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नागरिकता विधेयक के विरोध में पद्मश्री लौटाएंगे मणिपुरी फिल्मकार अरिबम शर्मा

नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है. इस लिस्ट में अब फिल्म निर्माता अरिबम श्याम शर्मा का नाम भी जुड़ गया है. उन्होंने नागरिकता विधेयक के विरोध में पद्मश्री अवॉर्ड वापस कर दिया है.

Updated on: 03 Feb 2019, 07:53 PM

मुंबई:

नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है. इस लिस्ट में अब फिल्म निर्माता अरिबम श्याम शर्मा का नाम भी जुड़ गया है. उन्होंने नागरिकता विधेयक के विरोध में पद्मश्री अवॉर्ड वापस कर दिया है. शर्मा को साल 2006 में इस सम्मान से नवाजा गया था.

अरिबम ने इंफाल स्थित अपने आवास से इसका ऐलान करते हुए कहा कि नागरिकता बिल के विरोध में उन्होंने यह सम्मान वापस करने का फैसला लिया है. उन्होंने कहा, 'यह विधेयक पूर्वोत्तर और मणिपुर के स्थानीय लोगों के खिलाफ है। यहां (मणिपुर) कई लोगों ने इस विधेयक का विरोध किया है, लेकिन लग रहा है कि वे (केंद्र सरकार) इसे पारित करने का निश्चय कर चुके हैं।'

उन्होंने कहा, 'पद्मश्री एक सम्मान है। यह भारत में सबसे बड़े सम्मानों में से एक है। इसलिए मुझे विरोध प्रदर्शन के लिए इसे वापस करने से बेहतर और कोई तरीका नहीं लगा।' 'इशानाओ', 'इमाजी निंग्थेम' और 'लीपक्लेई' जैसी फिल्में बना चुके फिल्मकार को 2006 में पद्मश्री सम्मान दिया गया था।

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अरिबम श्याम शर्मा को साल 2006 में मणिपुरी सिनेमा और फिल्मों की दुनिया में अहम सहयोग के लिए दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने पद्मश्री से सम्मानित किया था.

80 वर्षीय फिल्म निर्माता ने कहा, 'मुख्यमंत्री सिर्फ एक धारा की बात कर रहे हैं। उन्हें विधेयक का विरोध करना चाहिए और उसमें कुछ जोड़ने या बदलाव करने के लिए नहीं कहना चाहिए। हम बिरेन और उनकी पार्टी की सोच से खुश नहीं हैं।'

उन्होंने कहा, 'घाटी (मणिपुर में) के लोगों की कोई सुरक्षा नहीं है। अगर और ज्यादा लोग आएंगे तो वे (स्थानीय लोग) घाटी या पहाड़ियों में लुप्त हो जाएंगे। जब स्थानीय लोग ही नहीं रहेंगे, तो संस्कृति बचाने की बात कहां से रह गई? मणिपुर का पूरा भविष्य मिश्रित हो जाएगा। पूर्वोत्तर अब कूड़ाघर बन रहा है।'

क्या है पूरा विवाद

नागरिकता (संशोधन) विधेयक को आठ जनवरी को लोकसभा ने पारित कर दिया था. इसका मकसद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के गैर मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता देना है.

लगातार हो रहा है विधेयक का विरोध

असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक के खिलाफ लोगों का बड़ा तबका प्रदर्शन कर रहा है. उनका कहना है कि यह 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा जिसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी, भले ही उसका धर्म कोई भी हो.

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नया विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. यह विधेयक कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदाय को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता प्रदान करेगा.

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत कुछ अन्य पार्टियां लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं. उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है, क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है.

(IANS इनपुट के साथ)