Film Review: 'रंगून' का नायक बन कर निकली कंगना रनौत, प्यार और बेवफाई की बीच झूलती है फिल्म

फिल्म 'रंगून' की कहानी भी ऐसा ही एक प्रेम त्रिकोण है। कहानी 1943 की है और दूसरे विश्वयुद्ध के बैकड्रॉप में चलती है।

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Soumya Tiwari
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Film Review: 'रंगून' का नायक बन कर निकली कंगना रनौत, प्यार और बेवफाई की बीच झूलती है फिल्म

'रंगून' यूं तो कहने को एक लव ट्राएंगल है लेकिन शुरू युद्ध के दृश्यों से होती है। प्रेम कहानियां सबसे बेहतरीन कहानियां होती हैं और प्रेम में तड़प, जलन और बेवफाई सभी कुछ होता है। फिल्म 'रंगून' की कहानी भी ऐसा ही एक प्रेम त्रिकोण है। कहानी 1943 की है और दूसरे विश्वयुद्ध के बैकड्रॉप में चलती है।

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कहानी

1943 वह साल था जब भारत दो विचारधाराओं के बीच फंसा हुआ था एक महात्मा गांधी की अंहिसा की विचारधारा तो दूसरी सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी जिनका कहना था कि दुश्मन के हाथ से मरने से अच्छा है कि उन्हें मार डालो। इस समय के अराजक माहौल के बीच फिल्म में तीन मुख्य किरदार हैं।

फिल्म 'रंगून' की कहानी बॉलीवुड की एक खूबसूरत एक्शन स्टार जूलिया यानि कंगना रनौत की है, जिसे बर्मा की सीमा पर सैनिकों का मनोरंजन करने के लिए भेजा जाता है। यहां जूलिया को एक भारतीय सिपाही नवाब मलिक (शाहिद कपूर) से इश्क हो जाता है। वहीं जूलिया का एक प्रेमी है रूसी बिलिमोरिया (सैफ़ अली खान)। रूसी एक फिल्म प्रोड्यूसर है और जूलिया के लिए फ़िल्में बनाता है। जूलिया के प्यार में रूसी अपनी बीवी को तलाक भी दे चुका है। यहां से शुरू होती प्यार, तकरार और युद्ध की एक कहानी..

डायरेक्शन

रंगून एक खूबसूरत फिल्म है। इसके सिनेमैटोग्राफी शानदार है। फिल्म की साउंड डिजाइनिंग भी कमाल है। कुछ लव मेकिंग सीन को बेहद संजीदगी और शानदार तरीके से फिल्माया गया, जो कमाल कर जाता है। लेकिन अंत आते आते फिल्म बोझिल होने लगती है। विशाल भारद्वाज ने शानदार फिल्म बनाने की कोशिश की है लेकिन फिल्म से इमोशनली आप खुद को कनेक्ट नहीं कर पाएंगे।

एक्टिंग

एक्टिंग की जहां बात है तो फिल्म कंगना के कंधों पर चलती है। पूरी फिल्म भी उन्हीं पर फोकस करती है। विशाल भारद्वाज की फिल्मों के महिला पात्र मजबूत होते हैं और कंगना भी उसी बात को बखूबी से पेश किया है। वहीं शाहिद कपूर विशाल भारद्वाज के साथ आकर बेहद निखर कर सामने आए हैं। वहीं सैफ अली खान एक प्रोड्यूसर के रोल में स्क्रीन पर बिल्कुल फिट बैठते हैं। वो लिमिटेड सीन में भी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हुए हैं।

म्यूजिक

फिल्म का संगीत अच्छा है और गुलजार की लिरिक्स शानदार हैं। फिल्म के गाने सुनने में बेहद अच्छे लगते हैं, लेकिन ज्यादा समय तक याद नहीं रह पाते हैं।

क्यों देखें

अगर आप पीरियड फिल्में के शौकीन हैं और कंगना व विशाल भारद्वाज के फैन हैं तो यह फिल्म आपके लिए है।

Source : News Nation Bureau

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