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फकीर को गाते देख मोहम्मद रफी लग जाते थे पीछे, जानें उनके अनसुने किस्से

मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) की आज 39वीं पुण्यतिथि है.

Updated on: 31 Jul 2019, 09:26 AM

नई दिल्ली:

बॉलीवुड इंडस्ट्री के महान और सदाबहार गायक मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) अपनी सुरीली और रोमांटिक आवाज़ की वजह से अब तक लोगों के दिल पर राज कर रहे हैं, या यूं कहें कि आगे भी करेंगे. मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) की आज 39वीं पुण्यतिथि है. 31 जुलाई 1980 में रमजान के पाक महीने में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.

तीन दशक बीतने के बाद भी संगीत की दुनिया में मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) का कोई सानी नहीं है. रफी अपने समय के सभी सुपर स्टार्स जैसे कि दिलीप कुमार, भारत भूषण, देवानंद, शम्मी कपूर, राजेश खन्ना और धर्मेंद्र की आवाज बने. मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) जब छोटे थे, तभी उनका परिवार लाहौर से अमृतसर आ गया था.

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रफी के बड़े भाई की नाई की दुकान थी. रफी ज्यादा समय वहीं बिताया करते थे. कहा जाता है कि एक फकीर हर रोज उस दुकान से होकर गुजरा करते थे. सात साल के रफी रोज उनके पीछे लग जाते और फकीर के साथ गुनगुनाते रहते. मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) के बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने जब देखा की उनकी दिलचस्पी गायन में बढ़ती जा रही है तो उन्होंने उस्ताद अब्दुल वाहिद खान से परंपरागत शिक्षा प्राप्त करने की सलाह दी. मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) को 'चौदहवीं का चांद' (1960) के शीर्षक गीत के लिए रफी को पहली बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला.

1961 में मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) को दूसरा फिल्मफेयर पुरस्कार फिल्म 'ससुराल' के गीत 'तेरी प्यारी-प्यारी सूरत' के लिए मिला.

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संगीतकार लक्ष्मीकांत ने फिल्मी दुनिया में अपना आगाज ही रफी की मधुर आवाज के साथ किया. लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (Laxmikant–Pyarelal) के धुनों से सजी फिल्म 'दोस्ती' (1965) के गीत 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे' के लिए उन्हें तीसरा फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. उन्हें 1965 में पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा गया.