Sam Bahadur Release: आखिर कौन है सैम बहादुर, जिनके ऊपर बनी है विक्की कौशल की फिल्म, जानें
Who Was Sam Bahadur: फिल्म सैम बहादुर में विक्की कौशल फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के रोल में नजर आने वाले हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि, वो आखिर हैं कौन ? जानने के लिए यह आर्टिकल पूरी पढ़ें.
New Delhi:
Who Was Sam Bahadur: मोस्ट अवेटेड फिल्म सैम बहादुर आखिरकार आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. फिल्म में विक्की कौशल ने फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की मुख्य भूमिका निभाई है. यह फिल्म उनके जीवन और समय पर प्रकाश डालती है. मेघना गुलज़ार के नर्देशन में बनी इस फिल्म में फातिमा सना शेख और सान्या मल्होत्रा भी शामिल हैं.फैंस सिनेमाघरों में यह फिल्म देखने के लिए बेहद एक्साइटेड हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि, फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ कौन थे? आज फिल्म बहादुर की रिलीज के मौके पर चलिए जानते हैं सैम मानेकशॉ के बारे में कुछ खास बातें.
सैम बहादुर कौन थे?
सैम होर्मूसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ, जिन्हें सैम बहादुर के नाम से भी जाना जाता है, पहले भारतीय सेना अधिकारी थे जिन्हें फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया था. उनका जन्म 3 अप्रैल, 1914 को ब्रिटिश भारत के अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था.वह 1932 में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में शामिल हुए, और 1934 में 4/12 फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट में नियुक्त हुए. पनी मूल इकाई में दोबारा शामिल होने से पहले, उन्हें एक ब्रिटिश इकाई के साथ 1936 में एक साल के लिए लाहौर भेजा गया था.
इतनी भाषाओं में महारत थी हासिल
सैम बहादुर को कई भाषाओं में महारत हासिल थी जैसे पंजाबी, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, गुजराती. 1938 में, वह पश्तो में उच्च मानक सेना दुभाषिया के रूप में थे. उन्होंने 1939 में सिल्लू बोडे से शादी की और उनकी दो बेटियाँ हुईं- शेरी और माया.
सैम मानेकशॉ का आर्मी करियर
सैम मानेकशॉ का एक प्रतिष्ठित सैन्य करियर था जो द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा के साथ शुरू हुआ, जो चार दशकों और पांच युद्धों तक फैला रहा. उन्होंने पांच युद्धों में साहसपूर्वक लड़ाई लड़ी जिनमें द्वितीय विश्व युद्ध, भारत-पाक वॉर (1965), भारत-पाक विभाजन वॉर (1947), चीन-भारत वॉर (1962) और बांग्लादेश मुक्ति वॉर (1971) शामिल थे.
1969 में, सैम मानेकशॉ को भारतीय सेना के 8वें चीफ ऑफ स्टाफ के रूप में नियुक्त किया गया था. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने भारतीय सेना को युद्ध के एक कुशल उपकरण के रूप में विकसित किया. यह उनके नेतृत्व में था कि भारतीय सेनाओं ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तान के खिलाफ सफल अभियान चलाया. जबकि सैम मैनकशॉ जून 1972 में रिटायर होने वाले थे, उनका कार्यकाल छह महीने बढ़ा दिया गया था. देश के सशस्त्र बलों में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए उन्हें 1 जनवरी, 1973 को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया था.
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वह अपने कार्यकाल के दौरान कुछ मौकों पर मौत को धोखा देने के लिए जाने जाते थे. उन्हें वीरता (द्वितीय विश्व युद्ध) के लिए पद्म विभूषण, पद्म भूषण और मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया था. लगभग 40 वर्षों के बड़े करियर के बाद वह 15 जनवरी 1973 को रिटायर हुए. इसके बाद वह अपनी पत्नी सिल्लू के साथ कुन्नूर में बस गए.
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