मध्यप्रदेश (Madhya pradesh election), छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh election) और राजस्थान (Rajasthan election) चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत के बाद तीनों राज्यों मे इनकी सरकार तो बनी वहीं कई सारी संभावनाओं ने भी जन्म ले लिया. मसलन क्या 2019 लोकसभा चुनाव (2019 lok sabha election) के मद्धेनजर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul gandhi) सभी विपक्षी दलों को एक साथ ला पाएंगे? क्या अन्य विपक्षी पार्टियां राहुल के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे? हालांकि अगले तीन चार दिनों मे ही इस सवाल का जवाब भी मिल गया. मंगलवार को समाजवादी पार्टी (एसपी) प्रमुख अखिलेश यादव ने डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन के बयान से दूरी बनाते हुए कहा कि यह ज़रूरी नहीं कि सभी लोगों की राय उनसे मेल खाती हो.
गौरतलब है कि रविवार को एमके स्टालिन ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल को अगले प्रधानमंत्री के रूप में पेश किया था. स्टालिन ने चेन्नई में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा, 'मैं प्रस्तावित करता हूं, हम दिल्ली में एक नया प्रधानमंत्री बैठाएंगे. मैं तमिलनाडु से राहुल गांधी की उम्मीदवारी का प्रस्ताव करता हूं.'
स्टालिन ने कहा कि राहुल गांधी के पास फासिस्ट नरेंद्र मोदी को हराने की क्षमता है. उन्होंने घोषणा की, .हम राहुल गांधी के हाथ को मजबूत करेंगे.' इस दौरान मंच पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू, केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन और पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायणसामी, डीएमके नेता और कई अन्य पार्टियों के नेता भी उपस्थित थे.
हालांकि इस घोषणा का असर यह हुआ कि एसपी प्रमुख अखिलेश, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख मायावती और ममता बनर्जी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह से दूरी बना ली. तो क्या यह माना जाए कि 2019 लोकसभा चुनाव में बन रही विपक्षी एकता के लिए यह एक बड़ा झटका है.
ज़ाहिर है कि बीएसपी (BSP) प्रमुख मायावती ख़ुद को प्रधानमंत्री के दावेदार के तौर पर देखती हैं, वहीं पिछले कुछ समय से अपने पिता की नाराज़गी झेल रहे एसपी प्रमुख अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री के तौर पर बिठाकर परिवारिक गठबंधन ठीक करने की जुगत में भी लगे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र सिंह का कहना है कि एसपी-बीएसपी दोनों गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई दलों का महागठबंधन बनाना चाहते हैं. शायद यही वजह है कि तेलुगू देशम प्रमुख (TDP) द्वारा बुलाई गई विपक्षी नेताओं की बैठक में भी दोनों दलों के मुखिया शामिल नहीं हुए थे.
अखिलेश यादव के मंगलवार के बयान को भी देखें तो उनकी मंशा साफ़ झलकती है. उन्होंने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि स्टालिन की राय पर गठबंधन के सभी सदस्य एकमत हों. अखिलेश ने तीन राज्यों में मिली कांग्रेस की जीत को असल में बीजेपी की हार बताते हुए कहा, 'जनता अब बीजेपी से नाराज है, इसी कारण कांग्रेस को तीन राज्यों में सफलता मिली है, अभी महागठबंधन का खाका तैयार किया जाना है.'
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उन्होंने कहा कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर, ममता बनर्जी और शरद पवार ने गठबंधन बनाने के लिए सभी नेताओं को एक साथ लाने का प्रयास किया था. इस प्रयास में अगर कोई अपनी राय दे रहा है, तो जरूरी नहीं है कि गठबंधन की राय समान हो. प्रधानमंत्री पद के नाम पर किसी का भी नाम गठबंधन के सभी नेता तय करें तो बेहतर है.
अब ऐसे में सवाल उठता है कि अगर महागठबंधन को लेकर एक राय नहीं बनी तो 2019 लोकसभा चुनाव में हालात एक बार फिर से 2014 लोकसभा चुनाव जैसे ही होंगे. हालांकि हाल के दिनों में देखें तो कांग्रेस अध्यक्ष के हाव-भाव में विश्वास काफी बढ़ गया है.
विधानसभा चुनावी नतीज़ों के बाद का प्रेस कॉफ्रेंस और मंगलवार को किसानों की कर्ज़माफ़ी को लेकर मीडिया को दिया गया जवाब दोनों को देखें तो लगता है कि वो पहले की तुलना में बेहतर तरीके से अपनी बात रख पा रहे हैं.
संसद में चल रहे शीतकालीन सत्र के छठे दिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी संसद अंदर जा रहे थे कि तभी अचानक मीडिया ने उन्हें घेर लिया और कर्ज़माफी को लेकर सवाल करने लगे. राहुल ने सवाल सुनते ही कहा, 'देखा..हो गया न… काम शुरू हो गया न?' बाद में उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए किसानों की कर्ज़माफी को लेकर केंद्र सरकार पर हमला किया. उन्होंने कहा, 'जो काम कांग्रेस ने 6 घंटे में कर दिखाया वो मोदी सरकार साढ़े चार साल में नहीं कर पाई.'
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यानी की जिस तरीके से बीजेपी 70 साल बनाम 5 साल की बात करती है कांग्रेस ने उसे 5 साल बनाम 6 घंटा कर दिया. ज़ाहिर है राहुल अब बीजेपी को उसी की भाषा में जवाब देना सीख रहे हैं लेकिन सवाल यही कि क्या वो अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में चलाई गई एनडीए सरकार की तरह से गठबंधन चला पाएंगे?
Source : Deepak Singh Svaroci