जब भारत सरकार ने दिलीप कुमार को सीक्रेट मिशन के लिए पाकिस्तान भेजा था
आज हम आपको दिलीप कुमार से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बता रहें हैं जिसके बारे में आपको अब तक नहीं पता होगा. पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने अपनी किताब में दावा किया है कि दिलीप कुमार को भारत सरकार ने सीक्रेट मिशन पर पाकिस्तान भेजा था.
highlights
- पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री ने दिलीप साहब पर कई खुलासे किए
- पाक नेता ने अपनी किताब में लिखा- दिलीप कुमार सीक्रेट मिशन पर पाकिस्तान आए थे
- कारगिल युद्ध के दौरान पाक पीएम नवाज शरीफ को फोन किया था
नई दिल्ली:
बॉलीवुड में 'ट्रेजडी किंग' (Tragedy King) के नाम से मशहूर दिलीप कुमार ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. दिलीप कुमार (Dilip Kumar) का निधन हो गया है. लंबी बीमारी के बाद बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार दिलीप कुमार (Dilip Kumar Passes Away) ने बुधवार सुबह 7.30 बजे आखिरी सांस ली है. 98 साल के दिलीप कुमार का मुंबई के पीडी हिंदुजा अस्पताल में निधन हुआ है. उनको सांस संबंधित परेशानी थी. दिलीप कुमार हिंदी सिनेमाजगत के बेहतरीन अभिनेताओं में शुमार थे. उनके निधन की खबर से उनके प्रशंसक ही नहीं, बल्कि पूरे देश में शोक पसर गया है. लोग उन्हें सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि दे रहे हैं.
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पाक नेता का दावा- सीक्रेट मिशन पर आए थे पाकिस्तान
आपने दिलीप कुमार के फिल्मी करियर और इससे जुड़ी कई बातों के बारे में जरूर सुना होगा. आज हम आपको दिलीप कुमार से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बता रहें हैं, जिसके बारे में आपको अब तक नहीं पता होगा. पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने अपनी किताब के लॉन्च के मौके पर कहा था कि भारत सरकार के सीक्रेट मिशन पर दिलीप कुमार 2 बार पाकिस्तान आ चुके हैं. कसूरी ने कहा था कि ‘मुझे दिलीप साहब की पत्नी सायरा बानू ने बताया कि वो 2 बार पाकिस्तान में सीक्रेट मिशन के लिए जा चुके हैं. उन्हें भारत सरकार ने खास विमान से इस्लामाबाद भेजा था. मुझे लगता है यह दर जिया-उल-हक का दौर का होगा. दूसरा और भी हाल के दिनों में होगा.’
पाक के पूर्व विदेश मंंत्री ने अपनी किताब में जिक्र किया
पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्ट में कसूरी के हवाले से यह बात कही गई है. अक्टूबर 2015 में कसूरी जब भारत के दौरे पर आए तो वे मुंबई में दिलीप कुमार से मिलने उनके घर भी गए थे. उन्होंने बताया कि वो जानबूझकर जिन्ना हाउस, मणि भवन के अलावा दिलीप कुमार के घर भी जाने का फैसला किया. कसूरी 2002 से 2007 के दौर में पाकिस्तान के विदेश मंत्री रहे थे.
कारगिल युद्ध रुकवाने की कोशिश की थी
कसूरी ने एक और बात का खुलासा किया था. उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि कारगिल युद्ध के दौरान दिलीप कुमार ने भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी कि युद्ध रुक जाए और दोनों मुल्कों के बीच शांति स्थापित हो. कसूरी ने कहा था कि कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के पास भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का फोन आया था. दोनों की बातचीत जैसे ही खत्म हुई, नवाज शरीफ के पास एक और फोन आया. और ये फोन था यूसुफ खान यानी दिलीप कुमार का.
नवाज शरीफ को फोन करके खूब सुनाया था
युद्ध को लेकर दिलीप कुमार नवाज शरीफ से काफी दुखी थे. उन्होंने कहा था कि मियां साहेब, हमें आपसे ये उम्मीद नहीं थी. क्योंकि आप हमेशा भारत और पाकिस्तान के बीच शांति बनाए रखने के पक्ष में हैं. भारतीय मुसलमान होने के नाते मैं आपको एक बात बता रहा हूं कि पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव होने से यहां के मुसलमानों में असुरक्षा का भाव आएगा, उन्हें अपने घर से निकलना भी मुश्किल हो जाएगा. स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आप कुछ कीजिए.’
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इस बात पर टूट गई थी बाला साहेब से दोस्ती
आपको बता दें कि दिलीप साहब भले ही किसी दल में शामिल नहीं रहे हों, लेकिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक कई राजनेताओं से उनकी काफी अच्छी दोस्ती रही है. शिवसेना के दिवंगत नेता बाला साहेब ठाकरे भी दिलीप साहेब के काफी अच्छे दोस्त हुआ करते थे, लेकिन ये दोस्ती कारगिल युद्ध के दौरान टूट गई थी. दरअस कारगिल युद्ध से ठीक पहले पाकिस्तान सरकार ने दिलीप साहब को 'निशान-ए-इम्तियाज' पुरस्कार देकर सम्मानित किया था. युद्ध के दौरान बाला साहेब ठाकरे ने दिलीप कुमार से अवार्ड वापस करने की अपील की. लेकिन दिलीप कुमार ने साफ इंकार कर दिया. उन्होंने कहा कि ये अवार्ड मुझे नहीं मेरी कला को मिला है.
अटल बिहारी वाजपेयी ने दी थी ये सलाह
दिलीप कुमार ने इस विषय पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी सलाह मांगी थी. वाजपेयी जी खुद एक कवि थे और कलाकारों का काफी सम्मान करते थे. बाजपेयी जी ने दिलीप साहब से ऐसा करने से मना कर दिया था. उन्होंने दिलीप कुमार से कहा था कि कला कभी सरहद में बंधी नहीं रह सकती. आपकी कला को सम्मान मिला है, उस सम्मान को वापस करने का मतलब अपनी कला का अपमान करना होगा.
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