-ओ-अकबर का नारा लगाने की बात तो दूर मुस्लिम भी वंदे मातरम कहने में परहेज करते हैं. उसी का मुजायरा मंगलवार को लोकतंत्र की सबसे धर्मनिरपेक्ष संस्था संसद में दिख गया.