जब Manoj Kumar की गोद में सिर रखकर रोए थे एक्टर Raj Kapoor...

दोनों ही बहुत अच्छे कलाकार थे. साथ ही दोनों के आपसी संबंध भी  बहुत अच्छे थे. दोनों को 1970 की सुपरहिट फिल्म जोकर में भी एक साथ देखा गया था.

दोनों ही बहुत अच्छे कलाकार थे. साथ ही दोनों के आपसी संबंध भी  बहुत अच्छे थे. दोनों को 1970 की सुपरहिट फिल्म जोकर में भी एक साथ देखा गया था.

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Shubhrangi Goyal
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राज कपूर और मनोजकुमार

राज कपूर और मनोजकुमार( Photo Credit : social media)

हिंदी सिनेमा के शो मैन राज कपूर एक अच्छे एक्टर होने के साथ साथ एक शानदार डायरेक्टर भी थे. इसी तरह एक नाम डायरेक्टर मनोज कुमार का भी है. दोनों ही बहुत अच्छे डायरेक्टर थे. साथ ही दोनों के आपसी संबंध भी  बहुत अच्छे थे. दोनों को 1970 की सुपरहिट फिल्म जोकर में भी एक साथ देखा गया था. आपको बता दें, एक पुराने इंटरव्यू में, मनोज कुमार ने एक बार बताया, राजकपूर जब किसी गलतफहमी का शिकार हो गए थे, तो वो इनकी गोद पर सिर रखकर बहुत तेज रोए. आखिर ऐसा क्या हुआ था जो राजकपूर को उनकी गोद में सिर रखकर रोना पड़ा. आइए आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं.

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मनोज कपूर ने बताया कि राज को लगा था कि वह उसे नजर अंदाज कर रहे है क्योंकि एक बार जब राज ने मनोज को फोन करने की कोशिश की तो उसे बताया गया कि ये नंबर गलत है और ऐसा कहकर  फोन काट दिया गया. लेकिन सच्चाई यह थी कि जब राज ने उन्हें फोन किया था तब मनोज मुंबई में शूटिंग कर रहे थे और उन्हें कभी फोन नहीं आया. मुंबई मिरर के साथ एक पुराने इंटरव्यू में मनोज ने बताया था कि कैसे उन्होंने राज को स्थिति समझाने की कोशिश की थी. “हम शाम 4 बजे (संगीतकार) जयकिशन के आवास पर मिले, जहां मैंने राज साहब को आश्वासन दिया कि न तो मैं और न ही मेरी पत्नी शशि उन्हें परेशान करने की हिम्मत करेंगे. मैंने उनसे कहा कि मैं शोमैन के साथ नहीं बल्कि एक कर्मयोगी के साथ काम करने के लिए उत्सुक हूं और दिल्ली के रीगल थिएटर में हुई पिछली घटना के बारे में उन्हें बताया. राज साहब ने चुपचाप मेरी बात सुनी, फिर मेरी गोद में सिर रख कर रोने लगे.

'मेरा नाम जोकर' की स्क्रीप्ट लिखने का मिला वक्त

मनोज ने आगे बताया कि राज उनसे बहुत प्रभावित हुए थे जब उन्हें फिल्म मेरा नाम जोकर में अपने सीन को फिर से लिखने की अनुमति दी गई. “जब मैंने यह कहकर टाल दिया था कि (केए) अब्बास साहब (जिन्होंने कहानी और पटकथा लिखी थी) एक वरिष्ठ लेखक थे, उन्होंने मुझसे फोन पर बात की और उन्होंने ही मुझे इसके लिए अनुमति दी. वहीं राजकपूर की 1988 में अस्थमा से मौत  हो गई थी.

 

 

 

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