कांग्रेस के घोषणापत्र के चुनावी वादों पर उठे सवालों का जवाब कौन देगा?

सिर्फ विपक्षी राजनीतिक दल ही नहीं, आर्थिक विशेषज्ञ भी कांग्रेस के घोषणापत्र में दिखाए गए 'सपनों' को 'हकीकत' में बदलने को लेकर आशंकित हैं.

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Nihar Saxena
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कांग्रेस के घोषणापत्र के चुनावी वादों पर उठे सवालों का जवाब कौन देगा?

मंगलवार को नई दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी

न्यूनतम आय योजना 'न्याय' समेत शिक्षा पर जीडीपी का छह प्रतिशत खर्च करना और ऐसे ही तमाम बड़े आर्थिक संसाधनों की दरकार रखने वाले वादों को कांग्रेस ने कल घोषित अपने घोषणापत्र में शामिल किया है. हालांकि इन प्रावधानों को देखने के बाद देश के विभिन्न हलकों से जुड़े विशेषज्ञ भी सवाल उठा रहे हैं कि आखिर कांग्रेस इन्हें 'निभाएगी' कैसे?

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यही वजह है कि कांग्रेस का घोषणापत्र जारी होने के कुछ समय बाद ही 'जैसे को तैसा' की तर्ज पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चेतावनी भरे अंदाज में संकेत दिए थे कि 'न्याय' योजना के लिए राज्य सरकार अपने संसाधनों को देने से इनकार भी कर सकती है. हालांकि अरुण जेटली का यह बयान केंद्र की महत्वाकांक्षी योजना 'आयुष्मान भारत' पर कुछ राज्यों के विरोध दर्ज कराने और सहयोग नहीं करने की प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया.

जाहिर है कांग्रेस का घोषणापत्र जारी होने के बाद उन राज्यों से तीखी प्रतिक्रिया आनी ही थी, जहां-जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं. ऐसे में बुधवार को उत्तराखंड सरकार ने 'न्याय' योजना पर अपना रुख अभी से साफ कर दिया. राज्य के वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने दो-टूक कह दिया कि कांग्रेस के चुनावी वादों का बोझ बीजेपी शासित राज्य सरकारें नहीं उठाएंगी. इसके अलावा राज्य बीजेपी के नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से जानना चाहा है कि यूपीए इन योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए आर्थिक संसाधन कहां से जुटाएगी?

सिर्फ विपक्षी राजनीतिक दल ही नहीं, आर्थिक विशेषज्ञ भी कांग्रेस के घोषणापत्र में दिखाए गए 'सपनों' को 'हकीकत' में बदलने को लेकर आशंकित हैं. आर्थिक विशेषज्ञ आकाश जिंदल भी कुछ ऐसी ही शंकाप्रधान राय रखते हैं. वह जानना चाहते हैं कि कांग्रेस के घोषणापत्र में दिखाए गए सपनों को पूरा करने के लिए संसाधन कहां से जुटाए जाएंगे, इसका जवाब नहीं मिलता है. वह चेतावनी भरे लहजे में कहते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था फिलहाल 'न्याय' योजना और शिक्षा क्षेत्र में जीडीपी के 6 फीसदी के निवेश की स्थिति में नहीं है. यही बात रिक्त पड़े सभी सरकारी पदों पर भी लागू होती है, जिन्हें एक साथ भरना आसमान से तारे तोड़ कर लाने जैसा होगा.

बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी एक ट्वीट के जरिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर निशाना साधा है. वह कहती हैं कि राहुल की बात पर अब जनता को भरोसा नहीं रहा है. बसपा सुप्रीमो की इस बात से एनडीए के सहयोगी जनता दल युनाइटेड के वरिष्ठ नेता के.सी. त्यागी भी इत्तेफाक रखते हैं. हालांकि वह यह जरूर कहते हैं कि कांग्रेस के घोषणापत्र में किसान और रोजगार जैसे मूल मुद्दे भी शामिल हैं.

कांग्रेस के घोषणा पत्र पर सवाल सिर्फ यही नहीं हैं देशद्रोह की धारा खत्म करने और अफस्पा जैसे कानून कि नए सिरे से व्याख्या करने पर भी सवाल उठ रहे हैं. इन मुद्दों पर बीजेपी के नेता तो लगातार कांग्रेस को घेर ही रहे हैं, प्रबुध तबके में भी इन वादों को संशय की नजरों से देखा जा रहा है.

Source : News Nation Bureau

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