अटकलेंः 7 में से तीन चरण की वोटिंग के बाद क्या खतरे में है मोदी सरकार, पीएम बोले-विपक्ष की नींद उड़ी
अब तक तीन फेज के चुनाव में मतदाताओं के वोट प्रतिशत को ले कर मीडिया में कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं.
नई दिल्ली:
सात चरण में होने वाले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2019) के तीन चरण पूरे हो चुके हैं. अब तक तीन फेज के चुनाव में मतदाताओं के वोट प्रतिशत को ले कर मीडिया में कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. मीडिया रिपोर्टस के अनुसार बीजेपी सहित कई राजनीतिक दलों में बेचैनी गहरा गयी है. इसका एक कारण तो यह है कि वोट प्रतिशत के कम होने का सीधा असर सत्तारूढ़ खेमे की सेहत पर पड़ता है. लेकिन तीनों चरणों में पिछले चुनाव की तुलना में ठीकठाक ही वोटिंग हुई है. इस बार पहले चरण में 69.45%, दूसरे में 69.17% और 67.96% तीसरे चरण में वोटिंग हुई है. ऐसे में एक दिलचस्प पहलू ये है कि आजादी के बाद हुए हालिया आम चुनाव में 66.6 प्रतिशत वोटर टर्नआउट से कांग्रेस ने भारी जीत हासिल की थी.
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1957 के दूसरे आम चुनाव में वोट प्रतिशत भी लगभग एक समान ही रहा. लेकिन 1962 के चुनाव में वोट प्रतिशत घट कर 55.4 प्रतिशत हो गया और कांग्रेस को पहली बार सीटों का भारी नुकसान हुआ. लेकिन सरकार बनाने लायक सीटें रह गईं.
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1967 में गैर कांग्रेस दलों के आंदोलनों के भारत के राजनीतिक पटल पर पहली बार अपनी मजबूत दस्तक दर्ज किया. मतदाताओं में भी 1962 के बीच इसका असर यह हुआ की मत प्रतिशत तो बढ़ा लेकिन वह सत्ता के बदलाव के लिए पर्याप्त नहीं था. 61 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने वोट अधिकार का इस्तेमाल किया और विपक्ष सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने में भी कामयाब हुआ.
कहीं जोश ज्यादा तो कहीं दिखा कम
- गुजरात में वोटर टर्नआउट उतना नहीं हुआ जितना 2014 के आम चुनाव में हुआ था. महाराष्ट्र में जोश काफी कम दिखा. यूपी का हाल मिस्ट्री जैसा ही है. यहां पहले दो चरणों में 16 में से 10 सीटों में टर्नआउट में कमी आई. इससे किसी लहर का संकेत तो कतई नहीं मिलता है.
- आंध्र प्रदेश में लोगों ने भर-भर कर वोट किए. वहां टर्नआउट पिछली बार की तुलना में करीब 9 परसेंटेज प्वाइंट बढ़ी है. ये चंद्र बाबू नायडू की टीडीपी के लिए खतरे की घंटी है? ओडिशा में वोटर टर्नआउट काफी कम रहा है. माना जाए कि नवीन पटनायक की गद्दी सेफ है? बीजेपी इस राज्य में काफी मंसूबे बनाए बैठी है. पश्चिम बंगाल में वोटर टर्नआउट में कोई बदलाव नहीं है, मतलब वहां भी यथास्थिति?
- राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ज्यादा टर्नआउट मतलब सत्तापक्ष के लिए खतरे की घंटी. 2014 में बीजेपी के वोट शेयर में 8 फीसद की ऐतिहासिक बढ़ोतरी हुई थी और इतनी ही उस चुनाव में टर्नआउट में बढ़ोतरी हुई थी. इससे ये अनुमान लगाया जा सकता है कि नए वोटरों पर मोदी लहर छाया हुआ था.
- 2014 में जिन राज्यों में बीजेपी की लहर चली थी और जहां पार्टी ने 90 परसेंट से ज्यादा सीटें जीती थीं. उन सारे राज्यों में वोटर टर्नआउट में 10 परसेंटेज प्वाइंट या उससे ज्यादा की बढ़ोतरी हुई थी. जिन राज्यों में बीजेपी का जादू नहीं चला वहां वोटरों का जोश ठंडा ही रहा था. इस बार ठंडे जोश का क्या मतलब निकाला जाए. 2004 के चुनाव में भी 1999 की तुलना में कम वोटिंग हुई थी. इसका बीजेपी को नुकसान हुआ था. इस बार की कम वोटिंग एक्शन रिप्ले है क्या? सही जवाब के लिए 1 महीना इंतजार करना होगा.
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