Super 30 Review: बिहारी टोन और रंग रूप को हुबहू पर्दे पर उकेरने में कामयाब नहीं रही ऋतिक रोशन की 'सुपर 30'
अजय अतुल द्वारा दिया गया संगीत फिल्म में कुछ खास प्रभाव नहीं डालता. हालांकि गानों को कहानी के साथ साथ ही लेकर चलने की कोशिश की गई है
मुंबई:
ऋतिक रोशन को बिहारी अध्यापक के किरदार में पहले कभी नहीं देखा लेकिन विकास बहल की यह कोशिश उतनी कामयाब साबित नहीं हो पाई जितना उन्होंने अनुमान लगाया था ऋतिक ने अपने किरदार के साथ पूरा इंसाफ किया लेकिन बिहारी टोन और रंग रूप दिखाने में पीछे रह गए.
शिक्षा पर तो सबका अधिकार होता है.. कथनी पर विश्वास करने वाले आनंद जल्द ही समझ जाते हैं गरीबी एक अभिशाप है. संघर्ष के दिनों को पार करते हुए आनंद की जिंदगी में कई मोड़ आते हैं. जहां वो गरीबी से अमीरी तक सफर भी तय करते हैं. शिक्षा के नाम पर धंधा करने वालों से भी यारी होती है. लेकिन अमीरी का रंग उन्हें ज्यादा दिनों तक नहीं भाता और अहसास हो जाता है कि वह राजा के बच्चों को ही राजा बनाने की तैयारी में जुटे हैं. बिना समय गंवाए आनंद अपने पिता के बातों को याद करते हुए सुपर 30 की शुरुआत करते हैं. जिसके जरीए वह 30 ऐसे बच्चों को आईआईटी की तैयारी कराते हैं, जिनके पास शिक्षा पाने की लगन तो है लेकिन साधन नहीं है. यह असाधारण सफर भी आनंद कुमार के लिए आसान नहीं , लेकिन उनका मानना है कि आपत्ति से ही तो आविष्कार का जन्म होता है
आनंद कुमार के किरदार में ऋतिक रोशन प्रभावी रहे हैं. उनका लहज़ा कानों में थोड़ा खटक सकता है, लेकिन अपने दमदार अभिनय से ऋतिक ने फिल्म को एक मजबूती दी है. खासकर भावुक करने वाले दृश्यों में ऋतिक दिल जीतने में सफल रहे हैं. ऋतिक के भाई (प्रणव कुमार) बने नंदीश सिंह और प्रेमिका के संक्षिप्त किरदार में मृणाल ठाकुर ने अच्छा काम किया है. वहीं, शिक्षा माफिया के रोल में आदित्य श्रीवास्तव और शिक्षा मंत्री बने पंकज त्रिपाठी दमदार सर्पोटिंग कास्ट रहे हैं.
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अजय अतुल द्वारा दिया गया संगीत फिल्म में कुछ खास प्रभाव नहीं डालता. हालांकि गानों को कहानी के साथ साथ ही लेकर चलने की कोशिश की गई है, ताकि फिल्म की लंबाई ना बढ़े. ये फिल्म आपको जीवन में हर कठिनाइयों से जूझते हुए मंजिल पाने की प्रेरणा देती है. लेकिन खास बात है कि फिल्म अपना संदेश आप पर थोपती नहीं है, बल्कि कहानी के साथ साथ छूती जाती है. इस विषय पर बॉलीवुड में कई फिल्में आई और सफल भी रहीं, लेकिन यह सफर आपको सोचने की एक नई दिशा देगी.
सुपर 30 का निर्देशन भी थोड़ा लचर है . फर्स्ट हॉफ सेकंड हाफ से ज़्यादा प्रभावशाली है . कहानी आपको भावुक करती है, लेकिन हंसी मजाक के यादगार क्षण भी मिल जाएंगे. वहीं, सेकेंड हॉफ में पटकथा थोड़ी कमज़ोर हो जाती है. दो, तीन भरपूर ड्रामा वाले सीन के बीच फंसकर आप कहानी से कुछ टूट जाते हैं. क्लाईमैक्स को भी निर्देशक थोड़ा और असरदार बना सकते थे, ताकि उस लम्हे को लेकर सिनेमाघर से बाहर निकलते. बहरहाल, क्वीन के बाद विकास बहल ने साबित कर दिया कि वह 'वन फिल्म वंडर' नहीं हैं
कुल मिलाकर ऋतिक रोशन मृणाल ठाकुर सहित निर्देशक विकास बेहेल की फिल्म सुपर 30 को एक बार देखा जा सकता है.
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