VVPAT के आइडिया में लग गए 100 साल, ऐसे काम करती है यह मशीन
पहले बैलेट पेपर फिर ईवीएम पर उठने लगे सवाल तो आया वीवीपैट सिस्टम. पर क्या आप जानते हैं वीवीपैट का कॉन्सेप्ट कहां से आया?
highlights
- VVPAT से निकलने वाली पर्ची 7 सेकेंड के बाद मशीन में ही गिर जाती है
- सबसे पहले VVPAT का इस्तेमाल नगालैंड के चुनाव में 2013 में हुआ था
- कैलिफोर्निया के सार्कमेंटो शहर में हुए चुनाव में 2002 में हो चुका था
नई दिल्ली:
पहले बैलेट पेपर फिर ईवीएम पर उठने लगे सवाल तो आया वीवीपैट सिस्टम. पर क्या आप जानते हैं वीवीपैट का कॉन्सेप्ट कहां से आया? बात सन 1890 की है. अमेरिका में Voter को यह पता नहीं चलता था कि उसका दिया गया वोट सही कैंडिडेट को गया है या नहीं. इसको लेकर 1897 में होरेशियो रोजर्स कंपनी ने निरीक्षण किया था. 1899 में जोसेफ ग्रे ने एक ऐसा मेकेनिज्म बताया जिसमें मशीन से वोटिंग के वक्त एक टिकट निकले जिसे बैलेट बॉक्स में डालने से पहले मतदाता खुद देख सके. हालांकि वोट अब भी मशीन से ही डाले जा रहे थे, लेकिन एक टिकट मिलने का साधन उन्होंने सुझाया था. वोटिंग मशीन में सुधार होते गया और EVM तक पहुंच गया, लेकिन पर्ची को लेकर लड़ाई सुधार की गुंजाइश अभी थी.
दरअसल ईवीएम में होनी वाली गड़बड़ी को रोकने के लिए कंप्यूटर सिक्योरिटी प्रफेशनल ब्रूस स्नायर (Bruce Schneier) ने 1990 के दशक में वीवीपैट की डिमांड की. 1992 में अमरेकी कम्प्यूटर साइंटिस्ट रेबेका मरक्यूरी ने जोसेफ ग्रे के आइडिया को दोहराया. सन 2000 में मरक्यूरी ने ही मरक्यूरी मैथड पर पीएचडी की. इसमें उन्होंने मशीन से निकलने वाली वीवीपैट और मतदाता के बीच कांच की दीवार का आइडिया भी दिया जिससे वोटर इस पर्ची को अपने साथ न ले जा सकें.
पहली बार यहां हुआ VVPAT का इस्तेमाल
इसका इस्तेमाल कैलिफोर्निया के सार्कमेंटो शहर में हुए चुनाव में 2002 में हो चुका था. इस वीवीपैट वाली मशीन को एवांते इंटनेशनल टेक्नोलॉजी ने बनाया था. अमेरिका में 27 राज्यों में वीवीपैट का इस्तेमाल आम चुनावों में होता है जबकि 18 राज्य इसे सिर्फ लोकल और विधानसभा चुनाव में ही अपनाते हैं, जबकि 5 ऐसे राज्य हैं जो वीवीपैट को नहीं अपनाते हैं.
भारत में कब आई VVPAT
सबसे पहले VVPAT का इस्तेमाल नगालैंड के चुनाव में 2013 में हुआ था. सितंबर में हुए राज्य के नॉकसेन विधानसभा सीट के लिए वीवीपैट लगी ईवीएम का इस्तेमाल हुआ था. इसी साल मिजोरम की 40 में से 10 विधानसभा सीटों पर मतदाताओं ने वीवीपैट लगी ईवीएम से अपने वोट डाले.
ऐसे काम करती है VVPAT
VVPAT मशीन ईवीएम के साथ कनेक्ट होती है. जब वोटर EVM में किसी कैंडिडेट के नाम और चुनाव चिन्ह के सामने का बटन दबाता है तो VVPAT से एक पर्ची निकलती है. यह बताती है कि मतदाता ने जिस कैंडिडेट को वोट किया है, वोट उसे ही मिला है. वीवीपैट मशीन डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम (DRE) के तहत काम करती है.
आपने किस कैंडिडेट को वोट किया है यह VVPAT मशीन से निकलने वाली पर्ची में दिखता है. इस पर्ची में मतदाता को प्रत्याशी का चुनाव चिन्ह और नाम उसकी ओर से चुनी गई भाषा में दिखाई देगा. यह पर्ची 7 सेकेंड तक दिखती है फिर सीलबंद बॉक्स में गिर जाती है.
VVPAT से निकलने वाली पर्ची 7 सेकेंड के बाद मशीन में ही गिर जाती है. यह मशीन पूरी तरह से पैक और लॉक होती है. अगर कोई सोचे कि ये पर्ची उसे मिल जाएगी तो ऐसा नहीं. सिर्फ पोलिंग अधिकारी ही VVPAT की इस पर्ची तक पहुंच सकता है. काउंटिंग के दिन इन पर्चियों का मिलान इलेक्ट्रॉनिक वोटों से किया जा सकता है.
कैसे होता है वोटों और पर्ची का मिलान?
मतगणना के दिन वोटों की गिनती में किसी प्रकार के विवाद होने पर प्रत्याशी की मांग पर वोटों और पर्ची का मिलान किया जाता है. एक ईवीएम में जितने वोट पड़े हैं ये काउंटिंग के दिन मशीन की Result बटन दबाते ही पता चल जाता है कि किस कैंडिडेट को कितने वोट मिले हैं. इसी आधार VVPAT की पर्चियों की गिनती कर ली जाती है. इससे स्थिति साफ हो जाती है.
कितने बूथ पर होगा पर्चियों का मिलान?
इससे पहले हुए चुनाव में हर विधानसभा क्षेत्र में सिर्फ 1 बूथ पर पर्चियों का मिलान होता था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में 21 विपक्षी दलों ने याचिका दायर कर 50 फीसदी ईवीएम और वीवीपैट का मिलान करने की मांग की थी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली सभी विधानसभाओं के 5 बूथों पर ईवीएम और वीवीपैट का मिलान किया जाए.
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