भारत रत्न से सम्मानित सुर कोकिला Lata Mangeshkar का निधन हो गया है. वह 92 वर्ष की थीं. लता मंगेशकर 8 जनवरी से ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती थीं. आठ दशक से भी अधिक समय से हिन्दुस्तान की आवाज बनीं लता ने 30 से ज्यादा भाषाओं में हजारों फिल्मी और गैर-फिल्मी गानों में अपनी आवाज का जादू बिखेरा. उनकी आवाज़ में कितने ही गाने अमर हो गए, उनमें विशेष है 'ऐ मेरे वतन के लोगों' जिसे कवि प्रदीप ने लिखा है. यह संयोग ही है कि आज कवि प्रदीप की जयंती भी है. आज लता मंगेशकर के चाहने वाले उन्हें इसी गीत के ज़रिये याद भी कर रहे हैं.
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वहीं, बता दें कि इस गाने की अपनी एक अलग कहानी भी है. कवि प्रदीप ने एक इंटरव्यू में बताया था कि ये गाना कैसे बना और इसकी पैदाइश हुई कैसे. 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत की बुरी हार हुई थी. पूरे देश का मनोबल गिरा हुआ था. ऐसे हालात में लोगों ने फ़िल्म जगत और कवियों की ओर देखा कि वो कैसे सबके उत्साह और मनोबल को बढ़ा सकते हैं. सरकार ने भी फिल्म उद्योग इस बारे में कुछ करने की गुजारिश की, जिससे देश फिर जोश से भर उठे. चीन से मिली हार के ग़म पर मरहम लगाई जा सके. उस जमाने में कवि प्रदीप ने देशभक्ति के कई गाने लिखे थे. उन्हें ओज का कवि माना जाने लगा था. लिहाजा उन्हीं से कहा गया कि आप एक गीत लिखें. तब देश में फिल्मी जगत के तीन महान गायकों की तूती बोलती थी. वो थे मोहम्मद रफ़ी, मुकेश और लता मंगेशकर.
चूंकि देशभक्ति के कुछ गाने रफी और मुकेश की आवाज में गाये जा चुके थे लिहाजा नया गाना लता मंगेशकर को देने की बात सूझी लेकिन इसमें एक अड़चन थी. उनकी आवाज सुरीली और रेशमी थी. उसमें जोशीला गाना शायद फिट नहीं बैठ पाता. तब कवि प्रदीप ने एक भावनात्मक गाना लिखने की सोची. इस तरह ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाने का जन्म हुआ. जिसे जब दिल्ली के रामलीला मैदान में लता ने नेहरू के सामने गाया तो उनकी आंखों से भी आंसू छलक गए. इस गीत ने अगर कवि प्रदीप को अमर कर दिया तो लता मंगेशकर हमेशा के लिए एक गाने से ऐसी जुड़ीं कि ये उनकी भी बड़ी पहचान बन गया.