कविता महज रोमांस नहीं, अपने दौर का दस्तावेज होती है: गुलजार

चाहे वह विभाजन की पीड़ा हो या महाराष्ट्र में किसानों द्वारा चलाया गया आंदोलन हो अथवा असम बाढ़ में लोगों की दुर्दशा...शायर और गीतकार गुलजार का मानना है कि कविता अपने दौर का दस्तावेज होती है.

चाहे वह विभाजन की पीड़ा हो या महाराष्ट्र में किसानों द्वारा चलाया गया आंदोलन हो अथवा असम बाढ़ में लोगों की दुर्दशा...शायर और गीतकार गुलजार का मानना है कि कविता अपने दौर का दस्तावेज होती है.

author-image
nitu pandey
एडिट
New Update
कविता महज रोमांस नहीं, अपने दौर का दस्तावेज होती है: गुलजार

गुलजार (फाइल फोटो)

चाहे वह विभाजन की पीड़ा हो या महाराष्ट्र में किसानों द्वारा चलाया गया आंदोलन हो अथवा असम बाढ़ में लोगों की दुर्दशा...शायर और गीतकार गुलजार का मानना है कि कविता अपने दौर का दस्तावेज होती है. मीडिया से बातचीत करते हुए शुक्रवार को 84 वर्षीय शायर ने कहा कि कविता विभिन्न कालखंड में दौरान देश के अलग अलग हिस्सों के मन मिजाज को प्रतिबिंबित करती है.

Advertisment

उन्होंने कहा, ‘कविता महज रोमांस नहीं है. यह हर चीज के बारे में बात करती हैं. यह अपने समय का दस्तावेज होती है. जब मैंने अपने समकालीन लोगों की कविता का अनुवाद शुरू किया तब मुझे एहसास हुआ कि यह बरसों से देश के मन मिजाज को बताती है.

इसे भी पढ़ें: बाढ़ की तबाही पर नीतीश के मंत्री ने दिया संवेदनहीन बयान, कहा-मौत तो स्वाभाविक है

उर्दू के नामचीन शायर फैज अहमद फैज की 1947 में लिखी गयी पंक्तियों ‘ये दाग़ दाग़ उजाला, ये शब-ग़जीदा सहर, वो इंतज़ार था जिसका, ये वो सहर तो नहीं.’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जहां बाकी देश आजादी का जश्न मना रहा था, वहीं एक तरफ विभाजन का शोक था.

उन्होंने कहा, ‘उन्होंने (फैज़ साहब) ने कहा कि यह दागदार सुबह हैं. यह वह सुबह नहीं है जिसकी हम उम्मीद कर रहे थे। इससे पता लता है कि सीमावर्ती राज्यों के लोगों को विभाजन ने किस प्रकार प्रभावित किया था. मुझे हिन्दी, उर्दू, पंजाबी और बंगाली भाषाओं को छोड़कर अन्य भाषाओं में विभाजन के बारे में कोई कविता, कहानियां या दोहा नहीं मिले, क्योंकि विभाजन ने देश के बाकी हिस्सों को प्रभावित नहीं किया.'

Gulzar Poem
      
Advertisment