मीना कुमारी: 40 साल की ऐसी कहानी जिसके मरने के बाद दर्द भी लावारिस हो गई
बेपनाह हुस्न और बेजोड़ अदाकारी की मल्लिका को दुनिया हिंदी सिनेमा जगत की ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी के नाम से जानती है।
नई दिल्ली:
अगर आपसे पूछे कि सफलता का पैमाना क्या है तो आपमें से कई लोगों का जवाब होगा नाम, इज्जत, शोहरत हालांकि मगर यह सब होते हुए भी एक शख्स कितना तन्हा हो सकता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण महजबीं बानों बक्श थी।
महजबीं बानों बक्श जिनकी जिंदगी 40 साल की एक दर्द भरी कविता जैसी थी। वह महजबीं बानों बक्श जिनकी अदाकारी पर्दे पर देखकर सारी दुनिया ने प्यार दिया लेकिन निजी जिंदगी में वह प्यार और खुशी के लिए हमेशा तरसती रही।
बचपन में महजबीं बानों बक्श स्कूल जाना चाहती थी लेकिन उस बच्ची की ख्वाहिशों को परिवार की जरूरतों के लिए अनदेखा कर दिया गया। सात साल की उम्र में महजबीं बानों ने स्टूडियों जाना शुरू किया। साल- दर- साल फिल्म-स्टूडियो और घर के बीच का रिश्ता पुख्ता होता गया और परिवार की रोज़ी-रोटी चलाने के लिए उसका बचपन लाइट, कैमरा और ऐक्शन के दरमियान कैद हो गई।
जब गोरा रंग, चांद सा चेहरा, झील सी आंखें, माथे पे बड़ी सी लाल बिंदी, काले लम्बे घुंघराले बाल और सर पर साड़ी का पल्लू लिए वह परदे पर आई तो किसी भारतीय नारी की मुकम्मल तस्वीर लगी।
बेपनाह हुस्न और बेजोड़ अदाकारी की इस मल्लिका को दुनिया हिंदी सिनेमा जगत की ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी के नाम से जानती है।
मीना कुमारी जो जब तक जिंदा रही तब तक उनका दर्द से इस कदर रिश्ता रहा कि जब 31 मार्च 1971 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा तो दर्द भी लावारिस हो गए, यतीम हो गए, शायद फिर मीना कुमारी जैसा कोई उन्हें अपनाने वाला मिला।
बचपन से ही शुरू हो गई ट्रेजेडी
मीना कुमारी की जिंदगी में ट्रेजेडी उनके पैदा होने के साथ ही शुरू हो गई थी। 1 अगस्त 1932 में थिएटर आर्टिस्ट अली बक्श के घर जन्मी मीना के पिता की ख्वाहिश एक बेटे की लिए थी लेकिन ख़ुदा ने उनके घर मीना के रूप में एक नायाब तोहफ़ा भेजा। हालात कुछ ऐसे थे कि मीना के पैदा होने पर अली बक्श के पास डिलिवरी करवाने वाले डॉक्टर की फीस भरने तक को पैसे नहीं थे। उनके पिता ने उनकी परवरिश सही से नहीं हो पाने की चिंता से उन्हें अनाथालय में छोड़ आए हालांकि बाद में वह मीना को वापस ले आए।
मासूम मीना को बचपन से ही पढ़ने का बहुत शौक था मगर कभी हालात इतने बेहतर नहीं हुए कि वह स्कूल और अभिनय साथ-साथ कर सकें। उन्हें बचपन से ही हिंदी और अंग्रेजी से ज्यादा उर्दू पढ़ने का शौक था। कहा जाता है कि वह अकसर सेट पर किताबें लेकर पहुंचती थीं।
मीना कुमारी लगभग तीस साल पर्दे पर अभिनय करती रही और इस दौरान उन्होंने 99 फिल्मों में अभिनय किया। बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट उनका करियर 1939 में 'लेदर फेस' नामक फिल्म से शुरू हुआ। इस फिल्म में महजबीं बानों बक्श के किरदार का नाम मीना रखा गया और बाद में इसी नाम से उनकी पहचान बनी।
कमाल अमरोही से हुआ इश्क
इश्क की कोई उम्र नहीं होती शायद मीना कुमारी की जिंदगी में यह बात सटीक बैठती है। मीना को 18 साल की उम्र में खुद से 14 साल बड़े कमाल अमरोही से इश्क हो गया। प्यार भी ऐसा कि पहली बार एक मैगजीन में छपी कमाल अमरोही तस्वीर की देखकर ही उन्हें दिल दे बैठी।
इसके बाद फिल्म दायरा के सेट पर नजदीकियां बढ़ी और मीना को कमाल भी दिल दे बैठे। पहले से शादीशुदा अमरोही उनके प्यार में पागल हो गए। दोनों के घरवाले इस शादी के लिए राजी नहीं थे लेकिन दोनों ने अपने दोस्तों की मदद से 14 फरवरी 1952 को शादी कर ली।
जैसे ही लगा कि मीना की जिंदगी में अमरोही के आने से अब दुखों का बोझ कम होगा ठीक उसी वक्त किस्मत एक बार फिर से उन्हे दगा दे गई। दोनों के बीच कई गलफहमियां हुई। मीना बच्चा चाहती थी लेकिन अमरोही नहीं। मीना को हर बात के लिए रोका-टोका जाने लगा। मनमुटाव बढ़ने के चलते दोनों दस साल तक रिश्ते की डोर को संभाले बैठे लेकिन अंत में 1964 में अलग हो गए।
मीना कुमारी जिससे प्यार सभी करते थे लेकिन फिर भी वह तन्हा रही
मीना एक थी लेकिन उनके प्रेमी अनेक थे। मीना कुमारी का नाम कई लोगों से जोड़ा गया। फिल्म बैजू बावरा के निर्माण के दौरान नायक भारत भूषण ने उनको अपने दिल की बात कही तो राजकुमार भी उनके प्यार में खो गए। कहा जाता है कि अकसर सेट पर राजकुमार डायलॉग भूल जाते थे। इतना ही नहीं उस दौरान बॉलिवुड के 'हीमैन' धर्मेन्द्र और मीना कुमारी के बीच रोमांस की खबरें भी ज़ोरों पर थी।
जिंदगी के ग़मों ने लगाई शराब की लत
जिंदगी के ग़मों से तंग आकर मीना ने शराब का सहारा लेना शुरू कर दिया। कई बार वह बॉलिवुड के स्टार के साथ शराब पीने की वजह से खबरों में रही। कहा जाता है कि धर्मेन्द्र की 'बेवफाई' ने मीना को अकेले में भी पीने पर मजबूर किया। वे छोटी-छोटी बोतलों में देसी-विदेशी शराब भरकर पर्स में रखने लगीं।
अशोक कुमार मीना कुमारी के दोस्त थे और उनसे मीना को शराब के नशे में नहीं देखा गया। उन्होंने मीना कुमारी को शराब से दूर करने के लिए होम्योपैथी की छोटी गोलियां देने की कोशिश की लेकिन मीना ने नहीं लिया। मीना ने अशोक कुमार से कहा-'दवा खाकर भी मैं जीऊंगी नहीं, यह जानती हूं मैं।'
अंदर से पूरी तरह टूट चुकी मीना को कभी जिंदगी ने गले नहीं लगाया और 31 मार्च 1972 को मीना मौत की ही बांहों में समा गई। मीना अभिनय के साथ एक बेहतरीन शायरा भी थी। इस बेहतरीन ट्रेजिडी क्वीन ने जब इस दुनिया को अलविदा कहा तो उनकी लिखी यह पंक्ति सत्य प्रतीत होने लगा।
चांद तन्हा है आसमां तन्हा, दिल मिला है कहां-कहां तन्हा
बुझ गई आस, छुप गया तारा, थरथराता रहा धुआं तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक, छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा।
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