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लता मंगेशकर को है क्रिकेट से ज्यादा लगाव, जानिए कुछ अनसुने किस्से

साल 2004 में उनके 75वें जन्मदिन पर, डूंगरपुर ने लता मंगेशकर का आभार व्यक्त करते हुए बताया कि कैसे वे लता मंगेशकर के बारे में जान पाए थे.

Updated on: 25 Nov 2019, 11:00 AM

नई दिल्ली:

'भारत कोकिला' और प्रसिद्ध पाश्र्व गायिका लता मंगेशकर ने हाल ही में अपना 90वां जन्मदिन मनाया है, उनकी जिंदगी और करियर के बारे में कई लोग जानते हैं, लेकिन उनका क्रिकेट के प्रति प्यार शायद ही कोई जानता है, खासकर एक क्रिकेट खिलाड़ी राज सिंह डूंगरपुर जो आगे चलकर प्रबंधक बन गए.

समर सिंह और हर्षवर्धन द्वारा दिवंगत रणजी खिलाड़ी की बायोग्राफी के अनुसार, पूर्व केंद्रीय मंत्री व साल 1982-85 तक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष रहे एन.के.पी. साल्वे ने खुलासा किया था कि साल 1983 में विश्व कप की विजेता रही टीम को पुरस्कृत करने का वक्त आया था तो, "राज सिंह ने इस कार्य के लिए पैसा जुटाने के लिए लता मंगेशकर से दिल्ली में एक संगीत कार्यक्रम करने का अनुरोध करने का एक शानदार विचार पेश किया था, क्योंकि उन दिनों बीसीसीआई के पास फंड नहीं था."

साल्वे ने बताया, "इस पर लताजी सहमत हो गईं और उन्होंने एक पर्याप्त राशि जुटाने में बीसीसीआई की मदद की, जिससे विजेता टीम के प्रत्येक खिलाड़ी को 1 लाख रुपये के पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया, जो उन दिनों में छोटी राशि नहीं थी."

साल 2004 में उनके 75वें जन्मदिन पर, डूंगरपुर ने लता मंगेशकर का आभार व्यक्त करते हुए बताया कि कैसे वे लता मंगेशकर के बारे में जान पाए थे.

उन्होंने बताया, "अगस्त 1959 में मैं कानून की पढ़ाई करने के लिए बॉम्बे आया था. मैंने दिलीप सरदेसाई के चचेरे भाई सोपान सरदेसाई से कहा कि मैं क्रिकेट खेले बिना नहीं रह सकता. उन्होंने मुझे बताया कि यहां क्रिकेट खेलने के लिए एकमात्र स्थान वाल्केश्वर हाउस है, जहां लता मंगेशकर के भाई और उनके दोस्त टेनिस बॉल, क्रिकेट खेलते हैं. मैंने कहा, मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है मैं बस वहां खेलना चाहता हूं. वे (मंगेशकर) वाल्केश्वर हाउस के पीछे एक इमारत में रहते थे. उन दिनों वह पूरे-पूरे दिन रिकॉर्डिग कराती थीं. मैं वहां से खेलने के बाद अपनी बहन के घर नापेन सी रोड लौट आया."

"लेकिन उनके परिवार ने उन्हें बताया था कि मैं आया था, जिस पर उन्होंने कहा था कि उन्हें एक कप चाय जरूर पिलानी चाहिए थी. फिर मुझे ऊपर आमंत्रित किया गया. उस दिन बारिश हो रही थी, वह काफी प्यारी थी, उन्होंने मुझे अपनी गाड़ी दी थी. कुछ दिन बाद ही वे 'नारियल पूर्णिमा' त्योहार मना रही थी, और उन्होंने मुझे और मेरे छोटे भाई को रात के खाने पर बुलाया था. हर कोई क्रिकेट का दीवाना था और मैं सिर्फ रणजी ट्रॉफी स्तर का खिलाड़ी था. सोपान सरदेसाई और मंगेशकर परिवार नाना चौक में रहते थे, जो शायद एक चॉल से थोड़ा ऊपर होगा. वहां से वह वाल्केश्वर और फिर पेडार रोड गई. इसी तरह मैंने उन्हें जानना शुरू किया. मैं एक दो बार उनकी रिकॉर्डिग वगैरह के लिए भी गया था."

इसके बाद उन्होंने उन दिनों के बारे में बताया जब लता को पता चला कि उन्हें भारतरत्न (2001 में) से सम्मानित किया गया था. डूंगरपुर ने बताया कि वे लंदन में थे. उन्होंने बताया "उन्होंने फ्लैट खोला, तब रात के 11.30 बज चुके थे. फोन बज रहा था. उन्होंने फोन उठाया और कहा, 'वाह!' मैं चौंका कि लता मंगेशकर के लिए वाह वाली क्या बात है?"

उन्होंने आगे बताया, "लता ने कहा, रचना का फोन आया है, मुझे भारतरत्न मिला है."

कई लोगों ने आजीवन कुंवारे रहने की बात लता से छिपाने को लेकर डूंगरपुर से सवाल भी पूछे. तो वह हंसते हुए समझाते कि यह एक ऐसी दोस्ती थी जो उन दोनों के दिल को सुकून देती थी. वहीं कुंवारे होने के सवाल पर वह हमेशा हंसकर कहते कि "मेरी शादी हो चुकी है, क्रिकेट से."

इसके बाद साल 1980 में उदयपुर में नई मार्बल कंपनी का उद्घाटन किया जाना था और डूंगरपुर उसके चेयरमैन थे. इस अवसर पर लता को भी बुलाया गया था.