यहां मजहब मायने नहीं रखता, 1952 से अब तक अलीगढ़ से एक मुस्लिम तो रामपुर से 3 हिंदू चुने गए

उत्तर प्रदेश 'गंगा-जमुनी तहजीब' यानी हिंदू-मुस्लिम की साझा संस्कृति के लिए जाना जाता है. यह बात अलीगढ़ और रामपुर के पहले लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक के नतीजों पर गौर करने से पता चलता है.

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Dalchand Kumar
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यहां मजहब मायने नहीं रखता, 1952 से अब तक अलीगढ़ से एक मुस्लिम तो रामपुर से 3 हिंदू चुने गए

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) 'गंगा-जमुनी तहजीब' यानी हिंदू-मुस्लिम की साझा संस्कृति के लिए जाना जाता है. यह बात अलीगढ़ और रामपुर के पहले लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक के नतीजों पर गौर करने से पता चलता है. आजादी के बाद से अब तक रामपुर (Rampur) में 16 आम चुनाव हो चुके हैं. कभी यह एक नवाब का निजाम था. मगर यहां से तीन हिंदू जीतकर सांसद बने- राजेंद्र कुमार शर्मा, जया प्रदा और नेपाल सिंह. अगर अलीगढ़ का जायजा लिया जाए तो सन् 1952 से अब तक सिर्फ एक मुस्लिम ही जीता है. अलीगढ़ (Aligarh) नाम ही बताता है कि यह मुस्लिम बहुल इलाका है और यहीं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी भी है. फिर भी इस क्षेत्र के सयाने मतदाता जम्हूरियत के आगे मजहब को दरकिनार करते रहे हैं.

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रामपुर (Rampur) में जब पहला लोकसभा चुनाव हुआ तो यहां से जीते कांग्रेस के कद्दावर नेता और आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री अबुल कलाम आजाद. उनके बाद कांग्रेस के ही एस. अहमद मेहदी, जो यहां से दूसरा और तीसरा लोकसभा चुनाव जीते. यह इस ओर इशारा करता है कि इस निर्वाचन क्षेत्र के नाम में 'राम' होने के बावजूद बुद्धिमान मतदाताओं ने धर्म को नहीं, हमेशा उम्मीदवार की योग्यता को महत्व दिया. कांग्रेस रामपुर पर अपनी पकड़ अगले दो लोकसभा चुनावों में भी बनाए रखी. सन् 1967 और 1971 में जीते जुल्फिकार अली खान जो नाम मात्र के नवाब मुर्तजा अली खान के भाई और भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी थे.

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हालांकि, 1977 में भारतीय लोकदल के राजेंद्र कुमार शर्मा इस सीट से जीते. उस बार कांग्रेस ने आपातकाल के कारण यहीं नहीं, समूचे उत्तर भारत में अपनी जमीन खो दी थी. जुल्फिकार अली खान जो 'मिकी मियां' के नाम से जाने जाते थे, सन् 1980 में यहां से जीत और 1984 फिर जीते. सन् 1982 में भाई के इंतकाल के बाद नाम मात्र के नवाब बने और 1989 तक बने रहे. सन् 1991 में भारतीय लोकदल वाले राजेंद्र कुमार शर्मा बतौर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के उम्मीदवार यहां से जीते.

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सन् 1992 में एक सड़क हादसे में नवाब का इंतकाल हो गया. सन् 1996 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां से नवाब की विधवा बेगम नूर बानो को उम्मीदवार बनाया, मगर वह बीजेपी के मुख्तार अब्बास नकवी से हार गईं. अगले ही साल 1999 में हुए चुनाव में मगर उन्होंने जीत हासिल की. वर्ष 2004 के चुनाव में यहां से जया प्रदा (Jaya Prada) जीतीं और 2009 में भी उन्होंने अपनी जीत दोहराई. दोनों बार वह समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार थीं. इस बार वह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की उम्मीदवार हैं. वर्ष 2014 में इस सीट पर बीजेपी के नेपाल सिंह काबिज हुए. नवाब के बेटे काजिम अली खान कांग्रेस के टिकट पर लड़े, मगर तीसरे स्थान पर रहे. इस बार के चुनाव में रामपुर बीजेपी प्रत्याशी जया प्रदा और सपा उम्मीदवार आजम खान (Azam Khan) के बीच मुकाबला और जुबानी जंग देख रहा है. मैदान में संजय कपूर भी यहां कांग्रेस की मौजूदगी का अहसास करा रहे हैं.

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अब बात अलीगढ़ (Aligarh) की. सन् 1957 के आम चुनाव में कांग्रेस के जमाल ख्वाजा जीते. सिर्फ एक बार यहां मुस्लिम नेता की जीत हुई. मुस्लिम बहुत इस क्षेत्र से इसके बाद लगातार हिंदू नेता ही जीतते रहे हैं. सन् 1962 में रिपब्लिकन पार्टी के बुद्धप्रिय मौर्य जीते. सन् 1967 और 71 में भारतीय क्रांति दल के शिव कुमार शास्त्री, 1977 में जनता पार्टी के नवाब सिंह चौहान और 1980 में इंद्रा कुमारी जीतीं. सन् 1984 में कांग्रेस की यहां वापसी हुई. उषा रानी तोमर जीतीं, लेकिन 1989 में वह जनता दल के सत्यपाल मलिक से हार गईं. मलिक अभी जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल हैं. 

वर्ष 2004 में कांग्रेस के बिजेंद्र सिंह जीते व 2009 में बहुजन समाज पार्टी (BSP) की राज कुमारी चौहान जीतीं और 2014 भाजपा के सतीश कुमार गौतम जीते. वर्ष 2019 के चुनाव में गौतम फिर चुनावी अखाड़े में हैं. उनका मुकाबला बसपा के अजित बालियान से और कांग्रेस के बिजेंद्र सिंह है. आखिरी में आपको बता दें कि अलीगढ़ में 18 अप्रैल को और रामपुर में 23 अप्रैल को मतदान हो चुका है. एक महीना बाद यानी 23 मई को नतीजे आ जाएंगे.

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