अपने अहसास को बयां करने के लिए हमें शब्दों की जरूरत होती है। इन्हें महसूस करके मोहब्बत के धागे में पिरोना शायद गुलजार जैसे शायर से बेहतर कोई नहीं कर सकता है।
गुलजार की नज़्मों में दर्द भी और सुकून भी। उन्होंने आंख और चांद पर सबसे ज्यादा नज्में लिखी हैं। कुछ ऐसी नज्म हैं, जो किताब के पन्नों के साथ-साथ हमारे दिलों पर भी छपी हुई है।
1. खाली कागज़ पे क्या तलाश करते हो?
एक ख़ामोश-सा जवाब तो है।
डाक से आया है तो कुछ कहा होगा
"कोई वादा नहीं... लेकिन
देखें कल वक्त क्या तहरीर करता है!"
या कहा हो कि... "खाली हो चुकी हूँ मैं
अब तुम्हें देने को बचा क्या है?"
ये भी पढ़ें: जन्मदिन विशेष: एक मुकम्मल ग़ज़ल का नाम है 'गुलज़ार'
2. चार तिनके उठा के जंगल से
एक बाली अनाज की लेकर
चंद कतरे बिलखते अश्कों के
चंद फांके बुझे हुए लब पर
मुट्ठी भर आरजुओं का गारा
एक तामीर के लिए हसरत
तेरा खानाबदोश बेचारा
शहर में दर-ब-दर भटकता है
तेरा कांधा मिले तो टेंकू!
3. देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता जरा
देखना, सोच-संभल कर जरा पांव रखना,
जोर से बज न उठे पैरों की आवाज कहीं.
कांच के ख्वाब हैं, बिखरे हुए तन्हाई में,
ख्वाब टूटे न कोई, जाग न जाए देखो,
जाग जाएगा कोई ख्वाब तो मर जाएगा
ये भी पढ़ें: चॉर्लेट्सविल हिंसा और रेसिज्म पर बराक ओबामा के ट्वीट ने तोड़े सारे रेकॉर्ड
4. दिल में ऐसे ठहर गए हैं गम
जैसे जंगल में शाम के साए
जाते-जाते सहम के रूक जाएं
मुड़के देखे उदास राहों पर
कैसे बुझते हुए उजालों में
दूर तक धूल ही धूल उड़ती है
5. याद है एक दिन
मेरी मेज पे बैठे-बैठे
सिगरेट की डिबिया पर तुमने
एक स्केच बनाया था
आकर देखो
उस पौधो पर फूल आया है!
6. तेरी यादों के जो आखिरी थे निशान
दिल तड़पता रहा, हम मिटाते रहे
ख़त लिखे थे जो तुमने कभी प्यार में
उसको पढते रहे और जलाते रहे
ये भी पढ़ें: माकपा और भाजपा-आरएसएस कार्यकर्ताओं के बीच झड़प, 19 लोग घायल
Source : News Nation Bureau