बॉलीवुड और साउथ सिनेमा की तुलना अक्सर की जाती है. कई बार हिंदी फिल्म इंडस्ट्री पर आरोप लगता है कि उसकी कहानियां वास्तविक जीवन से कट चुकी हैं और सिर्फ एक खास वर्ग के लिए बनाई जाती हैं. इसी विषय पर चर्चित फिल्ममेकर नीरज घेवान ने भी अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि बॉलीवुड की कहानियां 'सैनिटाइज़्ड' यानी छान-बीन कर इस तरह पेश की जाती हैं कि वे सिर्फ एक सीमित दर्शक वर्ग को अपील करें.
बॉलीवुड के किरदार असली नहीं लगते: नीरज
इंडियन स्क्रीनराइटर्स कॉन्फ्रेंस (ISC) में नीरज घेवान ने कहा था, 'मुझे लगता है कि साउथ फिल्म इंडस्ट्री इतनी सफल इसलिए है क्योंकि उनकी कहानियों में असलीपन है. उनके किरदार जमीनी हकीकत से जुड़े होते हैं.'बॉलीवुड की समस्या बताते हुए उन्होंने कहा, 'यहां के किरदार एक खास तरीके से गढ़े जाते हैं. उन्हें हमेशा एक निश्चित दर्शक वर्ग के हिसाब से बनाया जाता है. हर फिल्म को ‘बांद्रा’ के चश्मे से देखना पड़ता है, इसलिए वे वास्तविक नहीं लगते.'
नीरज का इशारा यह था कि हिंदी फिल्मों में महानगरीय दर्शकों की पसंद को ध्यान में रखते हुए कहानियां बनाई जाती हैं, जिससे असली भारत की झलक उनमें नहीं मिलती.
इंडिपेंडेंट फिल्मों के लिए पैसा जुटाना मुश्किल
नीरज घेवान ने इस दौरान भारतीय सिनेमा में इंडिपेंडेंट फिल्मों की चुनौतियों पर भी बात की. उन्होंने कहा कि 'भारत में स्वतंत्र सिनेमा के लिए फंडिंग का अभाव है. किसी भी फिल्म को बनाने के लिए प्रोडक्शन हाउस के साथ समझौता करना पड़ता है. आपको या तो फिल्म में किसी बड़े सितारे को लेना पड़ता है या फिर म्यूजिक से कमाई का जुगाड़ करना पड़ता है. अपनी विज़न को बनाए रखते हुए फिल्म बनाना बेहद मुश्किल है.'
क्या बॉलीवुड को बदलने की जरूरत है?
नीरज घेवान का यह बयान ऐसे समय में आया है जब साउथ की फिल्में हिंदी बेल्ट में भी छा रही हैं. बाहुबली, केजीएफ, पुष्पा और कांतारा जैसी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन किया है, जबकि कई बॉलीवुड फिल्में असफल साबित हुई हैं.
नीरज का मानना है कि अगर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को अपनी खोई हुई पकड़ वापस पानी है, तो उसे अपनी कहानियों में असलीपन लाना होगा. सवाल यह है कि क्या बॉलीवुड इस बदलाव के लिए तैयार है?
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