लोकसभा चुनाव में पांचवें चरण के तहत मध्य प्रदेश की सात लोकसभा सीटों पर 6 मई को वोट डाले जाएंगे. इनमें अधिकतर सीटें यूपी की सीमा से सटी हैं. इनमें बुदंलेखंड की खजुराहो, सतना, टीकमगढ़, दमोह और रीवा की सीट शामिल है. होशंगाबाद और बैतूल सीट महाकौशल क्षेत्र में आती हैं. इन सातों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है.पिछले साल संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत से गदगद कांग्रेस मुख्यमंत्री कमलनाथ के सहारे चुनावी मैदान में है. वहीं बीजेपी को सारी सीटें बचाने की चुनौती है. आइए देखें इन सीटों पर क्या हैं समीकरण...
लोकसभा चुनाव का पांचवां चरण ( 6 मई)
7 सीटों पर मतदान: टीकमगढ़, दमोह, सतना, होशंगाबाद, बैतूल, खजुराहो और रीवा.
लोकसभा क्षेत्र | बीजेपी | कांग्रेस |
होशंगाबाद | उदय प्रताप सिंह | शैलेंद्र दीवान |
बेतूल | दुर्गादास | रामू टेकाम |
खजुराहो | बीडी शर्मा | कविता सिंह |
सतना | गणेश सिंह | राजा राम त्रिपाठी |
रीवा | जनार्दन मिश्रा | सिद्धार्थ तिवारी |
टीकमगढ़ | वीरेंद्र कुमार खटीक | किरण अहिरवार |
दमोह | प्रहलाद पटेल | प्रताप सिंह लोधी |
टीकमगढ़: क्या 2,14,248 मतों का अंतर पाट पाएंगे किरण अहिरवार
टीकमगढ़ लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश की सीमा से सटी हुई है. इस सीट पर कांग्रेस से नए कैंडिडेट के रूप में अहिरवार किरण, बीजेपी से डॉ. वीरेंद्र कुमार और सपा के आरडी प्रजापति सहित 14 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं. 2014 में बीजेपी से वीरेंद्र कुमार ने कांग्रेस के कमलेश वर्मा को 2,14,248 मतों से हराया था. इस बार वीरेंद्र कुमार टीकमगढ़ से हैट्रिक लगाने के मूड से चुनावी मैदान में हैं.
दमोह:तीन दशक से जीत का स्वाद नहीं चख पाई कांग्रेस
दमोह लोकसभा सीट पर बीजेपी से प्रहलाद पटेल, कांग्रेस से प्रताप सिंह लोधी और बसपा से जित्तू खरे (बादल) सहित 15 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं. कांग्रेस इस सीट पर पिछले तीन दशक से जीत का स्वाद नहीं चख पाई है. जबकि कांग्रेस इस सीट पर कभी जातीय तो कभी मुद्दे के जरिए प्रत्याशी उतारे लेकिन जीत नहीं मिल सकी है. प्रहलाद पटेल ने 2014 में कांग्रेस के महेंद्र प्रताप सिंह को 2 लाख से ज्यादा मतों से मात देकर जीत हासिल की थी.
होशंगाबाद: बीजेपी ने 6 बार लगातार जीत दर्ज की थी
होशंगाबाद लोकसभा सीट पर बीजेपी से मौजूदा सांसद उदय प्रताप सिंह, कांग्रेस से शैलेंद्र दीवान चंद्रभान सिंह और बसपा से एमपी चौधरी सहित 11 उम्मीदवार मैदान में हैं. होशंगाबाद लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ माना जाता है.1989 से लेकर 2004 तक बीजेपी ने 6 बार लगातार जीत दर्ज की थी. 2009 में कांग्रेस ने इस सीट को बीजेपी से छीन लिया था. 2014 में मोदी लहर देखकर उदय सिंह कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए और सांसद चुने गए.
बैतूल:सवा तीन लाख मतों की खाई क्या पाट पाएगी कांग्रेस
यह सीट कमलनाथ के मजबूत गढ़ माने जाने वाले छिंदवाड़ा से सटी हुई है. बैतूल सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद का टिकट काटकर दुर्गा दास उइके, कांग्रेस ने राम टेकाम और बसपा ने अशोक भलावी को चुनावी रणभूमि में उतारा है. 2014 बीजेपी की ज्योति धुर्वे ने कांग्रेस के अजय शाह को सवा तीन लाख मतों से मात दी थी. हालांकि इस बार सूबे के बदले सियासी समीकरण के चलते बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बदल दिया है.
खजुराहो:डाकू ददुआ के बेटे ने बढ़ाई दिलचस्पी
खजुराहो सीट पर लगभग 15 साल से बीजेपी का कब्जा है. बीजेपी ने इस सीट पर ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए मौजूदा सांसद का टिकट काटकर वीडी शर्मा पर भरोसा जताया है. जबकि कांग्रेस ने छतरपुर की शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाली कविता सिंह पर दांव लगाया है. वहीं, सपा ने डाकू ददुआ के बेटे वीर सिंह पटेल को प्रत्याशी बनाया है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नागेंद्र सिंह ने कांग्रेस के राजा पटेरिया को हराया था. यहां सबसे अधिक पिछड़े वर्ग के मतदाता हैं, जो चुनावों में अहम भूमिका निभाते हैं. ब्राह्मण वोटर तीन लाख हैं. इसी जातीय समीकरण को देखते हुए सपा ने कुर्मी समुदाय से वीर सिंह पटेल पर दांव लगाया है जो यूपी के चित्रकूट सदर से विधायक रह चुके हैं.
सतना:बसपा ने बनाई त्रिकोणीय लड़ाई
सतना सीट पर अर्जुन सिंह के परिवार की आज भी तूती बोलती है सतना लोकसभा सीट पर बीजेपी के गणेश सिंह मैदान में हैं, तो कांग्रेस ने ब्राह्मण वोट को साधने के लिए राजाराम त्रिपाठी को मैदान में उतारा है. जबकि बसपा से अच्छे लाल कुशवाहा चुनावी मैदान में उतरकर लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है. हैट्रिक लगा चुके गणेश सिंह चौथी बार चुनावी मैदान में उतरे हैं. जबकि कांग्रेस की और से इस सीट पर जीत दर्ज करने वाले अर्जुन सिंह आखिरी नेता थे, जिन्होंने 1991 में जीत हासिल की थी. इसके बाद से लगातार यहां बीजेपी का कब्जा है.
रीवा: बसपा की वजह से मुकाबला त्रिकोणीय
रीवा लोकसभा सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद जनार्दन मिश्रा पर फिर से उतारा है. कांग्रेस ने भी ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए सिद्धार्थ तिवारी पर भरोसा जताया है और बसपा ने ओबीसी समीकरण को देखते हुए कुर्मी समुदाय के विकास पटेल को उतारा है. इसके चलते रीवा का चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के जनार्दन मिश्रा ने कांग्रेस के सुंदर लाल तिवारी को एक लाख साठ हजार मतों से मात दी थी. बसपा यहा तीसरे नंबर पर रही थी. पिछले 15 साल से कांग्रेस यह सीट नहीं जीत सकती है. जबकि बसपा इस सीट पर 1991, 1996 और 2009 में जीत दर्ज की है.
Source : News Nation Bureau