/newsnation/media/media_files/2024/12/13/A0ZLCrlkvEkqaSpRSPTq.jpg)
राज कपूर
बॉलीवुड के दिग्गज एक्टर शोमैन कहे जाने वाले राजकपूर की 14 दिसंबर को 100वीं बर्थ एनिवर्सरी है. इस दिन को खास बनाने के लिए कपूर खानदान ने ग्रैंड तरीके से सेलिब्रेट करने का फैसला किया है. दिग्गज कलाकार और देश के पीएम मोदी के साथ कपूर्स लीजेंडरी को श्रद्धांजलि देंगे. वहीं हाल ही में कपूर खानदार पीएम मोदी से मिला था. जहां पर उन्होंने पीएम मोदी को राज कपूर फिल्म फेस्टिवल के लिए इनवाइट किया था. यह फेस्टिवल 13 से 15 दिसंबर को आयोजित किया जाएगा.
इतने शहरों में दिखाई जाएगी फिल्म
इस फेस्टिवल में राज कपूर की 10 फिल्मों को 40 शहरों के 135 सिनेमाघरों में दिखाया जाएगा. 13 दिसंबर को यानी की आज मुंबई में राज कपूर की 100वीं जयंती मनाने के लिए बड़ा इवेंट रखा गया है. यहां हिंदी सिनेमा के कई बड़े सितारे शिरकत करेंगे. राज कपूर के असिस्टेंट रह चुके फिल्ममेकर राहुल रवैल ने एक्टर से जुड़े कई किस्से शेयर किए है.
सिनेमा से प्यार
राज कपूर का एक ही जुनून था और वो था सिर्फ सिनेमा. उन्होंने बॉबी में बिना कीमत की परवाह किए बगैर असली शैंपेन मंगवाई थी. उन्होंने बताया था कि मैं सिनेमा की सांस लेता हूं, मुझे सिनेमा से प्यार है और मैं सिनेमा की वजह से यहां हूं. 'लव स्टोरी', 'बेताब' और 'अर्जुन' जैसी हिट फिल्मों का निर्देशन करने वाले रवैल ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि कोई और राज कपूर बन सकता है. मैं बहुत खुशकिस्मत हूं कि मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला और मैंने जो कुछ भी सीखा है, वह सिर्फ उनसे ही सीखी है'.
24 साल की उम्र में की पहली फिल्म
राज कपूर ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी आरके स्टूडियो की शुरुआक आजादी के एक साल बाद 1948 में की थी. उनकी पहली फिल्म 'आग' तब बनी जब वह सिर्फ 24 साल के थे. अगले चार दशकों में उनकी कई फिल्में युवा भारत की सोच और चिंताओं को दर्शाती हैं. उन्होंने 'आवारा', मेरा नाम जोकर' और 'बॉबी' जैसी फिल्मों में काम किया है.
गिनते थे शॉट
रवैल ने बताया कि एक बार उन्होंने देखा कि राज कपूर शॉट लेते समय अपनी उंगलियों पर गिनती कर रहे थे. उन्होंने कहा, 'जब शॉट चल रहा होता है, तो मैं संगीत की बीट्स गिन रहा होता हूं. सीन में जिस तरह का संगीत होगा, वह मेरे दिमाग में बज रहा होता है और मैं उन बीट्स को गिन रहा होता हूं. मुझे लगता है कि यह एक अद्भुत चीज थी.
15 साल की उम्र से साथ
रवैल ने बताया कि वह, जिनकी फिल्में उनके मधुर संगीत के लिए जानी जाती थीं. हमेशा अपनी टीम को सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करते थे. निर्देशक ने बताया, 'उन्होंने मुझसे कहा 'आप एक ऐसे उद्योग में काम कर रहे हैं, जहां किसी को भी पूरी जानकारी नहीं है. मुझे भी पूरी जानकारी नहीं है. रवैल ने 15 साल की उम्र में राजकपूर के सहायक के तौर पर काम करना शुरू किया था.वह 'संगम' का 'बोल राधा बोल' हो, 'सत्यम शिवम सुंदरम' का 'भोर भये पनघट पे' हो या राज कपूर की अंतिम फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' का 'सुन साहिबा सुन' हो, उनकी हर फिल्म के गाने समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं. अपनी पसंद का शॉट पाने के लिए कपूर कभी-कभी मेहनत और खर्च कर देते थे.
दी असली शराब
'बॉबी' और 'मेरा नाम जोकर' सहित 'शोमैन' की कई फिल्मों में सहायक के रूप में काम कर चुके रवैल को 'राज कपूर की विचित्रता' बहुत पसंद है. उन्होंने कहा कि महज समझदारी ही किसी इंसान की इस इंडस्ट्री में सफलता की गारंटी नहीं है. आपके पास कुछ तो ऐसी खूबी होनी चाहिए. जो आप में जुनून पैदा कर दे. ऋषि कपूर, डिंपल अभिनीत 'बॉबी' में एक पार्टी के सीन की शूटिंग के टाइम, कपूर ने रवैल को शराब जैसा रंग पाने के लिए कोक को पानी में मिलाते देख लिया था. जिसके बाद उन्होंने कहा कि सामने वाले लोंगों को असली शराब दो. वहीं रवैल ने कहा, सर, नशा चढ़ जाएगा.
खिड़कियों पर काला कागज
रवैल ने कहा, 'उन्हें इसे न पीने के लिए कहो. इसलिए मैंने वही किया जो उन्होंने कहा. वह सीन में पिस्ता और बादाम भी चाहते थे, मैंने सोचा, यह बहुत महंगा होने वाला है.' इस पर राज कपूर ने कहा 'नहीं, मुझे वही चाहिए और आगे कहा कि उन्हें असली शैंपेन चाहिए.' वह सभी खिड़कियों पर काला कागज चिपका देते थे ताकि हमें समय का अहसास ना हो..जब वह थक जाते थे, तो कहते थे 'इसे खोलो' और उस समय सुबह के आठ- साढ़े आठ बज जाते थे. वह कहते थे 'ठीक है, सभी थक गए होंगे. घर जाओ और फिर जल्दी आ जाओ.'
खाने पर होती थी चर्चा
'एक कार थी जो हम सभी को घर छोड़ती और वापस ले जाती. समस्या यह थी कि मैं आखिरी व्यक्ति था जिसे छोड़ा जाता था, इसलिए वापसी में गाड़ी में बैठने वाला भी मैं पहला व्यक्ति होता था. मुझे कम समय मिलता था...30 या 45 मिनट के भीतर, कार हमें स्टूडियो ले जाने के लिए वापस आ जाती थी.' 'श्री 420', 'बरसात' और 'जागते रहो' जैसी फिल्मों के समान कपूर खाने-पीने में भी एक्सपेरिमेंट करते थे. रवैल ने बताया, 'दिन की पहली चर्चा यही होती थी कि हम पूरे दिन क्या खाने वाले हैं. हमें क्या खाना है, इसकी लिस्ट बनाने में करीब दो घंटे लग जाते थे. कोई कहता था कि ठाणे में बहुत अच्छी काली दाल मिलती है, तो कोई कहता था कि वहां का चिकन अच्छा है.
पाव में जलेबी रक खाया
रवैल ने कहा, 'एक दिन, हम शाम को नाश्ता कर रहे थे. उन्होंने एक पाव लिया, उस पर मक्खन लगाने के लिए उसे दो भागों में काटा और बीच में एक जलेबी रखी, और उसे खाने लगे. मैंने कहा, सर, आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?. उन्होंने कहा 'क्यों? क्या कहीं लिखा है कि मैं नहीं कर सकता?' रवैल ने याद करते हुए कहा, 'राज कपूर ने कहा मैं वही खाऊंगा जो मुझे पसंद है. मैं तुम्हें इसे खाने के लिए कुछ बेहतर दूंगा. फिर उन्होंने इसे टोमैटो केचप में डुबोया और खाया. तो, ये उस आदमी की अदभुत आदतें थीं.'
दादा साहेब फाल्के से सम्मानित
दिल्ली में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित होने के महज एक महीने बाद दो जून 1988 को 63 साल की उम्र में कपूर का निधन हो गया. उन्हें हिंदी सिनेमा को दुनिया भर के फैंस तक पहुंचान में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.