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आखिर क्यों लगा था देवानंद के काले कोट पहनने पर बैन? जाने उनके जन्मदिवस पर उनके रोचक किस्से..

अपने अनोखे अंदाज से अदाकारी करने वाले देव साहब ने भारतीय सिनेमा जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ी है।उनकी फिल्मो ने आज भी दर्शको के दिल मे एक अलग ही जगह बना रखी है

Updated on: 25 Sep 2021, 10:33 PM

नई दिल्ली:

अपने अनोखे अंदाज से अदाकारी करने वाले देव साहब ने भारतीय सिनेमा जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ी है।उनकी फिल्मो ने आज भी दर्शको के दिल मे एक अलग ही जगह बना रखी है. आज भी उनकी अदाकारी,उनका अंदाज लोगो के दिलों में जिंदा है. देवानंद जी का जन्म 26 सितंबर 1923 को गुरदासपुर(जो अब नारोवाल पाकिस्तान में है) में हुआ था. देव साहब का असली नाम धर्मदेव आनंद था जो कि बाद में देवानंद  प्रसिद्ध  हो गया. देव साहब केवल अभिनेता  नहीं थे, वे एक सफल निर्देशक और फ़िल्म निर्माता भी थे. फ़िल्म जगत में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2002 में उन्हें दादा साहेब फाल्के और सन 2002 में पद्म भूषण से नवाज़ा.

अपने जमाने में झुक-झुक कर संवाद कर अपनी ख़ास अदाकरी से फीमेल फैन्स के दिलों में एक अलग ही जगह बना ली थी..देव साहब अपने समकालीन एक्टरों से हमेशा से अलग थे. कितने अभिनेता आये और चले गए लेकिन जो चार्म देव साहब का था शायद ही उस दौर के किसी अभिनेता का होंगा. अपने दौर में रोमांस के महारथी रहे देवानंद के ऐसे तो बहुत किस्से मशहूर है लेकिन सबसे रोचक किस्सा है उनके काले कोट और सफेद शर्ट पर पब्लिक प्लेसेस पर बैन लगना.  देव साहब के दौर में उनके सफेद शर्ट और काले कोट वाला अवतार काफी प्रसिद्ध था. लोगो ने उन्हें कॉपी करना शुरू कर दिया।कोर्ट को उनके इस ड्रेसिंग स्टाइल पर बैन लगाना थोड़ा अजीब जरूर था लेकिन इसके पीछे की वजह यह थी कि उस दौर में उनके काले कोट और सफ़ेद कमीज पहनने के बाद पब्लिक प्लेसेस पर घूमने के दौरान कई महिलाओं के आत्महत्या करने की घटनाएं सामने आई जिसके बाद कोर्ट ने उनके इस डेडली कॉम्बिनेशन वाले अटायर को बैन कर दिया था.


मात्र 30 रुपये लेकर देवानंद मुम्बई पहुँचे थे..

देव साहब ने अपनी अंग्रेज़ी साहित्य से स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर से प्राप्त की।देव साहब आगे भी पढ़ना चाहते थे,लेकिन पिताजी ने उन्हें साफ कह दिया कि अब उनके पास आगे पढ़ाने के लिए पैसे नहीं है. अगर वह आगे पढ़ना चाहते है तो नौकरी कर ले।फिर वे  मुम्बई आये और शुरू हुआ देव साहब का स्वर्णिम सफर. उनके पास मात्र 30 रुपये थे और न ही उनके पास मुम्बई में रहने का कोई ठिकाना।देवानंद ने रेलवे स्टेशन के समीप ही एक होटल में कमरा लिया जहाँ उनके साथ तीन अन्य लोग भी मुम्बई सिनेमा जगत में अपनी किस्मत आजमाने आये थे.  उन्होंने मिलट्री सेंसर ऑफिस में 160 रुपये प्रति माह के वेतन से शुरुआत की. जल्द ही उन्हें प्रभात टॉकीज़ की एक फ़िल्म हम एक है में काम करने का मौका मिला और पूना में शूटिंग के दौरान उनकी दोस्ती अपने जमाने के सुपरस्टार गुरु दत्त से हो गयी. कुछ समय बाद अशोक कुमार के माध्यम से उन्हें बड़ा ब्रेक मिला..और धीरे-धीरे अपनी मेहनत और लाजबाब अदाकारी से उन्होंने फिल्म जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई.