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जब गुस्से में घर छोड़कर चली गईं थी लता, जानिए किस बात से हो गई थीं नाराज

मैं बहुत शरारती थी. मेरी मां मुझे पकड़कर मारती भी थी. मैं गुस्से में अपनी फ्रॉक को गठरी में बांधकर कहती थी मैं घर छोड़कर जा रही हूं.

Updated on: 13 Nov 2019, 12:17 PM

नई दिल्ली:

सांस लेने की तकलीफ और सीने में खून का जमाव के कारण लता मंगेशकर अस्पताल में भर्ती हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो लता जल्द ही हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो जाएंगी. तो वहीं पूरा देश उनकी सलामती की दुआएं मांग रहा है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि बचपन में लता जी काफी शरारती थीं. 

बीबीसी हिंदी को दिए इंटरव्यू में लता मंगेशकर ने बताया था. लता मंगेशकर का कहना है कि बचपन में वह काफी ऊर्जावान , शरारती , जोश से भरपूर थीं , जिसके चलते उन्हें रोकना उनकी मां के लिए मुश्किल साबित होता था.

लता ने कहा कि मुझे बचपन से गाने का शौक था. मेरे पिताजी को मां के हाथ की बनाई कुछ चीज़ें बहुत अच्छी लगती थी. वैसे तो घर में खाना बनाने के लिए एक नौकर था लेकिन पिताजी के लिए मां कुछ ना कुछ बनाती रहती थी. मैं उनके पीछे पीछे किचन में चली जाती थी और एक स्टूल पर खड़े होकर मां को गाना सुनाती थी. मां कहती थी अरे तू मुझे खाना बनाने दे लेकिन मैं कहती नहीं तुम सुनो ना. मैं उन्हें बाबा के गाने और सहगल के गाने गाकर सुनाती थी.मां मुझसे नाराज़ हो जाती थी और कहती थी अरे ये लड़की तो मुझे काम ही नहीं करने देती.

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मैं बहुत शरारती थी. मेरी मां मुझे पकड़कर मारती भी थी. मैं गुस्से में अपनी फ्रॉक को गठरी में बांधकर कहती थी मैं घर छोड़कर जा रही हूं. मैं वाकई में सड़क पर निकल जाती थी. घर के पास एक तालाब जैसा था और मां सोचती थी कि कहीं मैं वहां गिर ना जाऊं इसलिए मुझे वापिस लाने के लिए नौकरों को भेजती थी.

एक बार मैं घर छोड़कर बाहर निकल गई तो बालकनी में पिताजी खड़े थे और उन्होंने कहा कि हां-हां लता को जाने दो , इसको बहुत तकलीफ देते हैं हम लोग. जाओ जाओ लता. पिताजी ऐसा बोल रहे थे और मैं पीछे मुड़-मुड़कर देख रही थी कि कोई मुझे रोकने आए लेकिन कोई नहीं आ रहा था.

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हमारे घऱ में माहौल संगीत का ही रहता था. हालांकि मेरी मां नहीं गाती थी लेकिन वो गाना समझती थी. पिताजी सुबह साढ़े पांच बजे तानपुरा लेकर शुरु हो जाते थे.

एक बार मेरे पिताजी अपने शागिर्द को संगीत सिखा रहे थे. उन्हें शाम को कहीं जाना पड़ गया तो उन्होंने शागिर्द से कहा कि तुम अभ्यास करो मैं आता हूं.मैं बालकनी में बैठे शागिर्द को सुन रही थी. मैं उसके पास गई और कहा कि ये बंदिश तुम गलत गा रहे हो. इसे ऐसे गाते हैं और मैंने उसको वो बंदिश गाकर सुनाई. इतनी देर में पिताजी आ गए और मैं वहां से भागी.

उस वक्त मैं चार-पांच साल की ही थी और पिताजी को नहीं पता था कि मैं गाती भी हूं. शागिर्द के जाने के बाद पिताजी ने मां से कहा कि अपने घर में गवैया बैठा है और हम बाहर वालों को सिखा रहे हैं. अगले दिन पिताजी ने मुझे छ बजे उठाकर तानपुरा थमा दिया.