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दिलीप कुमार ने क्यों छोड़ी 'मदर इंडिया', जानिए उनके जीवन के अनकहे किस्से

बॉलीवुड के 'ट्रजेडी किंग' दिलीप कुमार का बुधवार को निधन हो गया. उन्होंने मुंबई हिंदुजा अस्पताल में 98 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. Dilip Kumar ने बॉलीवुड को एक से एक बेहतरीन फिल्में दी.

Updated on: 07 Jul 2021, 10:44 AM

मुंबई:

बॉलीवुड के 'ट्रजेडी किंग' दिलीप कुमार का बुधवार को निधन हो गया. उन्होंने मुंबई हिंदुजा अस्पताल में 98 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. दिलीप कुमार ने बॉलीवुड को एक से एक बेहतरीन फिल्में दी. दिलीप कुमार हिंदी सिनेमा के जाने-माने और लोकप्रिय अभिनता थे. दिलीप कुमार ने 1944 में आई फिल्म 'ज्वार भट्टा' से अपने सिनेमाई सफर की शुरुआत की थी. फिल्मों में आने के बाद वे मुहम्मद यूसुफ खान से दिलीप कुमार बनें. बॉलीवुड के बेहतरीन अभिनेता दिलीप कुमार लाखों लोगों के लिए प्रेरणादायी भी है. बॉलीवुड के जाने-माने अभिनेता धर्मेंद्र देओल ने कहा था कि करियर के आगे बढ़ने के दिनों में वह दिलीप कुमार साहब से प्रेरणा लेते थे. उम्र में 22 साल बड़े दिलीप कुमार की शादी सायरा के साथ वर्ष 1966 में हुई थी.

छह दशक से ज्यादा समय के अपने करयिर में उन्होंने 65 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. भारत के सबसे प्रतिष्ठित अभिनेताओं में से एक दिलीप कुमार ने 'कोहिनूर', 'मुगल-ए-आजम', 'शक्ति', 'नया दौर' और 'राम और श्याम' जैसी बेहतरीन फिल्मों में काम किया है. पर्दे पर उन्हें आखिरी बार 1998 में 'किला' में देखा गया था. 'किला' फिल्म क लिए दिलीप कुमार को फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाज़ा जा चुका है.

दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसम्बर, 1922 को वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था. विभाजन के बाद दिलीप कुमार का परिवार मुंबई में आकर बस गया था. दिलीप कुमार का शुरूआती जीवन तंगहाली और संघर्ष में गुज़रा. संघर्ष के दिनों में वह पुणे की एक कैंटीन में काम करते थे. यहीं देविका रानी की दिलीप कुमार पर नज़र पड़ी. देविका ने ही दिलीप युसूफ खान को दिलीप कुमार नाम दिया.

1947 में रिलीज़ हुई जुगनू ने दिलीप कुमार को बुलंदियों तक पहुंचाया. इस फिल्म ने दिलीप साब को हिट अभिनेताओं की फेहरिस्त में खड़ा कर दिया था. 1949 में फ़िल्म 'अंदाज़' में दिलीप कुमार ने पहली बार राजकपूर के साथ काम किया. यह फिल्म भी अपना सिक्का जमाने में कामयाब रही थी. दीदार (1951) और देवदास (1955) जैसी फ़िल्मों में गंभीर भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हें ट्रेजडी किंग कहा जाने लगा. मुग़ले-ए-आज़म (1960) में उन्होंने मुग़ल राजकुमार जहांगीर की भूमिका निभाई. 'राम और श्याम' में दिलीप कुमार का डबल रोल आज भी दर्शकों को गुदगुदाने में सफल है. क्रांति (1981), विधाता (1982), दुनिया (1984), कर्मा (1986), इज़्ज़तदार (1990) और सौदागर(1991) उनकी प्रमुख फिल्मों में शामिल है.

दिलीप कुमार की ऑटोबायोग्राफी में उनके जिंदगी के अनकहे किस्से मौजूद है. इस किताब के पन्नों पर दिलीप साब की ज़िंदगी के सफर की झलक है. दिलीप कुमार मधुबाला की तरफ आकर्षित थे. किताब में लिखा, 'वह बहुत अच्छी एक्ट्रेस थीं. उनमें एक औरत के तौर पर भी ऐसी बहुत सी खूबियां थीं, जो मेरी उस वक्त की चाह के करीब थीं. अजीब-सा चाव था उनकी शख्सियत में. उन्हीं की वजह से मैं अपने शर्मीलेपन से बाहर आया.'

दिलीप और मधुबाला के अलगाव की कहानी भी इन पन्नों पर छपी है. किताब में इस घटना का जिक्र है कि फिल्म 'मुगल ए आजम' के लिए पर्दे पर अमर प्रेम निभा रहे थे, तभी असल जिंदगी में रिश्ते खत्म हुए. फिल्म आधी ही बन पाई थी और हालत ये थी कि दिलीप साब और मधुबाला आपस में बात तक नहीं करते थे. यहां तक कि दोनों एक दूसरों को दुआ सलाम भी नहीं करते थे. 'मुगल ए आजम' के एक प्रेम दृश्य को महान प्रेम दृश्यों में गिना जाता है.

1960 में कोहिनूर फिल्म में दिलीप साब ने अभिनय के आलावा भी बहुत कोशिशें की. इस फिल्म के लिए उन्होंने सितार सीखा, जिसका वह घंटों तक अभ्यास करते थे. इसी दौरान उनकी मीरा कुमारी से दोस्ती और गहरी हुई थी. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन दिलीप कुमार की फिल्म 'गंगा जमुना' के बेहद शौक़ीन थे.

मैं 'मदर इंडिया' से पहले दो फिल्मों में नर्गिस का हीरो रह चुका था. ऐसे में उनके बेटे के रोल का प्रस्ताव जमा नहीं. जब महबूब खान ने मुझे इस फिल्म की स्क्रिप्ट सुनाई तो मैं अभिभूत हो गया. मुझे लगा कि यह फिल्म हर कीमत पर बनाई जानी चाहिए. फिर उन्होंने नरगिस के एक बेटे का रोल मुझे ऑफर किया. मैंने उन्हें समझाया कि मेला और बाबुल में उनके साथ रोमांस करने के बाद यह माकूल नहीं होगा.