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पार्थ पवार पर अंधश्रद्धा फैलाने का आरोप, चर्च के पादरियों पर केस दर्ज

मामला पार्थ के एक चर्च के फादर से मुलाकात का है. इन फादर पर अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगता रहा है.

Updated on: 02 Apr 2019, 04:49 PM

मुंबई.:

कोई किसानों के साथ खेत जोत रहा है, तो कोई लोकल ट्रेन सरीखे सार्वजनिक यातायात के साधनों में सफर कर रहा है, तो कोई मंदिर-मंदिर की चौखट पर सिर नवा रहा है. जाहिर है लोकतंत्र के महाकुंभ पर सभी का मकसद येन-केन-प्रकारेण मतदाताओं की राय को अपने पक्ष में मोड़ना भर है. यह अलग बात है कि अपनी हरकतों और बयानों से 'महाराष्ट्र के पप्पू' करार दिए जा चुके मावल से एनसीपी प्रत्याशी पार्थ पवार विवादों में घिर गए हैं. मामला पार्थ के एक चर्च के फादर से मुलाकात का है. इन फादर पर अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगता रहा है. अब पार्थ से चुनावी विजय के लिए उनसे आशीर्वाद मांगना विवाद का केंद्र बन गया है.

विभिन्न पंथों के धार्मिक पूजाघरों का दौरा कर संबंधित मतदाताओं को साधने के साथ-साथ ईश्वरीय आशीर्वाद लेने का एक प्रयास पार्थ पवार पर भारी पड़ रहा है. एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के पौत्र पार्थ विगत दिनों चर्च जा पहुंचे. वहां उन्होंने प्रभु ईसा मसीह की सलीब के आगे प्रार्थना तो की ही. लगे हाथों चर्च के पादरी डेविड और जयश्री सिलव्हे से मुलाकात कर उनकी ब्लेसिंग्स भी ले लीं. बस यही बात स्थानीय हिंदूवादी संगठनों समेत शिवसेना और बीजेपी को नागवार गुजर गई.

इसके पहले भी हिंदूवादी संगठन चर्च के पादरियों के अंधश्रद्धा जताते बयानों और असाधारण रोगों से जूझ रहे लोगों को 'ईश्वरीय स्पर्श' से भला-चंगा करने के कारनामों का विरोध जताते आ रहे थे. पार्थ की उनसे मुलाकात ने विरोध की इसी दबी-छिपी चिंगारी को नए सिरे से हवा दे दी. बयानों के जरिये पार्थ की भर्त्सना करने के अलावा स्थानीय खड़की थाने में अंधश्रद्धा फैलाने का एक केस दर्ज कराया गया है.

जाहिर है अजित पवार के सुपुत्र पार्थ अपने इन्हीं 'दौरों' को लेकर सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोल हो रहे हैं. एनसीपी को अलग से विरोध झेलना पड़ रहा है. गौरतलब है कि इसके पहले पार्थ ने अपने चुनावी अभियान का शुभारंभ गणपति बप्पा का आशीर्वाद लेकर किया था. इसके बाद उन्होंने देहू में जाकर संत तुकाराम महाराज के दर्शन किए. यहां तक तो ठीक था, लेकिन चर्च में जाकर पादरियों का आशीर्वाद लेना उन्हें और उनकी पार्टी को भारी पड़ता दिख रहा है.

इसके पहले अपने पहले चुनावी संबोधन को कागज की एक पुर्ची से पढ़कर अंजाम दिया. यही नहीं. मीडिया के सवालों का भी पार्थ अजीबोगरीब जवाब देते हैं. चुनावी सभाओं और रैलियों में लेट पहुंचते हैं. ऐसे में विरोधी पार्टियों ने उन्हें 'महाराष्ट्र का पप्पू' कहना शुरू कर दिया है.