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तीसरा चरण उत्‍तर प्रदेशः मुलायम परिवार Vs नरेंद्र मोदी, चाचा Vs भतीजा, आजम खान Vs जया प्रदा

दो चरणों के बाद लोकसभा चुनाव का तीसरा चरण बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा. तीसरे चरण में बीजेपी का सीधा मुकाबला मुलायम परिवार से है.

Updated on: 22 Apr 2019, 08:14 AM

नई दिल्‍ली:

दो चरणों के बाद लोकसभा चुनाव का तीसरा चरण बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा. तीसरे चरण में बीजेपी का सीधा मुकाबला मुलायम परिवार से है. इनमें अगर पिछले चुनावों की बात करें तो बदायूं, मैनपुरी, फरोजाबाद में फूल पर साइकिल भारी है. ये वो सीटें जो 2014 की प्रचंद मोदी लहर में भी साइकिल खूब दौड़ी थी. रामपुर में आजम खान के सामने जया प्रदा हैं तो एटा में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह मैदान में हैं और उन पर चुनाव में जीत हासिल करने का दबाव है जबकि उनके खिलाफ इस बार सपा-बसपा की जोड़ी है. आइए देखें किस सीट पर क्‍या है सियासी समीकरण...

पीलीभीतः 'गांधी' परिवार के लिए दूसरी अमेठी

अमेठी और रायबरेली के अलावा पीलीभीत वो लोकसभा सीट है जिसे देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार गांधी परिवार का गढ़ माना जाता है. पीलीभीत लोकसभा सीट पर पिछले तीन दशक से इंदिरा गांधी के दूसरे बेटे संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी और बेटे वरुण गांधी का ही राज रहा है. पिछली बार मेनका गांधी ने यहां से चुनाव लड़ा था और इस बार उनके बेटे वरुण गांधी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.

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इस बार कुल 13 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला बीजेपी के वरुण गांधी, समाजवादी पार्टी के हेमराज वर्मा और जनता दल यूनाइटेड के डॉक्टर भरत के बीच है. यहां से 6 निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में हैं. बीजेपी ने इस बार लोकसभा चुनाव में सीटों की अदला-बदली करते हुए मेनका गांधी को पीलीभीत की जगह सुल्तानपुर से जबकि वरुण गांधी को सुल्तानपुर की जगह पीलीभीत से मैदान में उतारा है. पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र में हिंदू वोटरों के साथ-साथ मुस्लिम वोटरों का भी खास प्रभाव है. पीलीभीत में 30 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है. 2017 के विधानसभा चुनाव में सभी पांच सीटों पर बीजेपी ने ही बाजी मारी थी.

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2014 के लोकसभा चुनाव में पीलीभीत में कुल 62.9% मतदान हुआ जिसमें बीजेपी की मेनका गांधी को 52 फीसदी से भी ज्यादा वोट मिले . मेनका गांधी को 52.1% और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को 22.8% वोट हासिल हुए थे.


बरेली : भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का एकछत्र राज

वैश्य, दलित और मुस्लिम वोटरों के वर्चस्व वाली बरेली सीट पर पिछले तीन दशक से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का एकछत्र राज रहा है. 1989 से लेकर 2004 तक लगातार 6 बार संतोष कुमार गंगवार ने यहां से चुनाव जीता. हालांकि 2009 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा लेकिन 2014 में एक बार फिर वह बड़े अंतर से जीत कर लौटे और केंद्र में मंत्री बने.

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एक बार फिर संतोष कुमार गंगवार को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है, उनके सामने कांग्रेस के प्रवीण सिंह ऐरन और समाजवादी पार्टी के भगवत शरण गंगवार चुनाव मैदान में हैं. 5 निर्दलीय उम्मीदवारों के अलावा 8 अन्य दलों के उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. बरेली से कुल 16 उम्मीदवार मैदान में हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में पूरे उत्तर प्रदेश में चले मोदी लहर का फायदा उठाते हुए बीजेपी के संतोष कुमार गंगवार ने बाजी मार ली. उन्हें इस सीट पर 50 फीसदी से अधिक वोट प्राप्त हुआ जबकि दूसरे नंबर पर रहे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को महज 27 फीसदी वोट मिले.

आंवलाः बदले हुए समीकरण में जमकर पसीना बहाना होगा

आंवला लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का कब्जा है . हालांकि इस बार यह राह आसान नहीं दिख रही क्योंकि 2014 की तुलना में इस बार राजनीतिक हालात बदल गए हैं और सपा-बसपा एक साथ चुनाव लड़ रही हैं ऐसे में बीजेपी को फिर से जीत हासिल करने के लिए जमकर पसीना बहाना होगा.

आंवला लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम वोटरों का खासा प्रभाव है. जिले में करीब 35 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि 65 फीसदी संख्या हिंदुओं की है. हालांकि लंबे समय से यहां मुस्लिम-दलित वोटरों का समीकरण नतीजे तय करता आया है, इनके अलावा क्षत्रीय-कश्यप वोटरों का भी यहां खासा प्रभाव है.

यहां 14 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिसमें मुख्य मुकाबला बीजेपी के निवर्तमान सांसद धर्मेंद्र कश्यप और बहुजन समाज पार्टी के रुचिविरा से है. कांग्रेस की ओर से कुंवर सर्वराज सिंह चुनावी मैदान में हैं. 9 क्षेत्रीय दलों के नेता भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं जबकि 2 उम्मीदवार तो निर्दलीय ही मैदान में हैं. पिछले दो चुनाव में बीजेपी का इस सीट पर कब्जा है, 2009 का चुनाव मेनका गांधी ने यहां से बड़े अंतर से जीता था और 2014 में धर्मेंद्र कुमार कश्यप एकतरफा लड़ाई में जीत गए. कश्यप एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं.

2014 के चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी धर्मेंद्र कुमार कश्यप ने 41 फीसदी वोट पाकर जीत दर्ज की. समाजवादी पार्टी के कुंवर सर्वराज को सिर्फ 27.3% वोट हासिल हुए थे. अभी तक यहां हुए चुनाव में बीजेपी 5 बार चुनाव जीत चुकी है.

बदायूं : समाजवादी पार्टी (सपा) का अजेय दुर्ग

समाजवादी पार्टी (सपा) का अजेय दुर्ग कहा जाता है. यहां से 9 उम्मीदवार मैदान में हैं. मुख्य मुकाबला सपा के धर्मेंद्र यादव और बीजेपी की संघमित्रा मौर्य से है. कांग्रेस ने सलीम इकबाल शेरवानी को मैदान में उतारा है. इनके अलावा 4 उम्मीदवार बतौर निर्दलीय अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.

बदायूं लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ है और पिछले 6 लोकसभा चुनाव से सपा इस सीट पर अजेय रही है. सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव अभी यहां से सांसद हैं और वह लगातार दो बार यहां से चुनाव जीत भी चुके हैं. 2014 के चुनाव में मोदी लहर का यहां कोई असर नहीं देखने को मिला.बदायूं सीट पर यादव और मुस्लिम मतदाताओं का वर्चस्व है. यहां दोनों ही मतदाता करीब 15-15 फीसदी हैं. 2014 के आंकड़ों के अनुसार यहां करीब 18 लाख मतदाता हैं, इसमें 9.7 लाख पुरुष और 7.9 लाख महिला मतदाता हैं.

2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव ने यहां एकतरफा जीत हासिल की, उन्हें करीब 48 फीसदी वोट मिले थे. 2014 में मोदी का जादू यहां नहीं चला और उनके उम्मीदवार को सिर्फ 32 फीसदी ही वोट मिले थे. 2014 के चुनाव में करीब 6200 वोट NOTA में गए थे.

एटा: लोध, यादव और शाक्य वोटर तय करेंगे नतीजे

एटा संसदीय सीट उत्तर प्रदेश पर पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह मैदान में हैं . इनको लेकर कुल 14 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिसमें मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राजवीर सिंह उर्फ राजू भईया और समाजवादी पार्टी के देवेंद्र सिंह यादव के बीच है. कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है. कांग्रेस ने यूपी में 3 क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन कर रखा है. इसी गठबंधन के तहत कांग्रेस ने यह सीट राष्ट्रीय जन अधिकार पार्टी (आरजेएपी) के लिए छोड़ी है और आरजेएपी ने सूरज सिंह को मैदान में उतारा है.

एटा क्षेत्र में लोध, यादव और शाक्य बहुल जातियां रहती हैं. 2014 में देश में चली मोदी लहर का फायदा एटा में भी मिला और भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी को सीधे तौर पर करारी मात दी. एटा में हुए 58 फीसदी मतदान में बीजेपी के राजवीर सिंह को करीब 51 फीसदी वोट मिले तो उनके प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को सिर्फ 29 फीसदी वोट मिले थे.


मैनपुरी : मुलायम की प्रतिष्ठा दांव पर

जातीय समीकरण को देखें तो इस सीट पर यादव वोटरों का वर्चस्व है, यहां करीब 35 फीसदी मतदाता यादव समुदाय से हैं. जबकि करीब 2.5 लाख वोटर शाक्य हैं. यही कारण रहा है कि यहां समाजवादी पार्टी का एक छत्र राज चलता है. समाजवादी पार्टी का गढ़ मैनपुरी लोकसभा सीट पर मुलायम की प्रतिष्ठा दांव पर है तो भारतीय जनता पार्टी इस पूर्व मुख्यमंत्री को आसानी से चुनाव नहीं जीतने देना चाहेगी. 2019 लोकसभा चुनाव के लिए मैनपुरी से 12 उम्मीदवार मैदान में हैं. मुख्य मुकाबला सपा से मुलायम सिंह यादव और बीजेपी के प्रेम सिंह शाक्य के बीच है. 2014 के चुनाव में 2 जगहों से जीत हासिल करने के बाद मुलायम सिंह ने यह सीट छोड़ दी थी और उन्होंने आजमगढ़ को अपना संसदीय क्षेत्र चुना. बाद में हुए उपचुनाव में उनके पोते तेजप्रताप सिंह यादव बड़े अंतर से जीते.

2014 में मोदी लहर का इस सीट पर कोई असर देखने को नहीं मिला था और तत्कालीन समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी. उनके सीट छोड़ने के बाद हुए उपचुनाव में तेजप्रताप सिंह यादव ने भी भारी अंतर से चुनाव जीता. तेजप्रताप सिंह यादव को यहां करीब 65 फीसदी वोट मिले, जबकि उनके सामने खड़े बीजेपी के उम्मीदवार को सिर्फ 33 फीसदी वोट मिले थे.


फिरोजाबाद ः चाच-भतीजे के बीच दिलचस्‍प होगी लड़ाई

फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर चुनावी लड़ाई चाचा-भतीजे के बीच होने वाली है. समाजवादी पार्टी के सांसद अक्षय यादव एक बार फिर फिरोजाबाद से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं जिनको चुनौती चाचा शिवपाल सिंह यादव से मिल रही है. वहीं बीजेपी भी इस सीट पर जीत के लिए जोर लगा रही है.

इस सीट पर जाट और मुस्लिम वोटरों का वर्चस्व है, लेकिन समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के गठबंधन और शिवपाल यादव के सपा से अलग होने के बाद 2019 का लोकसभा चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है. यहां से कुल 6 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिसमें मुख्य मुकाबला सपा से अलग होकर नई पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाने वाले शिवपाल से हैं जो रिश्ते में उनके चाचा लगते हैं. इन दोनों के अलावा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के डॉक्टर चंद्रसेन जादौन भी मैदान में हैं और 2 उम्मीदवार बतौर निर्दलीय हैं.

पिछले आम चुनाव में फिरोजाबाद में भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच कड़ी टक्कर हुई थी, हालांकि समाजवादी पार्टी के अक्षय यादव ने बाजी मार ली थी. अक्षय यादव को 5 लाख से ज्यादा यानी 48.4% वोट मिले थे वहीं भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार को 38 फीसदी वोट मिले थे. पिछले चुनाव में यहां पर करीब 67 फीसदी मतदान हुआ था.

संभल: पहली बार बीजेपी का खुला था खाता

संभल लोकसभा सीट एक समय मुलायम सिंह यादव का संसदीय क्षेत्र होने के कारण सुर्खियों में रहता था, लेकिन इस बार मुकाबला कांटे का है. मुस्लिम बहुल इलाका होने के बावजूद 2014 के चुनाव में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी और उसकी कोशिश अपनी इस सीट पर पकड़ बनाए रखना चाहेगी .

संभल लोकसभा सीट पर इस बार 12 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी के परमेश्वर लाल सैनी, समाजवादी पार्टी के डॉक्टर शफीकुर रहमान बार्क और कांग्रेस के मेजर जगत पाल सिंह के बीच रहेगा. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के करण सिंह यादव भी मैदान में हैं. 3 निर्दलीय समेत 5 क्षेत्रीय दलों के नेता भी अपनी उम्मीदवारी पेश कर रहे हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में संभल में भारतीय जनता पार्टी के सत्यपाल सैनी और समाजवादी पार्टी के शफीक उर रहमान बर्क के बीच जीत-हार में सिर्फ 5,000 वोटों का अंतर था. बहुजन समाज पार्टी के अकील उर रहमान खान तीसरे नंबर पर रहे थे.

रामपुर : क्‍या रंग लाएगी अंडवियर पॉलिटक्‍स

मुस्लिम बहुसंख्यक वाले रामपुर सीट इस बार ज्‍यादा चर्चा में है. आजम खान की अंडरवियर पॉलिटिक्‍स की वजह से पूरे देश की निगाहें इस सीट पर है. जयाप्रदा को भारतीय जनता पार्टी (BJP) से टिकट दिए जाने के बाद रामपुर लोकसभा सीट पर मुकाबला कड़ा है. मुस्लिम बहुसंख्यक वाली संसदीय सीटों में से एक रामपुर पर जोरदार लड़ाई होने के आसार हैं क्योंकि जयाप्रदा के सामने समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान मैदान में है.

रामपुर संसदीय सीट पर 50 फीसदी से भी अधिक जनसंख्या मुस्लिम आबादी की है. हालांकि 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां से भारतीय जनता पार्टी के नैपाल सिंह ने जीत दर्ज की थी. 2014 में उत्तर प्रदेश से कोई भी मुस्लिम सांसद चुनकर नहीं गया था, जो कि इतिहास में पहली बार हुआ था.

मुरादाबादः 2014 में भारतीय जनता पार्टी पहली बार यहां से जीती थी

मुरादाबाद लोकसभा सीट पर सत्ता की चाबी मुस्लिम वोटरों के हाथ में है. यहां पर कुल 52.14% हिंदू और 47.12% मुस्लिम जनसंख्या है. 2014 में पहली बार मुरादाबाद लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की जीत हुई. उत्तर प्रदेश में बीजेपी 71 सीटें जीत कर आई थी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसने क्लीन स्वीप किया था. कुंवर सर्वेश कुमार ने अपने प्रतिद्वंदी समाजवादी पार्टी के डॉ. एसटी हसन को मात दी थी. सर्वेश कुमार ने करीब 87 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इस सीट पर पांचवें नंबर पर रही थे.

मुरादाबाद लोकसभा सीट से इस बार 13 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला बीजेपी के निवर्तमान सांसद कुंवर सर्वेश कुमार का कांग्रेस के इमरान प्रतापगढ़ी और समाजवादी पार्टी के डॉक्टर एसटी हसन के बीच है. हसन पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे थे. मैदान में 4 निर्दलीय उम्मीदवारों के अलावा 6 क्षेत्रीय दलों के उम्मीदवार भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. राज्य में सपा का बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन है जिस कारण बसपा ने यहां से कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है.