फोन के साइड इफेक्ट तो सबको मालूम ही हैं. बच्चों में मोबाइल की लत को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बीमारी माना है. मोबाइल पर गेम खेलते हुए अगर बच्चे से मोबाइल छीनने पर वह गुस्से में रिएक्ट करे तो समझिए वह गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार हो रहा है. वहीं, बच्चों में तेजी से ओबेसिटी नजर आने लगे, बिहेवियर चेंज भी दिखे और खान-पान में अरुचि या जिद दिखाए तो सावधान हो जाइए. इस विषय पर जयपुर के डॉक्टर्स का भी ऐसा ही मानना है.
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वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने ऑफिशियल तौर पर अपने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ़ डिजीज के ग्यारहवें एडिशन में गेमिंग को डिसऑर्डर की तरह जोड़ा है. यानी अब से गेमिंग की लत को मानसिक बीमारी के रूप में देखा जा सकता है. हाल ही हुई 72वी असेंबली में डब्ल्यूएचओ के 194 मेंबर्स ने इस प्रस्ताव पर हामी भर इसे बीमारी की तरह मंजूर किया.
क्या कहते हैं डॉक्टर
जयपुर में चाइल्ड स्पेशलिसि अशोक गुप्ता का कहना है कि चिड़चिड़ापन, अबेसिटी, बिहेवियर चेंज, अरुचि, नींद कम अना और खोया-खोया रहना... ये सब मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से हो सकते हैं. परफॉरमेंस प्रेशर के चलते 15 से 25 साल की उम्र के बीच गेमिंग डिसऑर्डर डेवलप होने की संभावना रहती है.
सोशल मीडिया पर रिसर्च कर रहे साइबर क्राइम एक्सपर्ट राजेंद्र सिंह का कहना है कि आगे चलकर यही लत बच्चो में अपराध को जन्म भी देती है. बच्चे आत्महत्या तक कर लेते हैं. उन्होंने कहा, बच्चों में यह तेजी से फैल रही बीमारी है जिसका इलाज परिवार के सहयोग से ही सम्भव है.
Source : News Nation Bureau