News Nation Review: इतिहास नहीं इतिहास से प्रेरित राजपूतों की 'शौर्यगाथा' है भंसाली की 'पद्मावत'

फिल्म देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि कि 'पद्मावत' को लेकर जिस तरह का घमासान मचाया जा रहा है, वैसा इसमें कुछ भी नहीं है।

फिल्म देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि कि 'पद्मावत' को लेकर जिस तरह का घमासान मचाया जा रहा है, वैसा इसमें कुछ भी नहीं है।

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saketanand gyan
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News Nation Review: इतिहास नहीं इतिहास से प्रेरित राजपूतों की 'शौर्यगाथा' है भंसाली की 'पद्मावत'

News Nation Review: इतिहास नहीं इतिहास से प्रेरित राजपूतों की 'शौर्यगाथा' है भंसाली की 'पद्मावत'

फिल्म 'पद्मावत' पर घमासान के बीच मंगलवार को दिल्ली में मीडिया कर्मियों के लिए फिल्म की स्क्रीनिंग हुई। फिल्म की स्क्रीनिंग में न्यूज नेशन भी शामिल हुआ। फिल्म देखने के बाद विशेषज्ञों के हवाले से यह कहा जा सकता है कि कि 'पद्मावत' को लेकर जिस तरह का घमासान मचाया जा रहा है, वैसा इसमें कुछ भी नहीं है।

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बल्कि यह फिल्म राजपूताना 'आन' 'बान' और 'शान' की स्थापना करती है, जिससे किसी भी राजपूत संगठन या करणी सेना जैसे संगठन को इससे कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।

ऐसे में करणी सेना, राजपूत संगठनों और अन्य हिंदू संगठनों का विरोध फिल्म के कंटेंट के हिसाब से जायज नहीं लगता। सीधे और सपाट शब्दों में कहा जाए तो इस फिल्म में संजय लीला भंसाली ने राजपूतों की 'शौर्यगाथा' को दिखाया है।

न्यूज नेशन के मैनेजिंग एडिटर अजय कुमार ने फिल्म क्रिटिक प्रदीप सरदाना, इतिहासकार पी के सचदेव और साहित्यकार प्रोफेसर राजाराम के साथ इस फिल्म की समीक्षा की। सभी विशेषज्ञ कुमार के साथ स्क्रीनिंग में शामिल थे।

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कुमार से बातचीत में प्रदीप सरदाना ने कहा कि इस फिल्म में जिस तरह से राजपूतों की शौर्यगाथा दिखाई गई है, वैसा पहले कभी नहीं दिखाया गया।

सरदाना ने कहा, 'फिल्म कोई भी निर्माता अपने स्टाइल से बनाता है। जायसी ने भी अपने तरीके से 'पद्मावत' को 237 साल बाद लिखा था। राजपूतों को खुश होना चाहिए कि खिलजी का मजाक उड़ाया गया है जबकि श्याम बेनेगल ने खिलजी का महिमामंडन किया था।'

वही इतिहासकार पी के सचदेव ने कहा, 'यह मैक्रो लेवल पर एक इतिहास है और माइक्रो लेवल पर एक फिक्शन है। इन्हीं दोनों का अद्भुत मिश्रण फिल्म 'पद्मावत' में है और इसमें राजपूतों की आपत्ति का कोई प्रश्न ही नहीं उठता, क्योंकि एक भी सीन ऐसा नहीं है जिसमें राजपूतों के खिलाफ कुछ भी कहा गया हो।'

उन्होंने कहा, 'सबसे बड़ा सर्टिफिकेट राजपूत जाति के लोगों को जो मिल सकता था, वह इस फिल्म से मिल गया।'

वहीं साहित्यकार प्रोफेसर राजाराम ने कहा, 'फिल्म में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं हैं।' उन्होंने कहा कि कहीं से भी इस फिल्म को 'ऐतिहासिक नहीं कहा जा सकता बल्कि यह इतिहास से प्रेरित है।'

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Source : News Nation Bureau

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