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जिन्ना को इतिहास भी इस नजरिये से देखता है...ना कि विभाजन के 'खलनायक' बतौर

कायद-ए-आजम जिन्ना का 'प्रेत' समय-समय पर आजाद भारत की राजनीति के सामने आ खड़ा होता है और कई विवादों को जन्म देकर फिर चुपचाप इतिहास के अंधेरों में गुम हो जाता है.

Updated on: 28 Apr 2019, 11:44 AM

नई दिल्ली.:

फिल्म अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा की जबान क्या फिसली पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को लेकर राजनीति एक बार फिर गर्मा गई. बीजेपी नेताओं ने जहां इसको लेकर कांग्रेस को घेरा तो कांग्रेसी नेताओं ने भी पलटवार किया. ताजा कड़ी में एनसीपी नेता मजीद मेनन ने जिन्ना का स्वतंत्रता आंदोलन में महती योगदान बताकर फिर इस बहस को धार दे दी है कि आखिर भारत के विभाजन के लिए दोषी कौन था? मोहम्मद अली जिन्ना या तत्कालीन कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं की महत्वाकांक्षा.

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गौरतलब है कि काफी पहले जिन्ना प्रेम ने बीजेपी के दो बड़े नेताओं के राजनीतिक कैरियर की रफ्तार धीमी कर उन्हें हाशिये पर ले जाने का काम किया था. हाल ही में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना की फोटो को लेकर बखेड़ा हो गया. कायद-ए-आजम जिन्ना का 'प्रेत' समय-समय पर आजाद भारत की राजनीति के सामने आ खड़ा होता है और कई विवादों को जन्म देकर फिर चुपचाप इतिहास के अंधेरों में गुम हो जाता है. आम लोग समझ ही नहीं पाते कि जिन्ना असल में थे क्या?

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यहां यह जिक्र करना होगा कि बीजेपी के अध्यक्ष के तौर पर लालकृष्ण आडवाणी ने 2005 में पाकिस्तान की यात्रा के दौरान विभाजन के 'खलनायक' करार दिए गए जिन्ना की जमकर तारीफ की थी. कराची में जिन्ना की मजार पर पहुंचे आडवाणी ने न सिर्फ जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताया बल्कि दो राष्ट्रवाद सिद्धांत के प्रणेता कायद-ए-आजम को हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रखर दूत तक करार दिया था. जाहिर है इस बयान पर बड़ी हाय-तौबा मची और इस पूरे विवाद का अंत आडवाणी को बीजेपी अध्यक्ष पद से हटने के बाद ही हुआ.

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आडवाणी के जिन्ना प्रेम की अनुगूंज अभी फीकी भी नहीं पड़ी थी कि बीजेपी के एक और दिग्गज नेता जसवंत सिंह ने जिन्ना पर एक किताब ही लिख डाली. 2009 में आई जसवंत सिंह की किताब 'जिन्नाः इंडिया पार्टीशन इंडिपेंडेंस' पर इस कदर विवाद खड़ा हुआ कि किताब को गुजरात में प्रतिबंधित करना पड़ा. जसवंत सिंह का 'अपराध' इसलिए भी बड़ा था कि उन्होंने अपनी इस किताब में सरदार पटेल के बारे में कुछ ऐसा लिख दिया, जो संघ-बीजेपी के नेताओं-कार्यकर्ताओं समेत आम गुजरातियों को भी रास नहीं आया.

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हालांकि अगर जिन्ना पर आई किताबों की बात चल रही है तो इस कड़ी में 1985 में पाकिस्तानी इतिहासकार आयशा जलाल की 'द सोल स्पोक्समैन' का जिक्र नहीं करना बेमानी होगा. हार्वर्ड, विस्कॉंसिन और कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाली आयशा जलाल की इस किताब ने भी तूफान खड़ा किया था. उन्होंने भी जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष करार दे उन्हें भारत विभाजन के लिए 'खलनायक' मानने से इंकार कर दिया था.

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उस किताब में आयशा जलाल ने दावा किया कि जिन्ना की 'नए मदीना' की मांग वास्तव में उस वक्त उनके द्वारा चला गया ब्रम्हास्त्र था. इसके जरिए वह आजाद भारत में मुसलमानों और मुस्लिम लीग के लिए बेहतर 'डील' चाहते थे. हालांकि जिन्ना की यह मांग ही उनके हाथ से निकल गई कि उन पर 'होम करते हाथ खुद जलाने' वाली कहावत चरितार्थ हो गई. बकौल आयशा जलाल उस वक्त कांग्रेस विभाजन की पक्षधर थी, जिन्ना तो विभाजन के सख्त खिलाफ थे.

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जिन्ना के कथित मुस्लिम प्रेम को सामने लाता एक और वाकया है. 1943 में नवाब बहादुर यार जंग ने जिन्ना से कहा था कि वह इस्लामिक राष्ट्र की अवधारणा का ही नारा बुलंद करें. उस वक्त जिन्ना का जवाब था पाकिस्तान कैसा देश होगा इसका फैसला वहां रहने वाले लोग करेंगे. उसका संविधान उसके निवासियों की राय के अनुकूल होगा. कालांतर में पाकिस्तान के तानाशाह जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान की पहचान और वजूद को इस्लाम से जोड़ दिया. यही कट्टर इस्लाम आज पाकिस्तान के लिए सिरदर्द साबित हो रहा है.

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हालांकि इतिहास के बारे में कहा जाता है कि उसके अंधेरे गलियारों में आप जहां भी हाथ लगाएंगे, वहीं से एक कंकाल उठ बैठेगा और पूरे नजरिये को एक नया मोड़ दे देगा. वही बात मोहम्मद अली जिन्ना पर भी लागू होती है. उनका नाम लेना भर भारत में राजनीतक तूफान खड़ा कर देता है, जिसकी चपेट में आकर बड़े-बड़े धाराशायी हो जाते हैं. इस बार भी लोकसभा चुनाव के ऐन बीच जिन्ना का नाम निकला है, जिसके परिणाम 23 मई को मतगणना के बाद ही पता चलेंगे. तभी पता चलेगा कि शत्रुघ्न सिन्हा और मजीद मेनन का जिन्ना प्रेम क्या रंग लाता है?