वेब सीरीज: पंचायत 4
स्टार कास्ट : जीतेन्द्र कुमार, नीना गुप्ता, रघुबीर यादव, फैसल मलिक, चंदन रॉय, सान्विका, दुर्गेश कुमार, सुनीता राजवार और पंकज झा
डायरेक्टर : दीपक कुमार मिश्रा
रेटिंग: 3.5 स्टार
Panchayat 4 Review : 'पंचायत' कोई आम वेब सीरीज नहीं है, ये एक ऐसा एहसास बन चुकी है जो हर दर्शक के दिल के बेहद करीब है. फुलेरा गांव की सादगी, वहां के लोगों की छोटी-छोटी परेशानियां, उनका देसी ह्यूमर और ज़मीन से जुड़ी जिंदगी इतनी असल लगती है कि लगता है जैसे अपने आस-पड़ोस के ही किसी गांव की कहानी देख रहे हों. यही वजह है कि फैंस हमेशा चाहते हैं कि ये कहानी कभी खत्म न हो.
इसी कड़ी में 'पंचायत' का चौथा सीजन भी आ चुका है, जिसका दर्शकों को लंबे समय से इंतजार था. हालांकि, इस बार की कहानी में नया सस्पेंस और राजनीति की हलचल जरूर है, लेकिन मज़ा पूरी तरह वैसा नहीं है जैसा पहले के सीजन में था.
कहानी
सीजन 4 की शुरुआत वहीं से होती है, जहां सीजन 3 खत्म हुआ था. प्रधान पति ब्रिज भूषण उर्फ प्रधान जी (रघुबीर यादव) को कंधे पर गोली लगने के बाद फुलेरा गांव में माहौल गर्माया हुआ है. प्रधान जी का जख्म भर तो गया है लेकिन उनके अंदर डर अब भी बैठा हुआ है. दूसरी तरफ सचिव जी (जितेंद्र कुमार) पर विधायक चंद्रेश्वर (प्रकाश झा) के साथ हुई हाथापाई का केस दर्ज हो चुका है.
सबसे दिलचस्प मोड़ आता है फुलेरा गांव के प्रधानी चुनाव में. इस बार मंजू देवी (नीना गुप्ता) की कुर्सी खतरे में है. उनके सामने सीधी टक्कर दे रही है बनराकस (दुर्गेश कुमार) की पत्नी क्रांति देवी (सुनीता राजवार). गांव की राजनीति, आपसी चालाकियां और चुनावी जंग को देखने में मज़ा भी आता है लेकिन कहीं-कहीं कहानी खिंची हुई भी लगती है.
सचिव-रिंकी की जोड़ी
दर्शक जिस रोमांस का लंबे समय से इंतजार कर रहे थे, वो सचिव जी और रिंकी (सिफा पटेल) के बीच एक कदम और आगे बढ़ता नजर आता है. हालांकि रोमांस की गाड़ी बहुत धीरे चल रही है, जिससे कई फैंस थोड़े निराश भी हो सकते हैं.
एक्टिंग
नीना गुप्ता, रघुवीर यादव, जितेंद्र कुमार, और बाकी कलाकारों ने अपनी-अपनी भूमिकाओं में फिर से जान डाल दी है. एक बार फिर प्रह्लाद चाचा (फैसल मलिक) ने अपने इमोशनल अभिनय से दर्शकों का दिल छू लिया है. उनकी आंखों में छिपा दर्द और अकेलापन इस सीजन में भी पूरी शिद्दत से महसूस होता है. वहीं बनराकस (दुर्गेश कुमार) ने भी इस बार अपने किरदार में जबरदस्त काम किया है। खासकर चुनावी सीन में उनकी चतुराई और कॉमिक टाइमिंग देखने लायक है.
निर्देशन
निर्देशक दीपक कुमार मिश्रा ने फुलेरा की मिट्टी, गांव का माहौल और देसी राजनीति को फिर से जीवंत किया है, लेकिन कहीं न कहीं इस बार कहानी में गहराई और धार थोड़ी कम महसूस होती है. हालांकि, गांव की बोली, हावभाव और जिंदगी की झलक बखूबी पर्दे पर दिखाई गई है.
क्यों देखें
कुल मिलाकर 'पंचायत 4' पुराने किरदारों और गांव के इमोशंस को जोड़कर आगे बढ़ता है, लेकिन कहानी में कुछ हिस्सों में ताजगी और तेजी की कमी साफ झलकती है. फिर भी, फुलेरा गांव से दिल का रिश्ता बनाए रखने के लिए इसे एक बार जरूर देखा जा सकता है.