पश्चिम बंगाल में इस बार राजनीतिक हवा का अंदाजा घरों और प्रतिष्ठानों में लगे विभिन्न पार्टियों के झंडों से हो रहा है. अभी कल ही की तो बात है भारतीय जनता पार्टी (BJP) के झंडे इक्का-दुक्का ही दिखाई देते थे. आज स्थिति उलट है, 2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग प्रत्येक संसदीय क्षेत्र में बीजेपी के केसरिया झंडे आसानी से देखने को मिल रहे हैं. यह उस पार्टी के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं है, जिसने 2014 में मोदी लहर के बावजूद सिर्फ दो सीटें ही पश्चिम बंगाल (West Bengal) में हासिल की थीं.
बीजेपी का 42 में से 20 का लक्ष्य
इन झंडों को देख समझा जा सकता है कि बीजेपी सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) को कड़ी टक्कर दे रही है. संभवतः इसी वजह से बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व इस बार 42 में से कम से कम 20 सीटें जीतने का दावा कर रहा है. चूंकि वाम किला लगभग दरक चुका है औऱ कांग्रेस जीर्ण-शीर्ण हालत में है. ऐसे में बीजेपी नेतृत्व को लग रहा है कि वह ममता विरोधी मतों को अपने दम बिखराव से रोक अपनी तरफ खींचने में सफल होगी.
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बीजेपी की चुनौतियां भी कम नहीं
हालांकि बीजेपी के लिए राह इतनी आसान भी नहीं है. प्रदेश में बीजेपी के पास चिर-परिचित चेहरे या नेताओं का अभाव है. स्थिति यह है कि पांचवें चरण का मतदान ऐन सिर पर है, बीजेपी के चुनावी रणनीतिकार प्रत्याशियों के नाम और उनकी भौगोलिक कर्मभूमि से अपरिचित ही हैं. ऐसे में बीजेपी आलाकमान ने बंगाल की बागडोर संघ के वरिष्ठ नेता सुनील देवधर (Sunil Deodhar) को सौंपी है. सुनील ने ही त्रिपुरा में वाम दल को शिकस्त दे बीजेपी का झंडा फहराने का काम किया था.
बीजेपी उभरेगी दूसरे नंबर की पार्टी बनकर
तृणमूल कांग्रेस इस चुनौती और सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ना चाहती. तृणमूल के नेता चुपचाप किसी कोने में यह स्वीकारने में नहीं हिचकिचाते हैं कि इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी बन कर उभर रही है. 34 सालों के वामपंथी शासन में भी ऐसा कभी नहीं हुआ है कि कांग्रेस इस कदर हाशिये पर चली जाए. हालांकि वामदलों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है.
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ये हैं चुनौतीपूर्ण 10 सीटें
ऐसे परिदृश्य में राज्य की 10 सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी तृणमूल को काफी करीबी चुनौती दे रही है. ये सीटें हैं रायगंज, दार्जिलिंग, अलीपुरद्वार, मालदा (उत्तर), मालदा (दक्षिण), आसनसोल, बराकपोर, कृष्णानगर, बशीरत और कोलकाता (उत्तर). राज्य के उत्तर और मध्य भाग में कांग्रेस और वामपंथी दलों की उपस्थिति सिरे से खत्म नहीं कही जा सकती है. ऐसे में यहां की सीटें चतुष्कोणीय़ संघर्ष की साक्षी बनेंगी. यहां बीजेपी ममता विरोधी मतों के ध्रुवीकरण को लेकर आशान्वित है. तृणमूल कांग्रेस के वर्चस्व वाले दक्षिणी भाग की बात करें तो बीजेपी यहां टीएमसी को सीधी चुनौती देगी.
टीएमसी की अंदरूनी कलह कर रही बीजेपी की मदद
बीजेपी तृणमूल कांग्रेस की अंदरूनी कलह से भी लाभ उठाने की रणनीति पर काम कर रही है. ममता बनर्जी ने इस कलह को खत्म करने के लिए या तो बाहर से उम्मीदवार उतारें हैं या चर्चित हस्तियों को टिकट दिया है. मसलन जाधवपुर (Jadhavpur) में मिमी चक्रवर्ती और बशीरत (Bashirat) से नुसरत जहां. बीजेपी को लग रहा है कि लोकसभा चुनाव परिणाम ही वास्तव में 2021 के विधानसभा चुनावों की निर्णायक नींव रखेंगे. इसके अलावा बीजेपी को केंद्रीय सुरक्षा बलों पर भी भरोसा है. इनके जरिए मतदान को निष्पक्ष और निर्विघ्न संपन्न कराने की निर्वाचन आयोग ने कमर कस ली है.
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ममती दी की इसलिए और भी है नींद हराम
गौरतलब है कि बंगाल में 2014 में बीजेपी ने सिर्फ आसनसोल और दार्जिलिंग पर ही कब्जा किया था. यह अलग बात है कि बीजेपी का वोट शेयर 2011 के विधानसभा चुनाव के 4 फीसदी से बढ़कर 17 फीसदी हो गया है. यही तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता दीदी की बड़ी चिंता है. कह सकते हैं कि यही दस सीटें राज्य में बीजेपी के भविष्य की रूपरेखा तय करेंगी.
Source : News Nation Bureau