ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार हो गए थे डिप्रेशन के शिकार, फिर ऐसे आए बाहर
ट्रेजडी किंग के खिताब से नवाजे जाने वाले दिलीप कुमार कभी इसी वजह से डिप्रेशन में चले गए थे। इस बात से बेहद ही कम लोग वाकिफ होंगे।
नई दिल्ली:
बॉलीवुड के दिग्गज एक्टर दिलीप कुमार (dilip kumar) के जीवन का हर पन्ना बेहद ही रोचक रहा है। ट्रेजडी किंग के खिताब से नवाजे जाने वाले दिलीप कुमार कभी इसी वजह से डिप्रेशन में चले गए थे। इस बात से बेहद कम लोग ही वाकिफ होंगे। 'ज्वार भाटा' (1944) से फिल्मों में डेब्यू करने वाले दिलीप कुमार दाग (1952), देवदास (1955), अनारकली (1953) जैसी कई फिल्में की जिसमें वो बेहद ही संजीदा और गंभीर अभिनय करते नजर आए। लोगों को उनका इस तरह का रोल इतना पसंद आया कि वो हर फिल्म में दिलीप कुमार को ऐसे ही देखना चाहते थे। जिसकी वजह से दिलीप कुमार असली जिंदगी में भी संजीदा और दुखी रहने लगे थे।
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दिलीप साहब की जिंदगी में एक वक्त आया कि वो मेंटल ट्रॉमा में चले गए। जिसके बाद वो इससे निकलने के लिए मनोचिकित्सक के पास गए। साइकेट्रिस्ट ने उन्हें डिप्रेशन से बाहर निकालने के लिए गंभीर अभियन के बदले कॉमेडी फिल्म करने की सलाह दी।
जिसके बाद अभिनय के सम्राट ने कई शानदार कॉमेडी फिल्में की। राम और श्याम (1967), गोपी(1970), सगीना महतो (1970), कोहिनूर(1960), आजाद (1955) में दिलीप कुमार बेहतरीन अभिनय के साथ-साथ कॉमेडी करते नजर आए।
फिल्म कोहिनूर में आइने के सामने दिलीप कुमार की कॉमेडी का सीन इतना हिट हुआ कि अमिताभ बच्चन ने इस सीन को 'अमर अकबर एन्थोनी' में दोहराया।
इन फिल्मों में अभिनय करके दिलीप साहब ना सिर्फ डिप्रेशन से बाहर आए, बल्कि कॉमेडी में भी महारत हासिल करके अलग पहचान बनाई।
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