National Doctors Day 2019: जानें हर साल 1 जुलाई को ही क्यों मनाया जाता ' डॉक्टर्स डे'

आज ही के दिन देश के महान चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. बिधानचंद्र रॉय का जन्म हुआ था. वहीं बता दें कि 1 जुलाई 1882 को जन्में विधानचंद्र रॉय का निधन भी 1 जुलाई के दिन ही हुआ था. इसके बाद केंद्र सरकार ने इस खास दिन को मनाने की शुरुआत सन् 1991 में की थी.

आज ही के दिन देश के महान चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. बिधानचंद्र रॉय का जन्म हुआ था. वहीं बता दें कि 1 जुलाई 1882 को जन्में विधानचंद्र रॉय का निधन भी 1 जुलाई के दिन ही हुआ था. इसके बाद केंद्र सरकार ने इस खास दिन को मनाने की शुरुआत सन् 1991 में की थी.

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Vineeta Mandal
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National Doctors Day 2019: जानें हर साल 1 जुलाई को ही क्यों मनाया जाता ' डॉक्टर्स डे'

National Doctors Day 2019

आज यानी कि 1 जुलाई को पूरे देशभर में 'राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस' (National Doctors Day 2019) मनाया जाता है. हर इंसान से लेकर जानवर तक की जीवन में डॉक्टर का एक बहुत बड़ा योगदान होता है तभी शायद डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है. तो आइए हम आपको बताते हैं कि आखिर 1 जुलाई को ही क्यों डॉक्टर डे मनाया जाता है. दरअसल, आज ही के दिन देश के महान चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. बिधानचंद्र रॉय का जन्म हुआ था. वहीं बता दें कि 1 जुलाई 1882 को जन्में विधानचंद्र रॉय का निधन भी 1 जुलाई के दिन ही हुआ था. इसके बाद केंद्र सरकार ने इस खास दिन को मनाने की शुरुआत सन् 1991 में की थी. भारत के महान डॉक्टर और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री को सम्मान और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए यह दिवस मनाया जाता है.

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जानें डॉ बिधानचंद्र रॉय के बारें में

बिधानचंद्र रॉय ने चिकित्सा के क्षेत्र में उन्होंने काफी योगदान दिया. इसी वजह से 4 फरवरी, 1961 को उन्हें 'भारत रत्न' भी दिया गया था. स्वास्थ्य क्षेत्र से राजनीति में आने के बाद रॉय ने कई नगर, विश्विद्याल और संस्थाओं की स्थापना की थी. 1928 में इंडियन मेडिकल असोसिएशन (आईएमए) की स्थापना में और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की स्थापना में भी उनकी बड़ी भूमिका थी.

रॉय डॉक्टरी की पढ़ाई करने 1909 में जब वह लंदन के प्रतिष्ठित सेंट बार्थोलोम्यू अस्पताल गए तो वहां के डीन ने उनके भारतीय होने के नाते दाखिला देने से इनकार कर दिया था. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और वो लगातार डीन के पास जाते रहें, जिसके बाद 30वीं बार में डीन ने उनका आवेदन स्वीकार किया. इसके बाद बिधानचंद्र ने सवा दो साल के अंदर ही डिग्री हासिल की और एक साथ फिजिशन और सर्जन की रॉयल कॉलेज की सदस्यता पाई.

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वो भारत लौट ते उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किए. वो न केवल अमीर संपन्न लोगों के डॉक्टर थे बल्कि उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी बेहतरीन सुविधाओं को आम लोगों तक पहुंचाने की दिशा में भी कोशिश करते रहे.

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उच्च पद पर पदस्थ होने के बाद भी डॉ बिधानचंद्र रॉय गरीब-वंचितों का मुफ्त में इलाज करते रहे. वहीं अपने निधन से पहले उन्होंने अपनी सारी संपत्ति और घर आम जनता के नाम कर दी. बड़े-बड़े पदों पर बैठने के बाद भी हर दिन गरीब मरीजों का इलाज अक्सर मुफ्त में करते रहे। 1961 में मृत्यु से ठीक पहले उन्होंने अपना घर और संपत्ति जनता के नाम कर दी.

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