निर्देशक: विशाल फुरिया
कलाकार: काजोल, रोनित रॉय, इंद्रनील सेनगुप्ता, खेरीन शर्मा
अवधि: 135 मिनट
रेटिंग: 4/5
Maa Movie Review: पहली बार मिथक और हॉरर को एक साथ पिरोती फ़िल्म माँ शैतान के निर्माताओं द्वारा प्रस्तुत आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. यह फिल्म डर, माइथोलॉजी और भावनाओं का ऐसा संगम है, जो भारतीय मुख्यधारा सिनेमा को एक नई दिशा में ले जायेगी!
फिल्म की कहानी
कहानी कुछ इस तरह से हैं, अंबिका अपने पति शुभंकर और बेटी श्वेता से साथ खुशी से अपना जीवन जी रही है, तभी एक दिन न्यूज आती हैं की शुभंकर के पिता चल बसे हैं, और शुभंकर को अपने पैतृक गांव चंद्रपुर जाना होगा, कुछ दिन फिर न्यूज हैं की गावं में किन्ही अज्ञात कारणों के चलते शुभंकर की भी मृत्यु हो जाती हैं. अंबिका और श्वेता को अब चंद्रपुर के लिए निकल जाती हैं, और यही से कहानी में एक और ट्विस्ट आता है.
अंबिका और श्वेता को किसी अनजानी शक्ति है आभास होता है, यह शक्ति एक रक्तबीज हैं, जो श्वेता की बलि देना चाहता है. आगे क्या होता हैं, क्या अंबिका इस रक्तबीज दैत्य को हरा पाती हैं, यह दैत्य कौन हैं, कहाँ से आया हैं, अंबिका के पति की मृत्यु हुई हैं या हत्या, इस सब सवालो के जवाब के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.
काजोल का किरदार
विशाल फुरिया द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में काजोल ने अपने करियर का सबसे दमदार अभिनय किया है. अंबिका एक माँ, जिसकी ममता तब देविक रूप ले लेती हैं, जब उसकी बच्ची को खतरा होता है. काजोल का प्रदर्शन बेहद शक्तिशाली है. वो कही कोमल हैं, कही क्रोधित हैं, और कही देविये हैं. यह एक ऐसी भूमिका है जो भावनात्मक गहराई और एनर्जी से परिपूर्ण है.
माँ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह माइथोलॉजी और हॉरर के मेल को बिना किसी सस्ते जंप-स्केयर के दिखाती है. फिल्म काली बनाम रक्तबीज की कथा को आधुनिक संदर्भ में दोबारा रचती है, और आस्था बनाम अंधकार की शाश्वत लड़ाई को बहुत ही गहराई से दिखाती है.
फिल्म के स्पेशल इफेक्ट्स और वीएफएक्स और साउंड शानदार हैं. जो फिल्म को प्रभावशाली बनाते हैं और फिल्म के मैथोलॉजिकल स्केल को और भव्य बनाते हैं. फिल्म का एक स्पेशल मोमेंट “काली शक्ति” गीत के दौरान आता है, जिसमें महान गायिका उषा उत्थुप की हिंदी प्लेबैक सिंगिंग में वापसी होती है. यह गीत शक्तिशाली, आध्यात्मिक और सिनेमाई रूप से अत्यंत प्रभावशाली है.
सईविन क़ाद्रस की लिखी पटकथा चुस्त और बेहद रोमांचक है. विशाल फुरिया का निर्देशन हॉरर शैली की गहराई को आत्मा तक ले जाता है सिर्फ डर नहीं, आत्मिक झंझावात भी महसूस होता है. और जब लगता है कि कहानी खत्म हो गई है, तभी एक जबरदस्त ट्विस्ट सामने आता है जो दर्शकों को हैरान कर देता है.
माँ केवल एक फ़िल्म नहीं है यह एक इमोशनल, मैथोलोगिकाल और सिनेमेटिक अनुभव है. हॉरर और भावना का दुर्लभ संगम, जो भारतीय शैली की फिल्मों में एक नई ऊंचाई स्थापित करता है.
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