मध्य प्रदेश की इस सीट पर बीजेपी ने चार दशक बाद किया यह नया काम, इस उम्मीदवार पर खेला दाव

बीजेपी ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर लगभग चार दशक बाद इस बार ब्राह्मण उम्मीदवार पर दांव लगाया है.

बीजेपी ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर लगभग चार दशक बाद इस बार ब्राह्मण उम्मीदवार पर दांव लगाया है.

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yogesh bhadauriya
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मध्य प्रदेश की इस सीट पर बीजेपी ने चार दशक बाद किया यह नया काम, इस उम्मीदवार पर खेला दाव

बीजेपी ने चार दशक बाद इस बार ब्राह्मण उम्मीदवार पर दांव लगाया है.

मध्य प्रदेश का खजुराहो संसदीय क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा की सीट बन गई है, दोनों ही दलों ने नए चेहरों को मैदान में उतारा है. बीजेपी ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर लगभग चार दशक बाद इस बार ब्राह्मण उम्मीदवार पर दांव लगाया है. परिसीमन के चलते खजुराहो संसदीय क्षेत्र का स्वरूप कई बार बदला है. वर्ष 1977 के बाद के लोकसभा चुनावों पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि इस सीट पर 11 आम चुनाव हुए, जिनमें भाजपा सात बार, भारतीय लोकदल एक बार और कांग्रेस को तीन बार जीत मिली है. इस सीट का कांग्रेस की विद्यावती चतुर्वेदी, उनके पुत्र सत्यव्रत चतुर्वेदी, भाजपा से उमा भारती, नागेंद्र सिंह व रामकृष्ण कुसमारिया और भारतीय लोकदल से लक्ष्मीनारायण नायक सांसद चुने जा चुके हैं.

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खजुराहो संसदीय क्षेत्र के जातीय समीकरण पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि यहां पिछड़ा वर्ग चुनावी नतीजे प्रभावित करने में बड़ी भूमिका निभाता रहा है. साढ़े 13 मतदाताओं वाले इस संसदीय क्षेत्र में साढ़े तीन लाख मतदाता ब्राह्मण वर्ग से है. इसके अलावा आरक्षित वर्ग के मतदाताओं की संख्या लगभग 45 फीसदी से अधिक है. कांग्रेस की ओर से अब तक तीन ब्राह्मण और भारतीय लोक दल से एक निर्वाचित हुआ है. क्षत्रिय समुदाय के दो और पिछड़ा वर्ग के पांच सांसद निर्वाचित हुए.

बुंदेलखंड-महाकौशल के राजनीतिक विश्लेषक नंद लाल सिंह का कहना है कि बुंदेलखंड की लगभग सभी सीटों पर जातीय समीकरणों के चुनावी नतीजे प्रभावित करने में खासी भूमिका रहती है. खजुराहो सीट की बात करें तो यहां से जब भी पिछड़े वर्ग का उम्मीदवार मैदान में उतरा तो उसे जीत आसानी से मिली. वहीं ब्राह्मण मतदाता ने जब अपने वर्ग के उम्मीदवार का साथ दिया तो उसकी जीत की राह आसान हुई, वहीं क्षत्रिय उम्मीदवारों के पक्ष मे दीगर जातियों की लामबंदी ने जातीय गणित में कमजोर होने के बाद भी इस वर्ग के उम्मीदवार को जीत दिलाई.

सिंह आगे कहते हैं कि अंतिम बार हुए परिसीमन के बाद वर्ष 2009 और 2014 के चुनाव में भाजपा को जीत मिली और दोनों ही उम्मीदवार क्षत्रिय वर्ग से रहे. इस तरह सिर्फ जातीय गणित के आधार पर चुनाव जीता जा सकता है, यह कहना उचित नहीं होगा. इस बार कांग्रेस ने क्षत्रिय वर्ग की कविता सिंह को मैदान में उतारा है तो दूसरी ओर भाजपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी वी.डी. शर्मा पर दांव चला है.

उम्मीदवार के चयन में इस बार दोनों दलों की रणनीति बदली है. कांग्रेस जहां दो बार से ब्राह्मण उम्मीदवार पर दांव लगा रही थी तो भाजपा क्षत्रिय पर. इस बार भाजपा ने ब्राह्मण और कांग्रेस ने क्षत्रिय को मैदान में उतारा है.

भाजपा द्वारा ब्राह्मण और कांग्रेस की ओर से क्षत्रिय उम्मीदवार को मैदान में उतारे जाने के बाद समाजवादी पार्टी पिछड़ा वर्ग के व्यक्ति पर दांव लगाने की तैयारी में है. उत्तर प्रदेश के बांदा निवासी वीर सिंह पटेल का नाम पार्टी लगभग तय कर चुकी है, अब सिर्फ उम्मीदवारी घोषित होना बाकी है. यहां मतदान छह मई को होना है.

खजुराहो संसदीय क्षेत्र तीन जिलों के विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर बना है. इसमें छतरपुर के दो, पन्ना के तीन और कटनी के तीन विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इन आठ विधानसभा क्षेत्रों में से छह पर भाजपा और दो पर कांग्रेस का कब्जा है. वर्ष 1976 में हुए परिसीमन में टीकमगढ़ और छतरपुर जिले की चार-चार विधानसभा सीटें आती थीं.

Source : News Nation Bureau

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